March 4, 2013

Hindi Horror Story - भूतों का मेला-एक रहस्यमयी हकीकत..

बाबा मुझे माफ कर दो ! मैं इसे छोड़ कर चला जाऊँगा !

गुरू साहेब बाबा की समाधि का चक्कर लगाती वह पागल सी युवती की करूण वेदना !

कौन है जो इस महिला के माध्यम से बाबा से प्रार्थना कर रहा है?

वह युवती पास के गांव की रहने वाली थी। उस युवती को जब भी वह अदृश्य आत्मा परेशान करती थी तो उसे होश तक नहीं रहता था। उसे संभालने के लिए उसके परिजन उसके साथ थे। उस दिन और रात भर मलाजपुर स्थित बंधारा नदी में कड़ाके की ठंड में नहा कर आने के बाद कई महिलाएँ, पुरुष गुरू साहेब बाबा की समाधि के चारों ओर चक्कर काटते बाबा से रहम की भीख मांगते चले जा रहे थे। पूरी दुनिया में इस तरह का भूतों का मेला कहीं भी नहीं लगता है।

मलाजपुर के इस बाबा के समाधि स्थल के आसपास के पेड़ों की झुकी डालियाँ उल्टे लटके भूत-प्रेत की याद ताजा करवा रही थी। ऐसी धारणा है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को छोडऩे के बाद उसके शरीर में समाहित प्रेत बाबा की समाधि के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उल्टा लटक जाता है।

प्रतिवर्ष मकर संक्राति के बाद वाली पूर्णिमा को लगने वाले इस भूतों के मेले में आने वाले सैलानियों में देश-विदेश के लोगों की संख्या काफी मात्रा में होती है। खुली नंगी आँखों के सामने दुनिया भर से आये लोगों की मौजूदगी में हर साल होने वाले इस मेले में लोग डरे-सहमे वहाँ पर होने वाले हर पल का आनंद उठाते हैं। गुरू साहब बाबा की समाधि पर लगने वाले वाले विश्व के भूतों के एक मात्र मेले में पूर्णिमा की रात का महत्व काफी होता है। यह मेला एक माह तक चलता है। ग्राम पंचायत मलाजपुर इसका आयोजन करती है। कई अंग्रेजों ने पुस्तकों एवं उपन्यासों तथा स्मरणों में इस मेले का जिक्र किया है। इन विदेशी लेखकों के किस्सों के चलते ही हर वर्ष कोई ना कोई विदेशी बैतूल जिले में स्थित मलाजपुर के गुरू साहेब के मेले में आता है।

सतपुड़ा में मध्यप्रदेश के दक्षिण में बसे गोंडवाना क्षेत्र के जिलो में से एक बैतूल विभिन्न संस्कृतियों एवं भिन्न-भिन्न परंपराओं को मानने वाली जातियों-जनजातियों सहित अनेकों धर्मों व संस्कृतियों के मानने वाले लोगो से भर पूरा है। इस क्षेत्र में पीढ़ियों से निवास करते चले आ रहे इन्ही लोगों की आस्था एंव अटूट विश्वास का केन्द्र कहा जाने वाला गुरू साहेब बाबा का यह समाधि स्थल पर आने-वाले लोगों के बताए किस्से-कहानियाँ लोगों को बरबस इस स्थान पर खींच लाती हैं।

क्षेत्र की जनजातियों एवं अन्य जाति, धर्म व समुदायों के बीच आपसी सदभाव के बीच इन लोगों के बीच चले आ रहे भूत-प्रेत, जादू-टोना, टोटका एवं झाड़-फूंक का विश्वास यहाँ के लोगों के बीच सदियों से प्रचलित मान्यताओं के कारण अमिट है।

देवी-देवता-बाबा के प्रति यहाँ के लोगों की अटूट आस्था आज भी देखने को मिलती है। विशेषकर आदिवासी अंचल की गोंड, भील एवं कोरकू जनजातियों में जिसमें पीढ़ी-पीढ़ी से मौजूद टोटका, झाड़ फूंक एवं भूतप्रेत-चुड़ैल सहित अनेक ऐसे रीति-रिवाज निवारण प्रक्रिया आज भी पाई जाती है।

अकसर देखने को मिलता है कि कमजोर दिल वाले व्यक्तियों के शरीर के अंदर प्रवेशित होकर व्यक्ति को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीकों से मानसिक स्थिति असंतुलित करके कष्ट पहुंचाती है। इन्हीं परेशानियों व भूतप्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाले स्थानों में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम मलाजपुर में स्थित गुरूसाहब बाबा का समाधि स्थल अब पूरी दुनिया में जाना-पहचाना जाने लगा है। अभी तक यहाँ पर केवल भारत के विभिन्न गांवों में बसने वाले भारतीयो को जमावड़ा होता था लेकिन अब तो विदेशो से भी विदेशी सैलानी वीडियो कैमरों के साथ -साथ अन्य फिल्मी छायाकंन के लिए अपनी टीम के साथ पहुँचने लगे है।

मलाजपुर के गुरू साहेब बाबा के पौराणिक इतिहास के बारे में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। जनश्रुति है कि बैतूल जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर विकासखंड चिचोली जो कि क्षेत्र में पाई जाने वाली वन उपजों के व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रख्यात हैं। इसी चिचोली विकासखंड से 8 किलोमीटर दूर से ग्राम मलाजपुर जहाँ स्थित हैं श्रद्धा और आस्थाओं का सर्वजातिमान्य श्री गुरू साहेब बाबा का समाधि स्थल।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस स्थल का पौराणिक इतिहास यह है कि विक्रम संवत 1700 के पश्चात आज से लगभग 348 वर्ष पूर्व ईसवी सन 1644 के समकालीन समय में गुरू साहब बाबा के पूर्वज मलाजपुर के पास स्थित ग्राम कटकुही में आकर बसे थे। बाबा के वंशज महाराणा प्रताप के शासनकाल में राजस्थान के आदमपुर नगर के निवासी थे। अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य छिड़े घमसान युद्ध के परिणामस्वरूप भटकते हुये बाबा के वंशज बैतूल जिले के इसरूरस्थ क्षेत्र में आकर बस गए। बाबा के परिवार के मुखिया का नाम रायसिंह तथा पत्नी का नाम चंद्रकुंवर बाई था जो बंजारा जाति के कुशवाहा वंश के थे। इनके चार पुत्र क्रमश: मोतीसिंह, दमनसिंह, देवजी (गुरूसाहब) और हरिदास थे।

श्री देवजी संत (गुरू साहब बाबा) का जन्म विक्रम संवत 1727 फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को कटकुही ग्राम में हुआ था। बाबा का बाल्यकाल से ही रहन सहन खाने पीने का ढंग अजीबो-गरीब था। बाल्यकाल से ही भगवान भक्ति में लीन श्री गुरू साहेब बाबा ने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के अंतर्गत ग्राम खिड़किया के संत जयंता बाबा से गुरूमंत्र की दीक्षा ग्रहण कर वे तीर्थाटन करते हुये अमृतसर में अपने ईष्टदेव की पूजा आराधना में कुछ दिनों तक रहें इस स्थान पर गुरू साहेब बाबा को ‘देवला बाबा' के नाम से लोग जानते पहचानते हैं तथा आज भी वहाँ पर उनकी याद में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। इस मेले में लाखों भूत-पेत बाधा से ग्रसित व्यक्तियो को भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। गुरू साहेब बाबा उक्त स्थानों से चंद दिनों के लिये भगवान विश्वनाथ की पुण्य नगरी काशी प्रवास पर गये, जहां गायघाट के समीप निर्मित दरभंगा नरेश की कोठी के पास बाबा का मंदिर स्थित है।

बाबा के चमत्कारों व आशीर्वाद से लाभान्वित श्रद्धालु भक्तों व भूतप्रेतों बाधा निवारण प्रक्रिया के प्रति आस्था रखने वाले महाराष्ट भक्तों द्वारा शिवाजी पार्क पूना में बाबा का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया। गुरू साहब बाबा की समाधि स्थल पर देखरेख हेतु पारिवारिक परंपरा के अनुरूप बाबा के उतराधिकारी के रूप में उनके ज्येष्ठ भ्राता महंत गप्पादास गुरू गद्दी के महंत हुये। तत्पश्चात यह भार उनके सुपुत्र परमसुख ने संभाला उनके पश्चात क्रमश: सूरतसिंह, नीलकंठ महंत हुये। इनकी समाधि भी यही पर निर्मित है। वर्तमान में महंत चंद्रसिंह गुरू गादी पर महंत के रूप में सन 1967 से विराजित हुये। यहां पर विशेष उल्लेखनीय यह है कि वर्तमान महंत को छोड़कर शेष पूर्व में सभी बाबा के उत्तराधिकारियों ने बाबा का अनुसरण करते हुये जीवित समाधियाँ ली।

भूत-प्रेत बाधा निवारण के लिये गुरूसाहब बाबा के मंदिर भारत भर में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस घोर कलयुग में जब विज्ञान लोगों की धार्मिक आस्था पर हावी है उस समय में यह सत्य है कि भूत प्रेत बाधा और अनुभूति को झुठलाया नहीं जा सकता है। भूत-प्रेतों के बारे में पढ़ा लिखा तथाकथित शिक्षित तबका भले ही कुछ विशिष्ट परिस्थितियों से प्रभावित होकर इन सब पर अश्विास व्यक्त करे लेकिन बाबा की समाधि के चक्कर लगाते ही इस भूत-प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति स्वंय ही बकने लगता है कि वह क्या है ? तथा क्या चाहता है ?

बाबा की समाधि के पूरे चक्कर लगाने के पहले ही बाबा के हाथ-पैर जोड़ कर मिन्नत मांगने वाला व्यक्ति का सर पटकर कर माफी मांगने के लिए पेट के बल पर लोटने का सिलसिला तब तक चलता है जब तब कि उसके शरीर से वह तथाकथित भूत यानि कि अदृश्य आत्मा निकल नहीं जाती।

एक प्रकार से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि ‘भूत-प्रेत' से आशय छोटे बच्चों या विकलांग बच्चों की आत्मा होती है। ‘पिशाच अधिकांशत: पागल, दुराचारी या हिसंक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति या अत्यधिक क्रोधी व्यक्ति का भूत होता है। स्त्री की अतृप्त आत्माओं में चुड़ैल, दुखी, विधवा, निसंतान स्त्री अथवा उस महिला भूत होता है जिसके जीवन की अधिकांश इच्छायें या कामनायें पूर्ण नहीं हो पाई हों।

ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले गुरूसाहब बाबा की समाधि के समीप से बहती बंधारा नदी पर स्नान करवाने के बाद पीड़ित व्यक्ति को गुरूसाहब बाबा की समाधि पर लाया जाता है। जहां अंकित गुरू साहब बाबा के श्री चरणों पर नमन करते ही पीड़ित व्यक्ति झूमने लगता है। उसकी सांसों में अचानक तेजी आ जाती है, आँखें एक निश्चित दिशा की ओर स्थिर हो जाती है और उसके हाथ पैर ऐंठने लगते हैं। उस व्यक्ति में इतनी अधिक शक्ति आ जाती है कि आस-पास या साथ में लेकर आये व्यक्तियों को उसे संभालना पड़ता है।

बाबा की पूजा अर्चना की प्रक्रिया शुरू होते ही प्रेत बाधा पीड़ित व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है, पीड़ित व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है। इस अवस्था में पीड़ित आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है। एक बात तो यहाँ पर दावे के साथ कही जा सकती है कि प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाता है।

धार्मिक आस्था के केन्द्र मलाजपुर में श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़ में बाबा की महिमा और चमत्कार के चलते ही पौष पूर्णिमा से एक माह तक यहाँ पर लगने वाला मेला बाबा के प्रति लोगों के विश्वास को प्रदर्शित करता है।

यहां पर सबसे बड़ा जीवित चमत्कार यह है कि यहाँ पर अपनी अभिलाषा पूरी होने पर भक्तों द्वारा स्वयं के वजन भर गुड़ की चढ़ौती तुलादान कर बाबा के चरणों में अर्पित कर गरीबों में प्रसाद बांट दिया जाता है। बाबा के श्री चरणों में चढ़ौती किए गए गुड़ को एक गोदाम में रखा गया है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यहाँ पर हजारों टन गुड़ होने के बाद भी मक्खी के दर्शन तक नहीं है। यहाँ पर गुड़ पर मक्खी होने की कहावत भी झूठी साबित होती है।

दुनिया भर से अनेक लोग मध्यप्रदेश के आदीवासी बैतूल जिले के मलजापुर स्थित ग्राम में बरसों पहले पंजाब प्रांत के गुरूदासपुर जिले से आये बाबा गुरू साहेब समाधि पर लगने वाले दुनिया के एकलौते भूतो के मेले में आते हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले के इसाई मिशनरी द्वारा विश्व प्रसिद्ध पाढऱ चिकित्सालय मार्ग से दस किलोमीटर दूर पर स्थित आठंवा मिल से मलाजपुर के लिए एक सड़क जाती है। मलाजपुर जाने के लिए बैतूल हरदा मार्ग पर स्थित ग्राम पंचायत चिचोली से भी एक सड़क जाती है।

पिछले वर्ष जर्मनी की मीडिया टीम इस विश्व प्रसिद्ध गुरू साहेब बाबा के भूत मेले की रात भर के उस डरा देने वाले मंजर का छायाकंन एवं चित्राकंन करके जा चुकी है। महाराणा प्रताप के वंशज रहे बाबा के परिजन मुगलों के आक्रमण के शिकार हुये बाबा अपने छोटे भाई हरदास तथा बहन कसिया बाई के साथ आये थे। चिचोली में बाबा हरदास की तथा मलाजपुर में गुरू साहेब बाबा तथा उनकी बहन कसिया बाई की समाधि है। बाबा के भक्तों में अधिकांश यादव समाज के लोग हैं जो कि आसपास के गांवों में सदियों से रहते चले आ रहे हैं।

सबसे बड़ी विचित्रता यह है कि बाबा के भक्तों का अग्नि संस्कार नहीं होता है। बाबा के एक अनुयायी के अनुसार आज भी बाबा के समाधि वाले इस गांव मलाजपुर में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके शव को जलाया नहीं जाता है चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों ना हो। इस गांव के सभी मरने वालों को उन्हीं के खेत या अन्य स्थान पर समाधि दी जाती है।

बैतूल जिले के चिचोली जनपद की मलाजपुर ग्राम पंचायत में सदियों से हजारों की संख्या मे बाबा के अनुयायी अनेक प्रकार की मन्नत मांगने साल भर आते है

1 comment:

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