मैंने सुना तो था कि अगर रात के समय किसी सुनसान रास्ते पर आपको कोई आवाज सुनाई दे तो पीछे पलटकर नहीं देखना चाहिए. लेकिन जैसे आप इस बात पर विश्वास नहीं करते वैसे ही मुझे भी यह सब दकियानूसी लगता था. लेकिन शायद इन सब बातों पर विश्वास ना करना ही मेरे लिए एक बुरा सपना साबित हुआ. बस फर्क इतना है कि बुरे सपने नींद टूटने के बाद गायब हो जाते हैं लेकिन यह बुरा सपना तो अब तक मेरे साथ ही चल रहा है.
मेरी बेस्ट फ्रेंड की शादी थी और हम सभी दोस्त उसकी शादी में जाने के लिए तैयार थे. नीतू और मेरी पहचान कॉलेज के समय हुई थी. वह उत्तरांचल के एक छोटे से गांव से संबंध रखती थी और पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली आई थी. नीतू का परिवार उत्तरांचल ही रहता था इसीलिए शादी तो वहीं होनी थी.
खैर जॉब में व्यस्त होने के चलते हम में से कोई भी नीतू की शादी के लिए जल्दी नहीं जा पाया. शादी के दो दिन पहले ही हम सभी कॉलेज के दोस्तों ने एक मिनी बस की और शाम के समय ही निकल पड़े उत्तरांचल की तरफ. रात के करीब 10 बजे होंगे कि सभी को जोरों की भूख लगने लगी. रास्ते में कोई अच्छी जगह ना मिल पाने के कारण हमने थोड़ा और दूर जाकर खाने की सोची. 12 बजे के आसपास हमें एक जगह दिखाई दी जहां हम सभी खाने के लिए बैठ गए.
खाना खाकर कुछ दूर चले ही थे कि हमारी बस खराब हो गई और वो भी ऐसी जगह पर जहां आसपास सिवाय अंधेरे के और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था. मैं और मेरी एक दोस्त फोटोग्राफ्स खिंचवाने के लिए चल दिए. रात का समय था बाहर का ठंडा मौसम बहुत अच्छा था तो हमने सोचा एक जगह खड़े होने से बेहतर है आगे चला जाए, गाड़ी तो ठीक होने में समय लगेगा.
मेरी दोस्त और मैं कुछ दूर ही चले थे लेकिन वहां इतना घना अंधेरा था कि हमें और पीछे का कुछ नजर ही नहीं आ रहा था. अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मुझे आवाज दे रहा है. पहले तो मुझे लगा मुझे गलतफहमी हुई है और हम दोनों फिर से फोटोग्राफ्स खिंचवाने में व्यस्त हो गए.
लेकिन कुछ ही देर बाद मुझे ऐसा लगा कि फिर किसी ने मुझे मेरे कान में मेरा नाम पुकारा है. मैं पहले तो डरी लेकिन अपनी दोस्त को इस बारे में कुछ नहीं बताया.
लेकिन जैसे ही मैं आगे बढ़ी किसी ने बहुत तेज मेरा नाम पुकारा लेकिन जब मैंने अपनी दोस्त से पूछा कि उसने मेरा नाम सुना तो उसने मना कर दिया और यह भी कहा कि अगर तुझे सुनाई दे भी रहा है तो भी तुझे पीछे नहीं मुड़ना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दुष्ट आत्माएं पीछे पड़ जाती हैं.
मैंने उसकी बात को मजाक में टाल दिया और यह कहते हुए नकार दिया कि हो सकता है किसी को हमारी मदद की जरूरत हो !! मेरी दोस्त ने कहा कि “अच्छा, लेकिन जिसे मदद चाहिए उसे तेरा नाम कैसे पता? पता भी है तो मुझे क्यों नहीं आ रही उसकी आवाज?”
मैंने फिर भी उसकी बात नहीं सुनी. जैसे ही मेरे कानों ने दोबारा मेरा नाम गूंजता हुआ सुना मैंने पलटकर देख लिया कि आखिर कौन मुझे पुकार रहा है.
गलती कर दी मैंने, उस दिन के बाद तो जैसे मेरा जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया. आज भी बिना वजह कभी मेरे कपड़े अलमारी के बाहर गिरे होते हैं तो कभी मेरा कमरा इस तरह बिखरा होता है जैसे किसी ने मेरे कमरे के सामानों पर ही अपना क्रोध उतारा है. दिन को जब भी मैं सो कर उठती हूं तो मेरे चेहरे पर लकीरों के निशान पड़े होते हैं तो कभी रात के समय ऐसा लगता है जैसे कोई रो रहा है मेरे पास बैठकर.
मेरी बेस्ट फ्रेंड की शादी थी और हम सभी दोस्त उसकी शादी में जाने के लिए तैयार थे. नीतू और मेरी पहचान कॉलेज के समय हुई थी. वह उत्तरांचल के एक छोटे से गांव से संबंध रखती थी और पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली आई थी. नीतू का परिवार उत्तरांचल ही रहता था इसीलिए शादी तो वहीं होनी थी.
खैर जॉब में व्यस्त होने के चलते हम में से कोई भी नीतू की शादी के लिए जल्दी नहीं जा पाया. शादी के दो दिन पहले ही हम सभी कॉलेज के दोस्तों ने एक मिनी बस की और शाम के समय ही निकल पड़े उत्तरांचल की तरफ. रात के करीब 10 बजे होंगे कि सभी को जोरों की भूख लगने लगी. रास्ते में कोई अच्छी जगह ना मिल पाने के कारण हमने थोड़ा और दूर जाकर खाने की सोची. 12 बजे के आसपास हमें एक जगह दिखाई दी जहां हम सभी खाने के लिए बैठ गए.
खाना खाकर कुछ दूर चले ही थे कि हमारी बस खराब हो गई और वो भी ऐसी जगह पर जहां आसपास सिवाय अंधेरे के और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था. मैं और मेरी एक दोस्त फोटोग्राफ्स खिंचवाने के लिए चल दिए. रात का समय था बाहर का ठंडा मौसम बहुत अच्छा था तो हमने सोचा एक जगह खड़े होने से बेहतर है आगे चला जाए, गाड़ी तो ठीक होने में समय लगेगा.
मेरी दोस्त और मैं कुछ दूर ही चले थे लेकिन वहां इतना घना अंधेरा था कि हमें और पीछे का कुछ नजर ही नहीं आ रहा था. अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मुझे आवाज दे रहा है. पहले तो मुझे लगा मुझे गलतफहमी हुई है और हम दोनों फिर से फोटोग्राफ्स खिंचवाने में व्यस्त हो गए.
लेकिन कुछ ही देर बाद मुझे ऐसा लगा कि फिर किसी ने मुझे मेरे कान में मेरा नाम पुकारा है. मैं पहले तो डरी लेकिन अपनी दोस्त को इस बारे में कुछ नहीं बताया.
लेकिन जैसे ही मैं आगे बढ़ी किसी ने बहुत तेज मेरा नाम पुकारा लेकिन जब मैंने अपनी दोस्त से पूछा कि उसने मेरा नाम सुना तो उसने मना कर दिया और यह भी कहा कि अगर तुझे सुनाई दे भी रहा है तो भी तुझे पीछे नहीं मुड़ना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दुष्ट आत्माएं पीछे पड़ जाती हैं.
मैंने उसकी बात को मजाक में टाल दिया और यह कहते हुए नकार दिया कि हो सकता है किसी को हमारी मदद की जरूरत हो !! मेरी दोस्त ने कहा कि “अच्छा, लेकिन जिसे मदद चाहिए उसे तेरा नाम कैसे पता? पता भी है तो मुझे क्यों नहीं आ रही उसकी आवाज?”
मैंने फिर भी उसकी बात नहीं सुनी. जैसे ही मेरे कानों ने दोबारा मेरा नाम गूंजता हुआ सुना मैंने पलटकर देख लिया कि आखिर कौन मुझे पुकार रहा है.
गलती कर दी मैंने, उस दिन के बाद तो जैसे मेरा जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया. आज भी बिना वजह कभी मेरे कपड़े अलमारी के बाहर गिरे होते हैं तो कभी मेरा कमरा इस तरह बिखरा होता है जैसे किसी ने मेरे कमरे के सामानों पर ही अपना क्रोध उतारा है. दिन को जब भी मैं सो कर उठती हूं तो मेरे चेहरे पर लकीरों के निशान पड़े होते हैं तो कभी रात के समय ऐसा लगता है जैसे कोई रो रहा है मेरे पास बैठकर.
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