June 28, 2014

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 53 (समाप्त)

अब थोडीही देरमें ऍंथोनीको डेथ चेंबरमें इलेक्ट्रीककी चेअरपर बिठाकर देहांतकी सजा दी जानी थी. डिटेक्टीव सॅम, सजा देनेवाला अधिकारी, एक डॉक्टर और एक-दो ऑफिसर्स डेथ चेंबरके सामने खडे थे.. इतनेमें दो पुलिस अधिकारी हथकडीयां पहने स्थितीमें ऍंथोनीको वहा ले आये. देहांतकी सजा देनेकी जिस अधिकारीपर जम्मेदारी थी, उसने अपने घडीकी तरफ देखा और पुलिस अधिकारीको इशारा किया. पुलिस ऑफिसर्स ऍंथोनीको इलेक्ट्रीक चेअरकी तरफ ले गए.

'' ऑपेरटर किधर है '' उसमेंसे एक अधिकारीने पुछा.

एक आदमी तुरंत सामने आया. और इलेक्ट्रीक चेअर ऑपरेट करनेके पॅनलके पास गया. पुलिसके जो लोग ऍंथोनीको इलेक्ट्रीक चेअरके पास ले गए थे उन्होने उसे अब उस चेअरपर इलेक्ट्रीक बिठाया. काले कपडेसे उसका चेहरा ढंका गया. फिर वे पुलिस इलेक्ट्रीक चेअर चेंबरसे बाहर आ गए और उन्होने चेंबर बंद कर दिया.

मुख्य अधिकारीने पॅनलके पास खडे ऑपरेटरकी तरफ देखा. ऑपरेटर पॅनलके पास एकदम तैयार खडा था. फिरसे वह अधिकारी अपनी घडीकी तरफ देखने लगा. शायद उसकी उलटी गीणती शुरु हो गई थी.

भलेही उन लोगोंको वह हमेशाका था फिरभी वातावरणमें थोडा तनाव स्पष्ट दिखने लगा. अचानक उस अधिकारीने ऑपरेटरको इशारा किया.

ऑपरेटरने एक पलकीभी देरी ना करते हूए इलेक्ट्रीक चेअर पॅनलपर एक लाल बटन दबाया.

थोडी देरमें ऑपरेटर 'काम तमाम होगया' इस अंदाजमें उस अधिकारीके तरफ देखने लगा.

'' डॉक्टर '' उस अधिकारीने डॉक्टरको पुकारा.

डॉक्टर झटसे इलेक्ट्रीक चेअर चेंबरके पास गया, चेंबर खोला और अंदर चला गया.

'' सर ही इज डेड'' अंदरसे डॉक्टरका आवाज आगया.

वह अधिकारी एकदमसे मुड गया और वह जगह छोडकर वहांसे चला गया. वह ऑपरेटर वहीं बगलमें एक कमरेमें चला गया. वहा बाजुमेंही खडा एक स्टाफ मेंबर उस चेंबरमें, शायद चेंबर साफ करनेके लिए घुस गया. सबकुछ कैसे किसी मशिनकी तरह चल रहा था. उन सबको भलेही वह हमेशाका हो फिरभी जॉनके लिए वह हमेशा होनेवाली बाते नही थी. वह अबभी वही खडा एक एक चिज और एक एक हो रही बातें ध्यानसे निहार रहा था.

अब डॉक्टरभी वहांसे चला गया.

वहां सिर्फ सॅम अकेलाही बचा. वह अबभी वहां चूपचाप खडा था, उसके दिमागमें शायद कुछ अलगही चल रहा हो.

अचानक कोई जल्दी जल्दी उसके पिछेसे वहां आगया.

'' अच्छा.... हो गया है शायद '' पिछेस आवाज आया.

सॅमने मुडकर पिछे देखा और उसका मुहं आश्चर्यसे खुला का खुला ही रह गया. उसके सामने ऑपरेटर खडा था.

ये तो अभी अभी पॅनल ऑपरेट कर उस बगलके कमरेमे गया था...

फिर अभीके अभी ये इधर किधरसे आगया...

'' मुझे चिंता थी की मेरी अनुपस्थीमें पॅनल कौन ऑपरेट करेगा... '' वह ऑपरेटर बोला.

'' बाय द वे किसने ऑपरेट किया पॅनल?'' उस ऑपरेटरने सॅमको पुछा.

सॅमको एक के बाद एक आश्चर्यके धक्के लग रहे थे. .

सॅमने बगलके कमरेकी तरफ देखा.

'' किसने ऑपरेट किया मतलब ?... तुमनेही तो ऑपरेट किया '' सॅमने अविश्वासके साथ कहा.

'' क्या बात करते हो ?... मै तो अभी अभी यहां आ रहा हूं ..'' उस ऑपरेटरने कहा.

सॅमने फिरसे चौंककर उसकी तरफ देखा और फिर उस बगलके कमरेकी तरफ देखा जिसमें वह थोडी देर पहले गया था.

'' आवो मेरे साथ ...आवो '' सॅम उसे उस बगलके कमरेकी तरफ ले गया.

सॅमने उस कमरेका दरवाजा धकेला. दरवाजा अंदरसे बंद था. उसने दरवाजेपर नॉक किया. अंदरसे कोई प्रतिक्रिया नही थी. सॅम अब वह दरवाजा जोर जोरसे ठोकने लगा. फिरभी अंदरसे कोई प्रतिक्रिया नही थी. सॅम अपनी पुरी ताकदके साथ उस दरवाजेको धकेलने लगा. वह संभ्रममे पडा ऑपरेटरभी अब उसे धकेलनेमें मदद करने लगा.

जोर जोरसे धकेलकर और धक्के देकर आखिर सॅमने और उस ऑपरेटरने वह दरवाजा तोडा.

दरवाजा टूटतेही सॅम और वह ऑपरेटर जल्दी जल्दी कमरेमें घुस गए. उन्होने कमरेमें चारो तरफ अपनी नजरे दौडाई. कमरेमे कोई नही था. उन्होने एक दुसरेकी तरफ देखा. उस ऑपरेटरके चेहरेपर संभ्रमके भाव थे तो सॅमके चेहरेपर अगम्य ऐसे डरके भाव दिख रहे थे.

अचानक उपरसे कुछ निचे गिर गया. दोनोंने चौंककर देखा. वह एक काली बिल्ली थी, जिसने उपरसे छलांग लगाई थी. वह बिल्ली अब सॅमके एकदम सामने खडी होगई और एकटक सॅमकी तरफ देखने लगी. वे आश्चर्यसे मुंह खोलकर उस बिल्लीकी तरफ देखने लगे. धीरे धीरे उस काली बिल्लीका रुपांतर नॅन्सीके सडे हूए मृतदेहमें होने लगा. उस ऑपरेटरके तो हाथपैर कांपने लगे थे. सॅमभी बर्फ जम जाए ऐसा एकदम स्थिर और स्तब्ध होकर उसके सामने जो घट रहा था वह देख रहा था. धीरे धीरे उस सडे हूए मृतदेह का रुपांतर एक सुंदर, जवान तरुणीमें हो गया. हां, वह नॅन्सीही थी. अब उसके चेहरेपर एक सुकून झलक रहा था. देखते देखते उसके आंखोसे दो बडे बडे आंसू निकलकर गालोंपर बहने लगे और धीरे धीरे वह वहांसे अदृष्य होकर गायब होगई.


समाप्त

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 52

डिटेक्टीव सॅम कारागृहमें ऍंथोनीके सामने बैठा था. डिटेक्टिव सॅमको कैसे बात शुरु करे कुछ समझमें नही आ रहा था. आखिर उसने कहा, '' मुझे इतने दिनोंसे एक सवालका जवाब नही मिल रहा था की वह सब नॅन्सीने मुझेही क्यों बताया ?''

'' नॅन्सी? ... आप क्या बोल रहे हो ... वह तो मर गई''

'' हां यह थोडी अजिब और अद्भूत बात है ... लेकिन उसकी रुह अभीभी जिंदा है '' सॅमने कहा.

'' डिटेक्टीव सॅम ... आप यह क्या बोल रहे हो ... आप मेरा मजाक तो नही उडा रहे हो ?''

'' नही मै जो कुछ बोल रहा हूं, जो कुछ बता रहा हूं, वह सब मैने अनुभव किया हूवा है ... तुम्हारा इसपर यकिन ना करना लाजमी है ... मुझेभी शुरु शुरुमें यकिन नही हूवा था...'' सॅमने कहा.

सॅम इतनी गंभीरतासे बोल रहा है यह देखकर ऍंथोनीने वह क्या बोलता है यह पहले ठिकसे सुननेका फैसला किया.

'' तुम्हे जब कोर्टमें जजने सजा सुनाई तब मुझे पता चला की नॅन्सीने वह सब बतानेके लिए मुझे क्यों चुना?'' सॅमने कहा.

'' क्या बतानेके लिए ?'' ऍंथोनीने पुछा.

'' की तुमनेही उन चार लोगोंको नॅन्सीका और जॉनका पता दिया. ''

'' नही मैने नही दिया '' ऍंथोनीने अपना बचाव करनेकी कोशीश की.

'' झूट मत बोल '' सॅमने आवाज चढाकर कहा.

ऍंथोनीने अपनी गर्दन झुकाई.

अब छूपानेमें क्या मतलब है ?...

सजा तो मुझे हो चूकी है ...

'' लेकिन यह सब तुम्हे कैसे पता चला ?'' ऍंथोनीने पुछा.

'' मुझे नॅन्सीने बताया '' सॅमने कहा.

'' लेकिन वहतो मर गई '' ऍंथोनीने आश्चर्यसे कहा.

'' उसकी रुहने ... उसके भूतने मुझे बताया '' सॅमने कहा.

ऍंथोनी उसकी तरफ अविश्वाससे देख रहा था.

'' उसने मुझे इसलिए बताया की मेरे जरिये तुम्हे यह सब पता चले की जोभी सब कत्ल हो चूके है... वे असलमें उसने, नॅन्सीने किये थे... और वे खुन तुमने किये ऐसा सिर्फ आभास उसने तैयार किया था..... और उस कत्लके लिए तुम्हे जो सजा हो रही है ... वह नॅन्सीकीही इच्छा है और इस तरहसे उसने तुमपरभी अपना बदला लिया है ...''

'' ऐसा कैसे हो सकता है ... वे सब कत्ल मैने मेरे बिल्लीके सहारे... वह इलेक्टॉनिक्स, वायरलेस ट्रान्समिशन सब मैने बनाया था... '' ऍंथोनीने सॅमको विश्वास देनेकी कोशीश करते हूए कहा.

'' लेकिन जब मैने तुम्हारा वह इलेक्टॉनिक्स, वायरलेस ट्रॉन्समिशन जांचकर देखा तब वह वेअरहाऊसके दरवाजेके बाहरतकभी काम नही कर पा रहा था... तो फिर उन चारोंके घरोंतक वह सिग्नल्स पहूंचनेका सवालही नही आता '' सॅमने कहा.

'' इतनाही नही तो उसने ऐसी कुछ बाते मुझे बताई की वह तुम्हारे अलावा और किसीकोभी पता नही है...' सॅमने कहा.

'' जैसे ?'' ऍंन्थोनीने पुछा. .

'' जैसे ... नॅन्सी और जॉनने, जब वे चार लोग उनके पिछे पडे हूए थे और वे ड्रेनेज पाईपमें छूपे थे, तब उन्होने तुझे फोन किया वह ... बादमें तुमने उन्हे कोई टॅक्सी पकडकर हिल्टन हॉटेल जानेके लिए कहा वह... .. और तुमने उनका किया हूवा विश्वासघात... दो- दो हजार डॉलर्स हरएकके पास लेनेके बदले तुमने उन चारोंको दिया हूवा उनका पता... और तुम जब पैसे लेनेके लिए गये थे तब उन्होने तुम्हे इस केसमें अटकानेकी दी धमकी ... '' सॅम एक एक कर सब उगल रहा था.

अब ऍंथोनी मुंह और आंखे फाडकर आश्चर्यसे और डरसे सॅमकी तरफ देख रहा था. एक के बाद एक आश्चर्यके धक्के उसे मिल रहे थे. वह सोचने लगा.

यह जो सब जानकारी उसने दी थी वह उसके अलावा और किसीको मालूम होनेका कोई सवालही पैदा नही होता था. ..

फिर यह बाते सॅमको कैसे पता चली ?..

दुसरी एक महत्वपुर्ण बात यह थी की फोन कर उन चार लोगोंको नॅन्सी और जॉनका पता बतानेकी बात सॅमको कैसे पता चली ...

और अब उसके कहे अनुसार सिग्नल ट्रान्समिशन दरवाजेके बाहरतकभी नही पहूंच पा रहा था...

ऍंथोनी अब गहन सोचमें पड गया.

उसे सॅम जो कह रहा था उसमें सच्चाई नजर आ रही थी...

लेकिन यह कैसे मुमकीन है ? ...

ऍंथोनी भूतप्रेतमें कभी यकिन नही करता था.

उसे अहसास हो रहा था की जाने अनजानेमें उसका शरीर कांप रहा है.

'' आप जो कह रहे हो, यह अगर सच माना जाए .... तो नॅन्सीने डायरेक्ट उन चार लोगोंको और फिर बादमें मुझे, ऐसा क्यो नही मारा ... इतना नाटक करनेकी क्या जरुरत थी ...'' अबभी ऍंथोनीका दिल नही मान रहा था.

'' उसने ऐसा क्यो किया ? यह वही जाने... लेकिन यह सच है की उसनेही उन चार लोगोंको मारकर तुम्हे उनके कत्लके इल्जाममें फंसाया है... '' सॅमने कहा.

ऍंथोनी अब एकदम खामोश और गंभीर हो गया था. कत्लका एक एक प्रसंग उसके आंखोके सामनेसे जाने लगा. और हर प्रसंगमें अब उसे नॅन्सीकी अदृष्य उपस्थीतीका अहसास होने लगा था.

'' लेकिन मुझे एक बात नही समझमें आती... की तुमने कोर्टमें नॅन्सीका बदला लेनेके लिए उनको जानसे मारा ऐसा झुठ क्यों कहा?'' सॅमने आखिर उसकी दुखती रगपर हाथ रखा था.

ऍंथोनी गंभीर था, वह और गंभीर हो गया. अब उसकी आंखोमें आंसू आने लगे थे.

उसने सॅमका हाथ अपने हाथमें लिया और उसके संयमका बांध टूट गया. वह उसके हाथपर अपना सर रखकर फुटफुटकर रोने लगा.

'' उसका कत्ल हो ऐसी मेरी बिलकुल इच्छा नही थी. ... लेकिन उन हरामजादोंने उसे जानसे मार दिया... मैने नॅन्सीको प्रपोज किया और उसने इनकार किया था ... इसलिए उसका गरुर तोडनेकी मैने ठान ली थी... और उस दिन जॉनका फोन आया और वह चान्स मुझे मिल गया... उसका सिर्फ बलात्कार हो और उसका गरुर टूटे इतनीही मेरी इच्छा थी... लेकिन बादमें कुछ अलगही घटनाए घटती गई... उसका खुन हो गया.... उन चारोंने मुझेभी उसमें घसिटनेकी धमकी दी ... इसलिए मैने उन चारोंको खतम करनेकी ठान ली.... और फिर मैने उनका एक एक कर कत्ल किया... '' ऍंथोनी रोते हूए सब बयान कर रहा था.

सॅमको क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था.

थोडी देर बाद ऍंथोनी शांत हो गया.

तब सॅमने फिरसे पुछा, '' लेकिन तुमने कोर्टमें नॅन्सीका बदला लेनेके लिए उन चारोंको मारा ऐसा झूठ क्यो कहा. ?''

फिरसे रोती हुई सुरत बनाते हूए ऍंथोनीने कहा, '' बोलता हूं... लेकिन प्लीज वह तुम्हारे और मेरे बिचमेंही रखीए... और किसीको पता नही चलना चाहिए... ''

'' ठिक है मै किसीको नही बताऊंगा '' सॅमने आश्वासन दिया.

'' मैने नॅन्सीके साथ जो किया वह मेरे घरवालोंको और पुरी दुनियाको पता चला तो मेरी उनके सामने क्या इज्जत रहेगी... अब मुझे फांसी हो रही है ... वह मेरे प्रेमीकाके बदलेके तौर पर किये कत्लके लिए ऐसी भलेही उनको गलत फहमी हो लेकिन आज उनके दिलमें मेरे लिए इज्जत और आदर है... वह इज्जत कमसे कम मेरे मरने तक बरकरार रहे ... और वह आपही कर सकते है ... '' ऍंथोनीने अब सॅमके पैर पकड लिए थे.

सॅमको उसकी ऐसी हिन दिन स्थिती देखकर उसपर तरसभी आ रहा था. उसे क्या किया जाए कुछ सुझ नही रहा था.

लेकिन नही ... कुछभी हूवा हो फिरभी ऍंथोनीने किया हुवा गुनाह माफीके लायक नही है. ....

उसके सरपर रखनेके लिए सामने किया हूवा हाथ उसने वैसाही पिछे खिंच लिया. ऍंथोनीने पकडे हूए उसके पैरभी उसने पिछे खिंच लिए. वह उठ गया और भारी कदमोंसे बाहर जानेके लिए दरवाजेके पास गया. चलते हूए एकदमसे दरवाजेके पास रुक गया और पिछे मुडकर उसने ऍंन्थोनीसे कहा, "" नॅन्सीको तुम्हे एक बात बतानेकी इच्छा है ''

'' कौनसी ?'' ऍंन्थोनीने अपनी आंखे पोछते हूए भारी आवाजमें पुछा.

'' की वह तुम्हे कभीभी माफ नही कर पायेगी ''

सॅम वहांसे तेजीसे, लंबे लंबे कदम भरते हूए निकल गया और ऍंन्थोनी डरके मारे फिके पडे, और मायूस चेहरेसे सॅमको जाता हूवा देखता रहा.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 51

डिटेक्टिव्ह सॅम वेअरहाऊसमें अबभी जमिनपर पडा हूवा था. लेकिन अब वह उस ट्रान्स स्टेटसे बाहर आ गया था. उसने झटसे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखा. अब कॉम्प्यूटर बंद था. उसने वेअरहाउसमें इधर उधर देखा. अब बाहर सवेरा हो गया था और अंदर वेअरहाऊसमें अच्छी खासी रोशनी आ रही थी. कुछ देर पहले जोर जोरसे बह रहे हवाके झोकेभी थम गए थे. वह अब उठकर खडा हो गया और सोचने लगा. इतनेमें उसका खयाल कुछ देर पहले निचे गिरे हूए फोटो फ्रेमकी तरफ गया. उसने वह फ्रेम उठाई और सिधी कर देखी. वह एक ग्रुप फोटो था. ऍंथोनी और उन चार नॅन्सीके कातिलोंका.

उसे अब एक एक बात एकदम स्पष्ट हो चूकी थी. वह जब निचे पडा हूवा था और उसे जो एक एक दृष्य दिखाई दिया था, शायद नॅन्सीके अदृष्य और अतृप्त रुहको वह उसे बताना था. लेकिन उसे वह बतानेकी जरुरत क्यो पडी थी? वह उसे ना बताए हूएभी नॅन्सी जो चाहिए वह अबतक हासिल करते आई थी और आगेभी हासिल कर सकती थी.

फिर उसने यह उसे क्यो बताया था ?...

जरुर कोई वजह होगी ?...

इसमें उसका जरुर कोई उद्देश होगा ...


ऍंथोनीके केसकी काफी दिनोंसे कोर्टमें कार्यवाही चल रही थी. हर बार सॅम कोर्टमें कामकाजके दौरान हाजिर रहता था और वहा बैठकर सब कार्यवाही सुनता था. इधर केसका कामकाज चलता था और उसके दिमागमें वह एकही सवाल घुमते रहता था की नॅन्सीने वह सब बतानेके लिए उसेही क्यो चुना होगा? और नॅन्सीका वह सब उसे बतानेका क्या मकसद रहा होगा ?

की वह सब कुछ उसने कोर्टमें बयान करना चाहिए ऐसा तो नॅन्सीको अपेक्षीत नही होगा ?...

लेकिन अगर वह सब उसने कोर्टमें बताया तो उसपर कौन विश्वास करनेवाला था ?...

उलटा एक जिम्मेदार डिटेक्टीव्हके मुंहसे ऐसी अंधश्रध्दायुक्त बातें सुनकर लोगोंने उसे न जाने क्या क्या कहा होता...

सिर्फ कहा सुनायाही नही तो उसका आगेका पुरा करीयर सवालोंके और शकके घेरेमें आया होता...

वह सोच रहा था. लेकिन आज उसे विचारोंके जंजालमें नही फसना था. आज उसे कोर्टकी कार्यवाही पुरी तरह ध्यान देकर सुननी थी. क्योंकी आज केसचा नतिजा निकलने वाला था.

आखिर इतनी दिनोंसे घसिटते हूए चल रहे केसके सब जाब जबाब हो चुके थे. सॅमकीभी जबानी हो चूकी थी. उसने जो साबीत किया जा सकता था वह सब बताया था.

आखिर वह वक्त आया था. वह पल आ चूका था जिसकी सारे लोग बडी बेचैनीसे राह देख रहे थे - केसके परिणामकी. सॅम अपने कुर्सीपर बैठकर जज क्या फैसला सुनाता है यह सुननेके लिए जजकी तरफ देखने लगा. वैसे उसके चेहरेपर किसीभी भावका अस्तित्व नही था. कोर्टरुममें उपस्थित बाकी सब लोग सांस रोककर जजका आखरी फैसला सुननेके लिए बेताब थे.

जज फैसला सुनाने लगा -

'' सारे सबुत, सारे जाबजवाब, और खुद मि. ऍंथोनी क्लार्कने दिया स्टेटमेंटकी ओर ध्यान देते हूए कोर्ट इस नतिजेपर पहूंचा है की मि. स्टिव्हन स्मिथ, मि. पॉल रोबर्टस, मि. रोनाल्ड पार्कर और मि. क्रिस्तोफर अंडरसन इन चारोभी कत्लमें मि. ऍंथोनी क्लार्क मुजरीम पाया गया है. उसने वह चारो खुन जानबुझकर और पुरी योजना और सतर्कताके साथ किए है. ''

फैसला सुनानेसे पहले जजने एक बडा पॉज लिया. कोर्टमें उपस्थित लोगोंपर अपनी नजर दौडाई और आगे अपना फैसला सुनाया -

'' ...इसलिए कोर्ट मुजरीम ऍंथोनी क्लार्कको देहांतकी सजा सुनाता है ''

जजने आखरी फैसला सुनाया था. इस फैसलेका जिन चार लोगोंके कत्ल हूए थे उनके रिश्तेदारोंने तालियां बजाकर स्वागत किया तो काफी लोगोंको यह फैसला पसंद नही आया. नॅन्सीका भाई जॉर्ज तो नाराजगी जाहिर करते हूए कोर्टरुमसे उठकर चला गया. लेकिन डिटेक्टीव सॅमके चेहरेपर कोई भाव नही उभरे थे. ना खुशीके ना गमके. लेकिन फैसला सुननेके बाद सॅमको काफी दिनोंसे सतारहे सवालका जवाब मिल गया था.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 50

ऍंथोनीने इस मसलेको पुरी तरह आर या पार करनेका मनही मन ठान लिया था. आखिर उसे अपनी चमडी बचाना जरुरी था. क्या करना है यह उसने मनही मन तय किया था. लेकिन पहले एकबार नॅन्सीके भाईको मिलना उसे जरुरी लग रहा था. वैसे नॅन्सीके क्लासमेटके हैसीयतसे वह उसे थोडाबहुत जानता था. जॉर्जको पुरे मसलेकी कहांतक जानकारी है और यह जानकारी उसे कहांसे मिली यह उसे मालूम करना था. और सबसे महत्वपुर्ण जॉर्जको कही उसपर शक तो नही यह उसे जानना था.

ऍंथोनी जॉर्जके दरवाजेके सामने आकर खडा होगया. वह अब बेल दबानेही वाला था इतनेमें बडे जोरसे और बडे अजीब ढंगसे कोई चिखा. एक पलके लिए तो वह चौंकही गया.... की क्या हूवा. उसका बेल दबानेवाला हाथ डरके मारे पिछे खिंच गया.

मामला कुछ सिरीयस लगता है ...

इसलिए वह दरवाजेकी बेल न दबाते हूए जॉर्जके मकानके खिडकीके पास गया और उसने अंदर झांककर देखा...


... अंदर जॉर्जके हाथमें एक गुड्डा पकडा हूवा था. उस गुड्डेकी तरफ गुस्सेसे और घृणासे देखते हूए फिरसे वह अजिब तरहसे चिखा. ऍंथोनीको उस चिखके बाद वातावरण मे फैला सन्नाटा गुढ और भयानक लग रहा था.


ऍंथोनी अबभी खिडकीसे यह क्या माजरा है यह जाननेकी कोशीश कर रहा था. अंदर चलरहे विधीसे वह उसे कोई जादूटोना होगा ऐसा लग रहा था. लेकिन उसका जादूटोनेपर विश्वास नही था. वह अंदर चल रहा विधी ध्यान देकर देखने लगा...


... अंदर अब जॉर्ज उस गुड्डेसे बोलने लगा, '' स्टिव्हन... अब तू मरनेके लिए तैयार हो जा ''

अचानक जॉर्जने आवाज बदला और मानो वह उस गुड्डेका संवाद, जिसे वह स्टिव्हन समझ रहा था, बोलने लगा, '' नही ... मुझे मरना नही है ... जॉर्ज मै तुम्हारे पैर पडता हू... तुम्हारी माफी मांगता हू ... तु जो बोलेगा वह करनेके लिए मै तैयार हूं ... सिर्फ मुझ पर तरस खा और मुझे माफ करदे ...''

जॉर्ज फिरसे पुर्ववत अपने आवाजमें अपनी वाक्य बोलने लगा, '' तुम मेरे लिए कुछभी कर सकते हो? ... तू मेरे बहनको, नॅन्सीको वापस ला सकता है ?''

'' नही ... वह मै कैसे कर सकता हूं ... वह मेरे पहूंच के परे है ... वह छोडकर तुम कुछभी मांगो... मै तुम्हे वचन देता हूं की वह मै तुम्हारे लिए करुंगा... '' फिरसे जॉर्ज आवाज बदलकर उस गुड्डेके यानीकी स्टिव्हनके संवाद बोलने लगा.

'' तू मेरे लिए कुछभी कर सकता है?.... तो फिर तैयार हो जा... मुझे तुम्हारी जान चाहिए... '' जॉर्ज फिरसे आवाज बदलकर उसका खुदका संवाद बोलने लगा.


खिडकीसे यह सब ऍंथोनी काफी देरसे देख रह था. वह देखते हूए अचानक उसके दिमागमें एक योजना आ गई. उसके चेहरेपर अब एक वहशी मुस्कान दिखने लगी. वह खिडकीसे हट गया और दरवाजेके पास गया. उसने कुछ सोचा और वह वैसाही जॉर्जके दरवाजेकी बेल ना बजाते हूएही वहासे वापस चला गया.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 49

ऍंथोनी कॉम्प्यूटरपर बैठा था और एक काली बिल्ली जिसके गलेमें काला बेल्ट पहना था वह उसके इर्दगिर्द खेल रही थी. जिस टेबलपर कॉम्प्यूटर रखा था उस टेबलपर वायरके टूकडे, बिल्लीके गलेमे पहननेके बेल्टस, और कुछ इलेक्ट्रनिक्सके छोटे छोटे उपकरण इधर उधर फैले हूए थे. ऍंथोनीका जिस दिवारकी तरफ मुंह था उस दिवारपर न्यूरॉलॉजी और ब्रेनकी तरह तरहकी तस्वीरे लटकाई हूई थी.

ऍंथोनीने बिजलीकी चपलतासे कीबोर्डके और माऊसके कुछ बटन्स दबाए तो उसके कॉम्प्यूटर स्क्रिनपर एक सॉफ्टवेअर ओपन हो गया. उस सॉफ्टवेअरकेभी अलग अलग मेनु, अलग अलग बटन्स और टेक्स्ट बॉक्सेस स्क्रिनपर दिखने लगे. उस सॉफ्टवेअरके अलग अलग बटन्समेसे एक बटनपर ऍंथोनीने माऊससे क्लीक किया. उस बटनपर 'अटॅक' ऐसा लिखा हूवा था. अचानक उसके इर्दगिर्द एक टेडीबिअरके साथ खेल रहे उस बिल्लीने उग्र स्वरुप इख्तीयार लिया और वह उस टेडी बिअरपर टूट पडी. इतनी क्रुरतासे वह बिल्ली उस टेडी बिअरपर टूट पडी की कुछ क्षणमेंही उसने उस टेडी बिअरके अपने दातसे फाडकर और तोडकर छोटे छोटे टूकडे कर दिए. बिल्ली जब उस टेडी बिअरपर हमला कर रही थी तब ऍंथोनी बडे अभीमानसे उस बिल्लीकी तरफ देख रहा था. आखिर जब उस बिल्लीने उस टेडी बिअरको पुरी तरहसे फाड दिया और तोड दिया, एक विजयी मुस्कुराहट ऍंथोनीके चेहरेपर फैल गई.

इतनेमें अचानक ऍंथोनीको सामने दरवाजेके पास किसी चिजकी आहट हो गई. ऍंथोनी सबकुछ वही वैसाही छोडकर सामने दरवाजेके पास गया. दरवाजा खोला तो उसने दरवाजेमें सामने न्यूजपेपर पडा पाया. उसने उसे उठाया, न्यूज पेपरके पन्ने पलटते हूए वह घरमें वापस आया और पन्ने पलटते हूएही दरवाजा बंद कर लिया. अचानक न्यूज पेपरके एक खबरने उसका ध्यान आकर्षीत किया. वह खबर वह गंभीरतासे पढते हूए अपने कॉम्प्यूटरके पास आया. वह कुर्सीपर बैठ गया और वह खबर ध्यान लगाकर पढने लगा.

वह जो खबर पढ रहा था उसका हेडींग था ' नॅन्सीके भाईने 'उन' चारोंपर केस कर दी '.

और उस खबरके निचेही क्रिस्तोफर, रोनॉल्ड, पॉल और स्टिव्हनके फोटो थे. उसने वह पेपर सामने टेबलपर कॉम्प्यूटरके पास रख दिया और वह सोचमें डूब गया. नॅन्सीको उन चारोंने बलात्कार कर मारनेके बाद जब वह उनके पास पैसे मांगनेके लिए गया तबका संवाद उसे याद आने लगा ....


'' कही तुम लोगोंने उस लडकीका खुन तो नही किया ?'' ऍंथोनी किसी तरहसे हिम्मत जुटाकर बोला.

'' तुम नही ... हम ... हम सब लोगोंने '' क्रिस्तोफरने उसके वाक्यको सुधारा.

'' एक मिनट ... एक मिनट... तुम लोगोने अगर उस लडकीको मारा होगा... तो यहां कहा मेरा संबंध आता है '' ऍंथोनीने अपना बचाव करते हूए कहा.

'' देखो .. अगर पुलिसने हमें पकड लिया... तो वह हमें पुछेंगे... की लडकीका अता पता तुम्हे किसने दिया...?..'' रोनॉल्डने कहा.

''... तो हमने भलेही ना बतानेकी ठान ली फिरभी हमें बतानाही पडेगा... '' पॉलने अधूरा वाक्य पुरा किया.

'' ... की हमें हमारे जिगरी दोस्त ऍंथोनीने मदत की '' पॉल शराबके नशेमें बडबडाया.

'' देखो .. तुम लोग बिना वजह मुझे इसमें लपेट रहे हो.. '' ऍंथोनी अब अपना बचाव करने लगा था.

"' लेकिन दोस्तो ... एक बडी अजिब चिज होनेवाली है '' क्रिस्तोफरने मंद मंद मुस्कुराते हूए कहा.

'' कौनसी ?'' रोनॉल्डने पुछा.

'' की पुलिसने हमें अगर पकडा और बादमें हमें फांसी होगई ..'' क्रिस्तोफरने बिचमें रुककर अपने दोस्तोंकी तरफ देखा. वे एकदम सिरीयस हो गए थे.

'' अबे ... सालो... मेरा मतलब है अगर हमें फांसी होगई ...'' क्रिस्तोफरने स्टिव्हनकी पिठ हलकेसे थपथपाते हूए कहा.

पॉल शराबका ग्लास सरपर रखकर अजीब तरहसे नाचते हूए बोला, '' हां ... हां अगर हमें फांसी होगई तो...''

ऍंन्थोनीको छोडकर सारे लोग उसके साथ हंसने लगे.

फिरसे कमरेका वातावरण पहले जैसा होगया.

''हां तो अगर हमें फांसी होगई ... तो हमें उसके बारेंमे कुछ खांस बुरा नही लगेगा... क्योंकी आखिर हमने मिठाई खाई है ... लेकिन इस बेचारे ऍंथोनीको मिठाई हलकीसी चखनेकोभी नही मिली ... उसे मुफ्तमेंही फांसीपर लटकना होगा. '' क्रिस्तोफरने कहा.

कमरेंमे सब लोग, सिर्फ एक ऍंन्थोनीको छोड, जोर जोरसे हंसने लगे.


..... ऍंथोनी अपने दिमागमें चल रहे सोचके चक्रसे बाहर आगया.

अब अगर यह केस ऐसीही चलती रही तो कभीना कभी क्रिस्तोफर, रोनॉल्ड, पॉल और स्टिव्हन अपनेको इसमें घसीटने वाले है...

फिर हमभी इस केसमें फंस जायेंगे...

नही ऐसा कतई नही होना चाहिए... .

मुझे कुछ तो रास्ता निकालनाही पडेगा ...

सोचते हूए ऍंथोनी अपने इर्दगिर्द खेल रहे उस बिल्लीकी तरफ देख रहा था. अचानक एक विचार उसके दिमागमें कौंध गया और उसके चेहरेपर एक गुढ मुस्कुराहट दिखने लगी.

अगर मैने इन चारोंको रास्ते से हटाया तो कैसा रहेगा?...

ना रहेगा बास न बजेगी बांसुरी...


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 48

क्रिस्तोफर, रोनॉल्ड, पॉल, स्टिव्हन और ऍंथोनी टेबलके इर्दगिर्द बैठकर व्हिस्कीके जामपर जाम खाली कर रहे थे. क्रिस्तोफर और उसके तिन दोस्त पिकर टून होगए थे. ऍंथोनी अपनी हदमें रहकरही पी रहा था.

'' फिर ऍंथोनी ... इतनी रात गए इधर किधर घुम रहे हो?.. '' स्टिव्हनने ऍंथोनीके पिठपर हलकेसे मारते हूए पुछा.

उसे अच्छी खासी चढ गई थी ऐसा लग रहा था.

'' सच कहूं तो मै तुम्हारे यहा उस ट्रीटके बारेमें बात करनेके लिए आया था. '' ऍंथोनीने मौके का फायदा उठाते हूए असली बातपर आते हूए कहा.

'' कौनसी ट्रीट?'' पॉलने पुछा.

एकतो उसके खयालमें नही आया था या वह वैसा जतानेकी कोशीश कर रहा था.

'' अबे पगले... वह उस लडकीके बारेमें बोल रहा है '' ऍंथोनी बात स्पष्ट करनेके पहलेही रोनॉल्ड बिचमें बोला.

'' बाय द वे... तुम्हे ट्रीटका मजा आया की नही '' ऍंथोनीने पुछा.

सबलोग एकदम स्तब्ध, शांत और सिरीयस होगए. ऍंथोनी संभ्रममें उनके चेहरेकी तरफ देखने लगा.

'' देखो ... तुम्हारी ट्रीट शुरु शुरुमें अच्छी लगी ... लेकिन आखिरमें... ''

'' वह होता हैना की कभी कभी सुप शुरु शुरुमें अच्छा लगता है लेकिन आखिरमें तलेमें बैठे नमककी वजहसे उसका मजा किरकिरा हो जाता है....'' रोनॉल्ड क्रिस्तोफरका वाक्य पुरा होनेके पहलेही बोला.

'' तुम लोग क्या बोल रहे हो यह मुझेतो कुछ समझमें नही आ रहा है.. '' ऍंथोनी उसके चेहरेकी तरफ संभ्रमभरी दशामें देखते हूए बोला.

स्टिव्हनने क्रिस्तोफरकी तरफ देखते हूए पुछा, '' क्या इसको बोला जाये?''

'' अरे क्यो नही ... उसे मालूम कर लेने का हक है ... आखिर उस कार्यमें वह अपना बराबरका हिसेदार था... .'' क्रिस्तोफरने कहा.

'' कार्य ? ... कैसा कार्य ?'' ऍंथोनीने बेचैन होकर पुछा. .

'' खुन'' रोनॉल्डने ठंडे लहजेमें कहा.

'' ए उसे खुन मत बोल .... वह एक ऍक्सीडेंट था.'' पॉलने बिचमें टोका.

ऍंथोनीका चेहरा डरके मारे फिका पड चूका था.

'' कही तुम लोगोंने उस लडकीका खुन तो नही किया ?'' ऍंथोनी किसी तरहसे हिम्मत जुटाकर बोला.

'' तुम नही ... हम ... हम सब लोगोंने '' क्रिस्तोफरने उसके वाक्यको सुधारा.

'' एक मिनट ... एक मिनट... तुम लोगोने अगर उस लडकीको मारा होगा... तो यहां कहा मेरा संबंध आता है '' ऍंथोनीने अपना बचाव करते हूए कहा.

'' देखो .. अगर पुलिसने हमें पकड लिया... तो वह हमें पुछेंगे... की लडकीका अता पता तुम्हे किसने दिया...?..'' रोनॉल्डने कहा.

''... तो हमने भलेही ना बतानेका ठान लिया फिरभी हमें बतानाही पडेगा... '' पॉलने अधूरा वाक्य पुरा किया.

'' ... की हमें हमारे जिगरी दोस्त ऍंथोनीने मदत की '' पॉल शराबके नशेमें बडबडाया.

'' देखो .. तुम लोग बिना वजह मुझे इसमें लपेट रहे हो.. '' ऍंथोनी अब अपना बचाव करने लगा था.

"' लेकिन दोस्तो ... एक बडी अजिब चिज होनेवाली है '' क्रिस्तोफरने मंद मंद मुस्कुराते हूए कहा.

'' कौनसी ?'' रोनॉल्डने पुछा.

'' की पुलिसने हमें पकडा और बादमें हमें फांसी होगई ..'' क्रिस्तोफरने बिचमें रुककर अपने दोस्तोंकी तरफ देखा. वे एकदम सिरीयस हो गए थे.

'' अबे ... सालो... मेरा मतलब है अगर हमें फांसी होगई ...'' क्रिस्तोफरने स्टिव्हनकी पिठ हलकेसे थपथपाते हूए कहा.

पॉल शराबका ग्लास सरपर रखकर अजीब तरहसे नाचते हूए बोला, '' हां ... हां अगर हमें फांसी होगई तो...''

ऍंन्थोनीको छोडकर सारे लोग उसके साथ हंसने लगे.

फिरसे कमरेका वातावरण पहले जैसा होगया.

''हां तो अगर हमें फांसी होगई ... तो हमें उसके बारेंमे कुछ खांस बुरा नही लगेगा... क्योंकी आखिर हमने मिठाई खाई है ... लेकिन उस बेचारे ऍंथोनीको मिठाई हलकीसी चखनेकोभी नही मिली ... उसे मुफ्तमेंही फांसीपर लटकना होगा. '' क्रिस्तोफरने कहा.

कमरेंमे सब लोग, सिर्फ एक ऍंन्थोनीको छोड, जोर जोरसे हंसने लगे.

'' सच कहूं तो मै यहां तुम्हारे हर एकके पाससे दो-दो हजार डॉलर्स लेनेके लिए आया था. '' ऍंथोनीने कहा.

'' दो-दो हजार डॉलर्स ? ... मेरे दोस्त अब यह सब भूल जा ... '' रोनॉल्डने कहा.

ऍंथोनी उसकी तरफ गुस्सेसे देखने लगा.

'' देख अगर सबकुछ ठिक हूवा होता तो हम तुम्हे कभी ना नही कहते... बल्की हमारी खुशीसे तुम्हे पैसे देते... लेकिन अब परिस्थीती बहुत अलग है... वह लडकीकी मौत होगई ..'' रोनॉल्ड उसे समझाबुझानेके स्वरमें बोला.

'' .. मतलब ऍक्सीडेंटली ..'' स्टिव्हनने बिचमेंही जोडा.

'' तो अब वह सब ठिकाने लगानेके लिए पैसा लगेगा. ...'' रोनॉल्डने कहा.

'' सच कहूं तो ... हमही तुम्हारेपास इस सबका निपटारा करनेके लिए पैसे मांगने वाले थे...'' पॉलने कहा.

फिर सब लोग, ऍंथोनीको छोडकर, जोर जोरसे हंसने लगे. पहलेही उन्हे चढ गई थी और अब वे उसकी मजाक उडा रहे थे.

ऍंथोनीके जबडे कस गए. गुस्सेसे वह उठ खडा हूवा और पैर पटकते हूए वहांसे चलते बना. दरवाजेसे बाहर निकलनेके बाद उसने गुस्सेसे दरवाजा जोरसे पटक दिया.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 47

क्रिस्तोफर, रोनॉल्ड, पॉल और स्टीव्हन एक पुराने मकानमें, एक टेबल के इर्दगिर्द बैठे हूए थे. उनके हाथमें आधे पिये हूए व्हिस्कीके जाम थे. चारोभी अपने अपने विचारोंमे खोए हूए व्हिस्की पी रहे थे. उनमें एक तणावपुर्ण सन्नाटा छाया हूवा था. .

'' उसे तुमने क्यों मारा ?'' रोनॉल्डने सन्नाटा तोडते हूए क्रिस्तोफरको सवाल किया.

वैसेतो चारोंमेसे किसीकी क्रिस्तोफरको इस तरहसे सवाल पुछनेकी हिम्मत नही थी. लेकिन नौबतही वैसी आगई थी. और पीनेकी वजहसे उनमें उतनी हिम्मत आगई थी.

'' ए वेवकुफकी तरह बडबड मत कर... मैने उसे मारा नही ... वह उस हादसेमें मारी गई..'' क्रिस्तोफरने बेफिक्र होकर कंधे उचकाते हूए कहा.

'' हादसेमें ?''

भलेही क्रिस्तोफर इस बारेंमे बेफिक्र है ऐसा जता रहा था फिरभी वह अंदरसे बेचैन था.

अपनी बेचैनी छूपानेके लिए उसने व्हिस्कीका एक बडा घूंट लिया, '' देखो ... वह कुछ जादाही चिल्ला रही थी इसलिए मैने उसका मुंह दबाकर बंद किया... और मुझे पताही नही चला की उसमें उसका नाकभी दबकर बंद होगया करके...''

'' फिर अब क्या किया जाएं ?'' स्टिव्हनने पुछा.

उन चारोंमे स्टिव्हन और पॉल सबसे जादा डरे हूए दिख रहे थे.

'' और अगर पुलिसने हमें पकड लिया तो ?'' पॉलने अपनी चिंता व्यक्त की.

'' देखो कुछभी हूवा नही है ऐसा व्यवहार करो... किसीने कुछ पुछाभी तो ध्यान रहे की हम कल रातसे यहां ताश खेल रहे है... फिरभी अगर कोई गडबड हूई तो हम उसमेंसेभी कुछ रास्ता निकालेंगे... और यह मत समझो की यह मेरी पहली बारी है ...की मैने किसीको मारा है '' क्रिस्तोफर झुटमुठका ढांढस बंधानेकी चेष्टा करते हूए बोला.

'' लेकिन वह तुमने मारा था ... और तब तुम्हे उन्हे मारनाही था '' रोनॉल्डने कहा.

'' उससे क्या फर्क पडता है ... मारना और हादसेमें मरना ... मरना मरना होता है ... '' क्रिस्तोफरने कहा.

उतनेमें दरवाजेपर किसीकी आहट सुनाई दी और किसीने दरवाजेपर हलकेसे नॉक किया.

कमरेके सब लोगोंका बोलना और पिना बंद होकर वे एकदम स्तब्ध होगए.

उन्होने एकदुसरेकी तरफ देखा.

कौन होगा ?...

पुलिसतो नही होंगे ?...

कमरेमें एकदम सन्नाटा छा गया.

क्रिस्तोफरने स्टीव्हनको कौन है यह देखनेके लिए इशारा किया.

स्टीव्हन धीरेसे चलनेका आवाज ना हो इसका खयाल रखते हूए दरवाजेके पास गया. बाहर कौन होगा इसका अंदाजा लिया और धीरेसे दरवाजा खोलकर तिरछा करते हूए उसमेंसे बाहर झांकने लगा. सामने ऍंथोनी था. स्टिव्हनने उसे अंदर आनेकेलिए इशारा कर अंदर लिया. जैसेही ऍंथोनी अंदर आया उसने फिरसे दरवाजा बंद कर लिया.

रोनॉल्डने और एक व्हिस्कीका जाम भरते हूए कहा, '' अरे.. आवो... बैठो ...जॉइन अवर कंपनी''

ऍंथोनी रोनॉल्डने ऑफर किया हूवा व्हिस्कीका जाम लेते हूए उनके साथ उनके सामने बैठ गया.

'' चिअर्स'' रोनॉल्डने उसका जाम ऍंन्थोनीके जामसे टकराते हूए कहा.

'' चिअर्स'', ऍंन्थोनीने वह जाम अपने मुंहको लगाया और वहभी उनके कंपनीमें शामील होगया.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 46

क्रिस्तोफर और उसके तिन दोस्त अबभी पागलोंकी तरह नॅन्सी और जॉनको ढूंढ रहे थे. आखिर ढूंढ ढूंढकर थकनेके बाद फिरसे जिस चौराहेसे उन्होने उन्हे ढूंढनेकी शुरवात की थी उस चौराहेपर क्रिस्तोफर और स्टिव्हन वापस आ गए. उनके पिछे पिछे बडी बडी सांसे लेते हूए सांसे फुला हूवा रोनॉल्ड आगया. 

'' मिल गई ? '' स्टीव्हनने पुछा. 

रोनॉल्डने सिर्फ ना मे सर हिलाया. 

'' सालोंको क्या आसमान खा गया या पाताल निगल गया?'' क्रिस्तोफर चिढकर बोला. 

इतनेमें उन्हे दुरसे पॉल उनकी ओर आता दिखाई दिया. उन्होने बडी आसकी साथ उसकी तरफ देखा. लेकिन उसने दुरसेही अपना अंगुठा निचे कर वे नही मिलनेका इशारा किया. 

'' सालों क्या बारा बजा हूवा मुंह लेकर आये हो... जावो उसे ढूंढो... और जबतक वह मिलती नही तबतक वपस मत आवो... '' क्रिस्तोफर गरज उठा. 

उतनेमें क्रिस्तोफरके फोनकी रिंग बजी. 

किस्तोफरने फोन उठाया और, '' हॅलो '' वह नाराजगीसेही फोनमें बोला.

'' हे... मै ऍंथोनी बोल रहा हूं ... '' उधरसे नॅन्सी और जॉनका क्लासमेट ऍंथोनी बोल रहा था. 

'' हां बोलो ऍंथोनी'' क्रिस्तोफर सपाट स्वरमें बोला. उसके स्वरमें उसका फोन आनेकी खुशीतो झलकती नही दिखाई दे रही थी. 

'' एक खुशीकी बात है ... मैने तुम्हारे लिए एक ट्रीट अरेंज की है '' उधरसे ऍंथोनी बोला. 

'' देखो ऍंथोनी ... अभी हमारा मुड कुछ ठिक नही है ... और तुम्हारी ट्रीट अटेंड करने इतनातो हैही नही.'' क्रिस्तोफरने कहा. 

'' अरे फिर तो यह ट्रीट तुम्हारा मुड जरुर ठिक करेगी ... पहले सुन तो लो... एक नया पंछी अपने शहरमें आया हूवा है ... फिलहाल मैने उसे खास तुम्हारे लिए एक महफुस जगह भेजा है... '' ऍंथोनीका उधरसे उत्साहसे भरा स्वर आया. 

'' पंछी ?... इस शहरमें नया ... एक मिनट ... एक मिनट... क्या वह उसके बॉयफ्रेंडके साथ है ?'' क्रिस्तोफरने पुछा. 

'' हां '' उधरसे ऍंथोनीने कहा. 

'' उसके गालपर हसनेके बाद डिंपल दिखने लगता है .?'' क्रिस्तोफरने विचारले.

'' हां '' उधरसे ऍंथोनीने कहा. 

'' उसके दाएं हाथपर शेरका टॅटूभी है ... बराबर'' क्रिस्तोफरका चेहरा खुशीसे खिलने लगा. 

'' हां .. लेकिन यह सब तुम्हे कैसे पता ?'' उधरसे ऍंथोनीने आश्चर्यसे पुछा. 

'' अरे वह तो वही लडकी है .... रोनॉल्ड, पॉल, स्टीव और मै सुबहसे जिसके पिछे थे... और अभी थोडी देर पहले वह हमें झांसा देकर यहां से गायब हो गई है ... लेकिन लगता है साली हमारे नसीबमेंही लिखी है ''

सबके चेहरे एकदम खुशीसे चमकने लगे. स्टीव्ह और पॉलके चेहरेपर तो खुशी समाये नही समा रही थी. 

'' सच?'' उधरसे ऍंथोनीभी आश्चर्यसे बोला. 

'' यार ऍंथोनी... आज तो तुमने मेरा दिल खुश कर दिया है ... इसे कहते है सच्चा दोस्त '' क्रिस्तोफरभी खुशीके मारे उत्तेजीत होकर बोल रहा था. 

'' अरे अभीतो हम उसे पता नही कहां कहां ढूंढ रहे थे... किधर है वह ?... सच कहूं... हम लोग उसके बदले तुम्हे जो चाहिए वह दे देगे '' क्रिस्तोफरने खुशीके मारे वादा किया. 

'' देखो ... फिर मुकर ना जाना '' ऍंथोनीने अविश्वासभरे स्वरमें कहा. 

'' अरे नही ... इट्स जेन्टलमन्स प्रामीस'' क्रिस्तोफर किसी राजाकी तरह खुश होकर बोला. 

'' दो हजार डॉलर्स ... हर एकके पाससे ... मंजूर?'' ऍंथोनीनेभी वक्तके तकाजेका फायदा लेनेकी ठान ली. 

'' मंजूर'' क्रिस्तोफरने बेफिक्र लहजेमें कहा. 


क्रमश:...

May 17, 2014

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 45

वेअरहाऊमे निचे मॉनिटरके सामने अचेतन अवस्थामें पडे सॅमके सामनेसे मानो एक एक प्रसंग फ्लॅशबॅककी तरह जाने लगा ....


.... नॅन्सी और जॉन रास्तेके किनारे पडे एक ड्रेनेज पाईपमें छिपे हुए थे. इतनेमे अचानक उन्हे उनकीतरफ आता हूवा किसीके दौडनेका आवाज सुनाई दिया. वे अब हिल डूल भी नही सकते थे. उन्होने अगर उन्हे ढूंढ लिया तो वे बुरी तरह उनके कब्जेमें फंसने वाले थे. उन्होने बिल्लीकी तरह अपनी आंखे मुंद ली और जितना हो सकता है उतना उस छोटीसी जगहमें सिकुडनेका प्रयास किया. उसके अलावा वे कर भी क्या सकते थे. ?

अचानक उनको अहसास हूवा की उनका पिछा करने वालोंमेसे एक दौडते हूए उनके पाईपके एकदम पास आकर पहूंचा है. वह नजदिक आतेही जॉन और नॅन्सी एकदम शांत होकर लगभग सांस रोके हूए स्तब्ध होकर वैसेही बैठे रहे. वह अब पाईपके काफी पास पहूंच गया था.

वह उन चारोंमेसेही एक, स्टीव्हन था. उसने इर्दगिर्द अपनी नजरें दौडाई.

'' कहां गायब होगए साले?'' वह खुदपरही झल्ला उठा.

इतनेमें स्टीव्हनका ध्यान पाईपकी तरफ गया.

जरुर साले इस पाईपमें छूपे होंगे....

उसने सोचा. वह पाईपके और पास गया. वह अब झुककर पाईपमें देखनेही वाला था की इतनेमें ...

'' स्टीव... जल्दी इधर आवो '' उधरसे क्रिस्तोफरने उसे आवाज दिया.

स्टीव्हन पाईपमें देखनेके लिए झुकते हूए रुक गया, उसने आवाज आया उस दिशामें देखा और पलटकर वह दौडते हूए उस दिशामें निकल गया.

जा रहे कदमोंका आवाज सुनतेही नॅन्सी और जॉनने राहतकी सांस ली.

स्टीव्हन जातेही जॉनने अपने जेबसे मोबाईल निकाला. उसने कोई उन्हे ट्रेस ना करे इसलिए फोन स्वीच ऑफ करके रखा था. उसने वह स्वीच ऑन किया और एक नंबर डायल किया.

'' किसको फोन कर रहे हो ?'' नॅन्सीने दबे स्वरमें पुछा.

'' अपना क्लासमेट ऍंन्थोनी... वह इसी गावका है ''

उतनेमें फोन लग गया, '' हॅलो''

'' अरे क्या जॉन कहांसे बोल रहे हो... सालो तुम लोग कहां गायब हो गए हो ... इधर सारे लोग कितने परेशान हो गए है ...'' उधरसे ऍंथोनीने कहा.

जॉनने उसे संक्षीप्तमें सब बताया और कहा, '' अरे हम यहां एक जगह फंसे हूए है ...''

'' फंसे ? कहां .?'' ऍंन्थोनीने पुछा.

'' अरे कुछ बदमाश हमारा पिछा कर रहे है ... हम लोग अब कहां है यह बताना जरा मुश्कील है....'' जॉन बोल रहा था. इतनेमें नॅन्सीने उसका ध्यान अपनी तरफ खिंचते हूए टॉवरकी तरफ इशारा किया.

'' ... हां यहांसे एक टॉवर दिख रहा है जिसपर घडी लगी हूई है ... उसके आसपासही कहीं हम छिपे हूए है...'' जॉनने उसे जानकारी दी.

'' अच्छा... अच्छा... चिंता मत करो, पहले अपना दिमाग शांत करो और अपने आपको संवारो... और इतने बडे शहरमें वे बदमाश तुम्हारा कुछ बिगाड सकते है यह डर दिलसे पुरी तरह निकाल दो... हां निकाल दिया? "' उधरसे ऍंन्थोनीने पुछा.

'' हां ठिक है...'' जॉनने कहा.

'' हं गुड... अब कोई टॅक्सी पकडो और उसे हिल्टन हॉटेलको ले जानेके लिए कहो... वह वही कही नजदिक उसी एरियामें है ...''

इतनेमें उन्हे इतनी देरसे कोई वाहन नही दिखा था, दैवयोगसे एक टॅक्सी उनकी तरफ आती हूई दिखाई दी.

'' टॅक्सी आयी है ... अच्छा तुम्हे मै बादमें फोन करता हूं ... '' जॉनने जल्दीसे फोन कट कर दिया.

वे दोनोभी जल्दी जल्दी पाईपके बाहर आगए और जॉनने टॅक्सीको रुकनेका इशारा किया. जैसेही टॅक्सी रुक गई वैसे दोनो टॅक्सीमें घुस गए.

'' हॉटेल हिल्टन'' जॉनने कहां और टॅक्सी फिरसे दौडने लगी.

टॅक्सी निकल गई तो दोनोंके जान में जान आ गई. उन्होने राहतकी सांस ली.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 44

संभ्रमकी स्थितीमें डिटेक्टिव सॅमने धीरे धीरे वेअरहाऊसमें प्रवेश किया. अंदर जानेके बाद वह इधर उधर देखते हूए उस बिल्लीको ढूंढने लगा. पहलेही अंधेरा और उपरसे वह बिल्ली काले रंग की. ढूंढना मुश्कील था. उसने वेअरहाऊसमें सब तरफ अपनी ढूंढती हूई नजर दौडाई. अब सुबह होनेको आई थी. इसलिए वेअरहाऊसमें थोडा थोडा उजाला हो गया था. एक जगह उसे धूलसे सनी हूई एक फाईल्स की गठरी दिखाई दी. वह उस फाइल्सके गठरीके पास गया. वह गठरी थोडी उंचाई पर रखी हूई थी. सॅमकी उत्सुकता बढ गई थी.

क्या होगा उस फाईल्समें..

जरुर केसके बारेमें और कुछ महत्वपुर्ण मुझे उस फाईल्समें मिल सकता है ...

वह अपने पैरके पंजे उंचे कर उस फाईल्सके गठरीतक पहूंचनेका प्रयास करने लगा. फिरभी वह वहांतक पहूंच नही पा रहा था. इसलिए वह उछलकर उस गठरीतक पहूंचनेका प्रयास करने लगा. उस गठरीतक पहूंचनेके प्रयासमें उसका धक्का लगकर उपरसे कुछतो निचे गिर गया. कांच फुटने जैसी आवाज हूई. उसने निचे झुककर देखा तो कांचके टूकडे सब तरफ फैले हूए थे. और निचे एक फोटोकी फ्रेम उलटी पडी हूई थी. उसने वह उठाई और सिधी करके देखी. वह एक ग्रुप फोटो था लेकिन वहां रोशनी काफी नही होनेसे ठिकसे दिखाई नही दे रहा था. वह फोटो लेकर वह कॉम्प्यूटरके पास गया. काम्प्यूटरका मानिटर अबभी शुरु था और चमक रहा था. इसलिए उस रोशनीमें वह फोटो ठिकसे देखना मुमकिन था. मॉनिटरके रोशनीमें उसने वह ग्रुप फोटो देखा और वह आश्चर्यसे हक्का बक्कासा रह गया. वह खुले मुंहसे आश्चर्यसे उस फोटोकी तरफ देख रहा था.

वह उस हादसेसे संभलता नही की उसके सामने कॉम्प्यूटरका मॉनिटर बंद शुरु होने लगा.

कुछ इलेक्ट्रीक प्रॉब्लेम होगा ...

इसलिए वह कॉम्प्यूटरका पॉवर स्वीच और प्लग चेक करने लगा.

उसने पॉवर प्लगककी तरफ देखा और चौंकते हूए डरे हूए स्थितीमे वह पिछे हट गया. उसे आश्चर्यका दुसरा धक्का लगा था.

कॉम्प्यूटरका पॉवर केबल पॉवर बोर्डको लगा नही था और वही बगलमें निकालकर रखा हूवा था. .

फिरभी कॉम्प्यूटर शुरु कैसा ? ...

कुछ तो ट्रीक होगी ...

या यह पॉवर केबल दुसरा किसी चिजका होगा....

उसने वह पावर केबल उठाकर एक सिरेसे दुसरे सिरेतक टटोलकर देखा. वह कॉम्प्यूटरकाही पॉवर केबल था.

अब उसके हाथ पैर कांपने लगे.

वह जो देख रहा था वैसा उसने उसके पुरे जिंदगीमें कभी नही देखा था.

अचानक कॉम्प्यूटरका मॉनिटर बंद शुरु होनेका रुक गया. उसने मॉनिटरकी तरफ देखा. उसके चेहरेपर अबभी डर और आश्चर्य झलक रहा था.

अचानक एक बडा भयानक हवाका झोंका वेअरहाऊसमें बहने लगा. इतना बडा झोंका बह रहा था और इधर सॅम पसिनेसे लथपथ हो गया था.

और अब अचानक मॉनिटरपर तरह तरह के विचित्र और भयानक साये दिखने लगे.

डिटेक्टीवको कुछ समझ नही आ रहा था की क्या हो रहा है. जोभी कुछ हो रहा था वह उसके समझ और पहूंच के बाहर था. आखिर एक खुबसुरत जवान स्त्री का साया मॉनिटरपर दिखने लगा. वह साया भलेही सुंदर और मोहक था फिरभी सॅमके बदनमें एक डरकी सिरहन दौड गई. वह मोहक साया अब एक भयानक और डरावने सायेमे परिवर्तीत हुवा. फिरसे एक हवा का बडा झोंका तेजीसे अंदर आया. इसबार उस झोंकेका जोर और बहाव बहुत तेज था. इतना की सॅम उस झोंकेकी मार सहन नही कर पाया और निचे गिर गया. वैसेभी उसके हाथ पैर पहलेही कमजोर पड चूके थे. उस झोंकेके मारका प्रतिकार करनेकी शक्ती उसमें बाकी नही थी. निचे पडे हूए स्थितीमें उसे अहसास हूवा की धीरे धीरे वह होश खोने लगा है. लेकिन होश पुरी तरह खोनेसे पहले उसने मॉनिटरवरपर दिख रहे उस स्त्रीकी आंखोमें दो बडे बडे आंसू बहकर निचे आते हूए देखे.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 43

हथकडीयां पहना हूवा और पुलिससे घेरा हूवा ऍंथोनी वेअर हाऊससे बाहर निकला. उसके साथ सब हथीयारसे लेस पुलिस थी क्योंकी वह कोई सादासुदा कातिल ना होकर चार चार कत्ल किया हूवा सिरियल किलर था. पुलिसने ऍन्थोनीको उनके एक गाडीमें बिठाया. डिटेक्टीव्ह सॅम वेअरहाऊसके दरवाजेके पास पिछेही रुक गया. सॅमने अबतक न जाने कितनी कत्लकी केसेस हॅन्डल की थी लेकिन इस केससे वह विचलित हूवा दिख रहा था. कातिलको पकडनेका सबसे महत्वपुर्ण काम तो अब पुरा हो चूका था. इसलिए अब उनके साथ गाडीमें बैठकर जाना उसे उतना जरुरी नही लगा. वह कुछ वक्त अकेलेमें गुजारना चाहता था. और उसे पिछे रुककर एकबार इस वेअरहाऊसकी पुरी छानबिन करनी थी. उसने अपने साथीको इशारा किया,

'' तुम लोग इसे लेकर आगे निकल जावो ... मै थोडीही देरमें वहा पहूंचता हूं '' सॅमने कहा.

जिस गाडीमें ऍंन्थोनीको बिठाया था वह गाडी शुरु हो गई. उसके पिछे पुलिसकी बाकी गाडीयांभी शुरु हो गई, और ऍंन्थोनी जिस गाडीमें बैठा था उसके पिछे तेजीसे दौडने लगी. एक बडा धुलका बवंडर उठा. वे गाडीयां निकल गई फिरभी वह धुलका बवंडर अबभी हवामें फैला हूवा था. सॅम गंभीर मुद्रामें उस धुलके बादलको धीरे धीरे निचे बैठता हूवा देख रहा था.

जैसीही सब गाडीयां वहांसे निकल गई और और आसपासका वातावरण शांत हूवा सॅमने वेअरहाऊसके इर्द गिर्द एक चक्कर लगाया. चलते चलते उसने उपर आसमानकी तरफ देखा. आसमानमें लाली फैल गई थी और अब थोडीही देरमें सुरज उगनेवाला था. वह एक चक्कर लगाकर दरवाजेके पास आ गया और भारी चालसे वेअरहाऊसके अंदर चला गया.

अंदर वेअरहाऊसमें अबभी अंधेरा था. उसने कॉम्प्यूटरके चमक रहे मॉनिटरके रोशनीमें वेअरहाऊसकी अंदर एक चक्कर लगाया और फिर उस कॉम्प्यूटरके पास जाकर खडा हो गया. सॅमने देखाकी कॉम्प्यूटरपर एक सॉफ्टवेअर अबभी ओपन किया हूवा था. उसने सॉफ्टवेअरके अलग अलग ऑपशन्सपर माऊस क्लिक करके देखा. एक बटनपर क्लिक करतेही कॉम्प्यूटरके बगलमें रखे एक उपकरणका लाईट ब्लींक होने लगा. उसने वह उपकरण हाथमें लेकर उसे गौरसे देखा. वह एक सिग्नल रिसिव्हर था, जिसपर एक डिस्प्ले था. उस डिस्प्लेपर एक मेसेच चमकने लगा. लिखा था ' इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्शन = लेफ्ट'. उसने वह उपकरण वापस अपनी जगह रख दिया. उसने और एक सॉफ्टवेअरका बटन दबाया, जिसपर 'राईट' ऐसा लिखा हूवा था.

फिरसे सिग्नल रिसीव्हर ब्लींक हुवा और उसपर मेसेज आया ' इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्शन = राईट'. आगे उसने ' अटॅक' बटन दबाया. फिरसे सिग्नल रिसीव्हर ब्लींक हो गया और उसपर मेसेज आया था ' इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्शन = अटॅक'. सॅमने वह उपकरण फिरसे हाथमें लिया और अब वह उसे गौरसे देखने लगा. इतनेमें उसे वेअरहाऊसके बाहर किसी चिजका आवाज आया. वह उपकरण वैसाही हाथमें लेकर वह बाहर चला गया.

वेअरहाऊसके बाहर आकर उसने आजुबाजु देखा.

यहां तो कोई नही ...

फिर किस चिजका आवाज है ...

होगा कुछ... जानेदो ...

जब वह फिरसे वेअरहाऊसमे वापस आनेके लिए मुडा तब उसका ध्यान अनायासही उसके हाथमें पकडे ब्लींक हो रहे उपकरण की तरफ गया. अचानक उसके चेहरेपर आश्चर्यके भाव उमटने लगे. उस सिग्नल रिसीव्हरपर ' आऊट ऑफ रेंज / इन्स्ट्रक्शन = निल' ऐसा मेसेज आया था. वह आश्चर्यसे उस उपकरणकी तरफ देखने लगा. उसका मुंह खुलाकी खुलाही रह गया. उसके दिमागमें अलग अलग सवालोंने भीड की थी.

अचानक आसपास किसीकी उपस्थीतीसे वह लगभग चौक गया. देखता है तो वह एक काली बिल्ली थी और वह उसके सामनेसे दौडते हूए वेअरहाऊसमें घुस गई थी. एक बार उसने अपने हाथमें पकडे उपकरण की तरफ देखा और फिर उस वेअर हाऊसके खुले दरवाजेकी तरफ देखा, जिससे अभी अभी एक काली बिल्ली अंदर गई थी.

धीर धीरे सावधानीसे उस बिल्लीका पिछा करते हूए वह अब अंदर वेअर हाऊसमें जाने लगा.

जाते जाते उसके दिमागमें एक विचार लगातार घुमने लगा की अगर वेअरहाऊसके बाहरतकभी सिग्नल जा नही सकता है तो फिर जो चार लोगोंके कत्ल हूए उनके घरतक सिग्नल कैसे पहूंचा ?'


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 42

शामका वक्त था. पार्कमें प्रेमी युगल बैठे मौसम का आनंद ले रहे थे. ठंड हवाके झोंकोकेसाथ बागमें फुल मस्त मस्तीमें डोल रहे थे. उस पार्कके एक कोनेमें निचे हरे हरे घासके गालीचेपर, एक बडे पेढके तनेका आधार लेकर नॅन्सी आरामसे बैठी थी. जॉन अपना सर नॅन्सीके गोदमे रखकर घासपर लेट गया था.

'' तुम्हे मालूम नही मै तुमसे कितना प्यार करती हूं '' नॅन्सी धीरे धीरे जॉनके बालोंमें अपना हाथ फेरते हूए बोली.

जॉनने एक प्रेमभरा दृष्टीक्षेप उसकी तरफ डाला.

कुछ देर दोनोंभी कुछ बोले नही. काफी समय ऐसीही शांतीमे गुजर गया. कुछ देर बाद अचानक जॉन उठ खडा हूवा और नॅन्सीको उठनेके लिए हाथ देते हूए बोला, '' चलो अब निकलते है... काफी समय हो गया है ''

उसका हाथ पकडकर वह खडी हो गई.

एक दुसरेका हाथ हाथमें लेकर हौले हौले चलते हूए वे वहांसे चले गए.

इतनी देरसे एक पेढके पिछे छूपा बैठा ऍन्थोनी नॅन्सी और जॉनके चले जानेके बाद बाहर निकल आया. उसका चेहरा गुस्सेसे लाल लाल होगया था...


... ऍन्थोनी वेअरहाउसमें खडा होकर उसकी सारी कहानी बयान कर रहा था. और उसके इर्दगीर्द खडे सॅम और उसकी टीम सब गौरसे सुन रहे थे. उसे हथकडीयां पहनाकर अबभी दो पुलिस उसके पास खडे थे. डिटेक्टीव सॅमभी उसकी हकिकत ध्यान देकर सुन रहा था.

'' मैने उसपर बहुत .. मतलब अपनी जानसे जादा प्रेम किया '' ऍंन्थोनीने आह भरते हूए कहा.

'' लेकिन मुझे जब पता चला की वह मुझे नही बल्की जॉनको चाहती है ... तब मै बहुत निराश, हताश हुवा, मुझे उसका गुस्साभी आया... लेकिन धीरे धीरे मैने अपने आपको समझाया की मै उसे चाहता हू इसका मतलब यह जरुरी नही की वहभी मुझे चाहे... वह किसीकोभी चाहनेके लिए आजाद होनी चाहिए.'' ऍन्थोनीने कहा.

'' लेकिन तुमने उन चार लोगोंको क्यों मारा ?'' सॅमने असली बात पर आते हूए पुछा.

'' क्योंकी दुसरा कोईभी नही कर सकता इतना प्रेम मैने उसपर किया था. "" ऍंन्थोनीने अभिमानके साथ कहा.

'' जॉननेभी उसपर प्रेम किया था....'' सॅमने उसे और छेडनेकी कोशीश करते हूए कहा.

'' वह कायर था... नॅन्सी उससे प्रेम करे ऐसी उसकी हैसीयत नही थी..'' ऍंन्थोनीने नफरतक के साथ कहा, '' तुम्हे पता है ?... जब उसका बलात्कार होकर कत्ल हूवा था तब जॉनने मुझे एक खत लिखा था '' ऍंन्थोनीने आगे कहा.

'' क्या लिखा था उसने ?'' सॅमने पुछा.

'' लिखा था की उसे नॅन्सीके बलात्कार और कत्लका बदला लेना है ... और उसने उन चार गुनाहगारोंको ढूंढा है .... लेकिन उसकी बदला लेनेकी हिम्मत नही बन पा रही है .. वैगेरा .. वैगेरा .. ऐसा उसने काफी कुछ लिखा था... मै एक दोस्तके तौरपर उसे अच्छी तरह जानता था... लेकिन वह इतना डरपोक होगा ऐसा मैने कभी नही सोचा था... फिर ऐसी स्थीतीमें आपही बताईए मैने क्या करता ... अगर वह बदला नही ले सकता तो उन चार हैवानोंका बदला लेनेकी जिम्मेदारी मेरी बनती थी... क्योंकी भलेही वह मुझे नही चाहती थी लेकिन मेरातो उसपर सच्चा प्रेम था. ...'' ऍंन्थोनी भावनाविवश होकर आवेशमें बोल रहा था. वह इतने जल्दी जल्दी और उत्तेजीत होकर बोल रहा था की उसका चेहरा लाल लाल हो गया था और उसके सासोंकी गती बढ गई थी. जब ऍंथोनी बोलते बोलते रुक गया. उसका पुरा शरीर पसीनेसे लथपथ हो गया था. उसे अपने हाथ पैर कमजोर हूए ऐसा महसुस होने लगा. वह एकदमसे निचे बैठ गया. उसने अपना चेहरा अपने घूटनोमें छूपा लिया और फुटफुटकर रोने लगा. इतनी देरसे रोकनेका प्रयास करनेके बावजुद वह अपने आपको रोक नही पाया था.

उसके इर्द गिर्द जमा हूए सारे लोग उसकी तरफ हमदर्दीसे देख रहे थे.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 41

सॅम और उसका साथीदार अबभी ऍन्थोनीको घेरकर खडे थे. ऍन्थोनीका प्रतिरोध अब पुरी तरह खत्म हो चूका था. सॅमके दो साथीयोंने उसे हथकडीयां लगाकर अपने कब्जेमें लिया था. सॅम उसे वहीं सवालपर सवाल पुछे जा रहा था. आखीर एक सवाल अबतक सबको परेशान कर रहा था. सॅमकोभी लग रहा था की बादकी तहकिकात जब होगी तब होगी. कमसे कम सबको परेशान कर रहे सवाल का जवाब यही मिलना चाहिए. की क्यो? क्यो ऍन्थोनीने उन चार लोगोंका कत्ल किया ?

ऍन्थोनीकेभी अब पुरी तरह खयालमें आया था की उसे अब सबकुछ बतानेके अलावा कुछ चारा नही था. वह सबकुछ किसी तोतेकी तरह बताने लगा...


.... वे पुराने जॉन, नॅन्सी और ऍन्थोनीके कॉलेजके दिन थे. क्लासमें प्रोफेसर पढा रहे थे और विद्यार्थीयोंमे जॉन, नॅन्सी और ऍंथोनी क्लासमें अलग अलग जगह पर बैठे हूए थे. ऍथोनीने सामने देखते हूए, प्रोफेसरका खयाल अपने तरफ नही है इसकी तसल्ली कर छूपकेसे एक कटाक्ष नॅन्सीकी तरफ डाला. लेकिन यह क्या? वह उसके तरफ ना देखते हूए छूपकर जॉनकी तरफ देख रही थी. वह आग बबुला होने लगा था.

मै इस क्लासका एक होनहार विद्यार्थी...

एकसे एक लडकियां मुझपर मरनेके लिए तैयार ...

लेकिन जिसपर अपना दिल आया वह मेरे तरफ देखनेके लिए भी तैयार नही है? ...

उसके अहमको ठेंस पहूच रही थी.

नही यह होना मुमकीन नही...

शायद उसे अपना दिल उसपर आया है यह पता नही होगा...

उसे यह जताना और बताना जरुरी है ...

उसे यह मालून होनेके बाद वह अपनेआप मुझपर मरने लगेगी...

सोचते हूए उसने मनही मन कुछ तय किया.

दौपहरका वक्त था. कॉलेज अभी अभी छूटा था और नॅन्सी अपने घर वापस जा रही थी. ऍंथोनी पिछेसे तेजीसे चलते हूए उसके पास पहूंचनेका प्रयास कर रहा था. वह उसके नजदिक पहूंचतेही उसने पिछेसे उसे आवाज दिया, '' नॅन्सी''

पिछेसे आया आवाज सुनतेही वह रुक गई और मुडकर पिछे देखने लगी. ऍन्थोनी जॉगींग किये जैसा झटसे उसके पास पहूंच गया.

'' क्या? ... ऍन्थोनी'' उसने आश्चर्यसे उसे पुछा.

क्योंकी वह सामान्य रुपसे किसीसे बात नही करता था.

और आज ऐसा पिछे पिछे दौडकर आते हूए अपनेसे बात कर रहा है ...

वह क्लासमें टॉप होनेसे उसे उसके प्रती एक आदर था. उसेही क्यूं क्लासके सारे लडके लडकियोंको उसके प्रती आदर था.

'' नही ... मतलब ... तुमसे एक जरुरी बात करनी थी '' उसने कहा.

नॅन्सीने उसके चेहरेकी तरफ गौरसे देखा और उसे उससे क्या बात करनी होगी यह वह समझनेकी कोशीश करने लगी. अब दोनो साथ साथ चलने लगे थे.

'' नही ... मतलब ... ऍक्चूअली..'' वह सही शब्दोंको चूनकर एकसाथ लानेकी कोशीश करते हूए बोला, '' मतलब ... मुझे तुम्हे प्रपोज करना था ... विल यू मॅरी मी'' उसने सारे महत्वपूर्ण शब्द चून लिए और झटसे उसे जो बोलना था वह बोलकर राहतकी सांस ली.

अचानक वह ऐसा कुछ बोलेगा ऐसा नॅन्सीने नही सोचा था.

वह मजाक तो नही कर रहा है ? ...

उसने उसके चेहरेकी तरफ फिरसे गौरसे देखा और उसके चेहरेके भाव पढनेकी कोशीश की.

कमसे कम उसके चेहरेसे वह मजाक कर रहा हो ऐसा बिलकुल प्रतित नही हो रहा था...

'' आय ऍम सिरीयस '' उसने उसकी हडबडाहट देखकर कहा.

फिरसे नॅन्सीने उसके भाव समझनेकी कोशीश की. वह उसे उसके क्लासमें होनेसे अच्छी तरह जानती थी. उसे उसका स्वभाव अच्छी तरहसे मालूम था. इस तरहकी मजाक करना उसका मूलभूत स्वभाव नही था. और नॅन्सीका स्वभाव स्पष्टवादी था. इसलिए झटसे उसने उसके बारेंमे अपनी भावनाएं व्यक्त की. आखिर वह जॉनसे प्यार करती थी.

'' ऍन्थोनी... आय ऍम सॉरी बट आय कांन्ट'' उसने कहा.

ऍन्थोनीको इसकी उम्मीद नही थी. वह आश्चर्यसे उसके चेहरेकी तरफ देखने लगा.

इतनी सहजतासे वह मुझे कैसे ठूकरा सकती है? ...

उसके अहंकारको ठेंस पहूंच रही थी.

'' लेकिन क्यो?'' वह अब पुरी तरह चिढ चूका था.

वह तेजीसे आगे आगे चल रही थी और वहभी तेजीसे चलते हूए उसके साथ चलनेकी कोशीश कर रहा था.

'' देखो मै क्लासमे टॉपर हूं ... आगे कॉलेज खतम होनेके बाद न्यूरॉलाजीमें रिसर्च करनेका मेरा इरादा है ... मेरे सामने एक उज्वल भविष्य पडा हूवा है ... और मुझे यकिन है की अगर मुझे तुम्हारे जैसे सुंदर लडकिका साथ मिलता है तो मै जिंदगीमें औरभी बहुत कुछ हासिल कर सकता हूं '' वह उसे समझानेकी कोशीश कर रहा था.

'' ऍंथोनी.. तुम एक अच्छे लडके हो, बुद्धीमान हो... इसमें कोई शक नही है... लेकिन मै तुम्हारे साथ शादीके बारेमें नही सोच सकती. '' वहभी अब उसे समझानेकी कोशीश करने लगी.

'' लेकिन क्यों? '' वह गुस्सेसे बोला, '' ... तुम्हे पता है? ... मै तुम्हे कितना चाहता हूं ...'' वह अब गिडगिडाने लगा था.

'' फिरभी मै ऐसा नही कर सकती..'' वह बोली.

'' लेकिन क्यों? ... यह तो बता सकती हो'' वह गुस्सेसे चिल्लाया.

'' क्योंकी मै किसी दुसरेको चाहती हूं... '' वह बोली.

वह अबभी आगे चल रही थी. लेकिन ऍंथोनी अब रुक गया था. वह पिछेसे घोर निराशासे उसे जाता हूवा देखता रहा.


क्रमश:...

May 5, 2014

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 40

जहांसे सिग्नल आ रहे थे उस जगहके आसपास सॅम और उसकी टीम आकर पहूंच गई. वह एक वेअरहाऊस था. और वेअरहाऊसके सामने और आसपास काफी खुला मैदान था.

'' कॉम्प्यूटरपर तो यही जगह दिखाई दे रही थी ... मतलब यहीं वेअरहाऊसमेही कातिल छूपा हूवा होना चाहिए.'' सॅम अपने पासके नक्शेपर और वेअर हाऊसके आसपासका इलाका देखकर बोला.

ड्रायव्हरने सॅमकी तरफ उसके अगले आदेशके इंतजारमें देखा.

'' गाडी वेअरहाऊसके कंपाऊंडमें लो '' सॅमने ड्रायव्हरको आदेश दिया.

'' यस सर '' ड्रायव्हरने कहा और उसने गाडी वेअर हाऊसके खाली मैदानमें घुसाई.

उनके पिछे आनेवाली गाडीयांभी उनके पिछे पिछे उस खाली मैदानमें घुस गई.

सॅमके गाडीके पिछे सब गाडीयां वेअरहाऊसके सामने रुक गई. गाडी रोकनेके बाद सॅमने अपने वायरलेसपर कब्जा किया.

'' ट्रूप2, ट्रूप3 तुरंत वेअरहाऊसको चारों तरफसे घेर लो '' गाडीसे उतरते वक्त सॅम वायरलेसपर आदेश देने लगा.

उसके साथीभी जल्दी जल्दी गाडीसे उतरने लगे.

'' ट्रूप2 वेअरहाऊसके दाई तरफसे और ट्रूप3 बाई तरफसे वेअर हाऊसको घेर लो.'' उनकी गडबडी ना हो इसलिए सॅमने अपने आदेशका खुलासा किया.

गाडीसे उतरनेके बाद ट्रूप2ने वेअरहाउसके दायी तरफसे तो ट्रूप3ने बायी तरफसे वेअर हाऊसको पुरी तरह घेर लिया. कातिल अगर वेअर हाऊसमें छुपा होगा और उसे भागकर जाना हो तो उसे इन्होने बनाई यह दिवार भेदकर जाना पडेगा. और वह लगभग नामुमकीन था.

अपने दोनो ट्रूपने अच्छी और पुरी तरहसे वेअर हाउसको घेरनेकी तसल्ली होनेके बाद सॅम अपने साथवाले ट्रूपके साथ, वेअरहाऊसके दरवाजेके पास लगभग दौडते हूए ही गया.

'' ट्रूप1 अब वेअरहाऊसमें घुसनेवाला है ... सबलोग तैयार रहो... अंदर कितने लोग होगे इसका अभीतक कोई अनुमान नही लगाया जा सकता है ...'' सॅमने फिरसे एकबार सबको सतर्क रहनेकी ताकीद दी.

वेअरहाऊसमें एक जगह कॉम्प्यूटर का मॉनिटर चमक रहा था वह जगह छोडकर बाकी सब तरफ अंधेरा था. उस कॉम्प्यूटरके सामने एक उधर मुंह किए एक साया खडा था और उसकी अपना सामान बॅगमे भरनेकी गडबड चल रही थी. सब कत्लतो हो चूके थे. अब उसकी भाग जाने की तैयारी दिख रही थी. अचानक सामान भरते हूए वह रुक गया. उसे वेअरहाऊसके बाहर या अंदर कोई हरकत महसूस हूई होगी. वह वैसेही उधर मुंह कर खडा होकर गौरसे सुननेकी कोशीश करने लगा.

सब काम तो अब ठिक ढंगसे हो चूके है... और अब मुझे क्यूं अलग अलग भ्रम हो रहे है...

अबतक कोई मुझे कोई पकड नही पाया जो अब पकड पाएगा... .

वैसे मेरी प्लॅनीग कोई कम फुलप्रुफ नही थी...

उसने अपने दिमागमें चल रही विचारोंकी कश्मकश झटककर दूर की और फिरसे अपने काममें व्यस्त होगया.

अचानक उसे पिछेसे आवाज आया, '' हॅन्डस अप.. यू आर अंडर अरेस्ट''

उसने चतूरतासे अपने बॅगसे कुछ, शायद कोई हथीयार निकालनेकि कोशीश की.

लेकिन उससे जादा चतूराईसे और तेजीसे डिटेक्टीव्ह सॅमने उसके आसपास बंदूककी गोलीयोंकी बरसात कर मानो एक लक्ष्मणरेखा बनाई.

'' जादा होशीयारी करनेका प्रयास मत करो... '' सॅमने उसे ताकीद दी.

उसके हाथसे वह जो भर रहा था वह बॅग निचे गिर गई और उसने अपने दोनो हाथ उपर किये. धीरे धीरे वह सॅमकी तरफ मुडने लगा.

वह जैसेही मुडने लगा. सॅम मनही मन अनुमान लगाने लगा.

वह कौन होगा ?...

और यह सारे कत्ल उसने क्यों किये होंगे?...

जैसेही वह पुरी तरह सॅमकी तरफ मुडा, वहां मॉनिटरके रोशनीमें उसका चेहरा दिखने लगा.

डिटेक्टीव्ह सॅमके चेहरेपर आश्चर्यके भाव दिखने लगे.

वह दूसरा तिसरा कोई ना होकर ऍन्थोनी था, जॉन और नॅन्सीका दोस्त, क्लासमेट !

उसे याद आयाकी उसने नॅन्सी और जॉनके क्लासके गृप फोटोमें इसे देखा था.

डिटेक्टीव्ह सॅमको एक सवालका जवाब मिल गया था. लेकिन उसका दुसरा सवाल ' यह सारे खुन उसने क्यों किए होंगे?'' का जवाब अबभी बाकी था.

डिटेक्टीव्ह सॅम और उसके साथी धीरे धीरे आगे खिसकने लगे. सॅमने वायरलेसपर कातिलको पकडनेकी खबर सारे टीमको दी. उन्होने ऍंन्थोनीको चारो तरफसे घेर लिया.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 39

डिटेक्टीव्ह सॅम और उसके टीमकी गाडीयां तेजीसे रास्तेपर दौड रही थी. कातिलका ठिकाना तो उन्हे पता चल चूका था लेकिन अब जल्द से जल्द वहां जाकर वह रफ्फू चक्कर होनेसे पहले उसे पकडना जरुरी था. गाडीयोंकी गतिके साथ सॅमका दिमागभी दौड रहा था. वह मनही मन सारी संभावनाए टटोलकर देख रहा था. और हर स्थितीमें अपनी क्या स्ट्रॅटेजी रहेगी यह तय कर रहा था. उतनेमें उसके मोबाईलकी बेल बजी. उसके विचारोंकी श्रूंखला टूट गई.

उसने मोबाईलके डिस्प्लेकी तरफ देखा. और झटसे फोन अटेंड किया, '' हां बोलो''

'' सर यहां एक सिरियस प्रॉब्लेम हो गया है '' उधरसे इरिकका आवाज आया.

'सिरीयस प्रॉब्लेम हो गया' यह सुना और सॅम निराश होने लगा. उसके दिमागमें तरह तरहके विचार आने लगे.

'' क्या ? ... क्या हूवा ?'' सॅमने उत्तेजित होकर उत्कंठावश पुछा.

वह अपनी निराशाको अपने उपर हावी होने देना नही चाहता था.

'' सर उस बिल्लीका यहां किसी बॉंबकी तरह विस्फोट हुवा है '' इरिकने जानकारी दी.

'' क्या ?... विस्फोट हुवा?'' सॅमके मुंहसे आश्चर्यसे निकला.

उसपर एक एक आघात हो रहे थे.

'' लेकिन कैसे ?'' सॅमने आगे पुछा.

'' सर उस बिल्लीके गलेमें पहने पट्टेमें प्लास्टीक एक्प्लोजीव लगाया होगा... मुझे लगता है की सिग्नल ब्लॉक होतेही उसका विस्फोट हो जाए इस तरह उसे प्रोग्रॅम किया होगा, ताकी कातिलका शिकार किसीभी हालमें उसके शिकंजेसे ना छूटे. '' इरिकने अपनी राय बयान की.

'' क्रिस्तोफर कैसा है ?... उसे कुछ हूवा तो नही ?'' बॉंब विस्फोट और शिकारका जिक्र होतेही अगला विचार सॅमके दिमागमें क्रिस्तोफरकाही आया.

इतना करनेके बादभी हम उसे बचा सके या नही यह जाननेकी जल्दी सॅमको हूई थी.

'' नही सर वह उस विस्फोटमेंही मर गया '' उधरसे इरिकने कहा.

'' शिट ...'' सॅमके मुंहसे गुस्सेसे निकल गया, '' और अपने लोग ?... वे कैसे है ?'' सॅमने आगे पुछा.

वह गया तो गया... कमसे कम अपने लोगोंको कुछ होना नही चाहिए...

उसे अंदर ही अंदर लग रहा था. वैसेभी एक आम आदमीके हैसीयतसे उसे उसके बारेंमे कुछ हमदर्दी नही थी. एक पुलिस ऑफिसरके हैसीयतसे, एक कर्तव्य की तौर पर उसे बचानेकी उसने जी तोड कोशीश की थी.

'' दो लोग जख्मी हो गए है, हम लोग उन्हे हॉस्पीटलमें ले जा रहे है ...'' इरिकने जानकारी दी.

'' कोई सिरीयस तौर पर जख्मीतो नही '' सॅमने फिरसे तसल्ली करनेके लिए पुछा.

'' नही सर... जख्म वैसे मामुलीही है '' उधरसे आवाज आया.

'' सुनो, उधरकी पुरी जिम्मेदारी मै तुम्हारे उपर सौपता हूं ... हम लोग इधर जहांसे सिग्नल आ रहे थे उसके आसपासही है ... थोडीही देरमें हम वहां पहूंच जायेंगे ... उधरका तुम और रिचर्ड दोनो मिलकर अच्छी तरहसे संभाल लो''

'' यस सर...''

'' अपने लोगोंका खयाल रखना '' सॅमने कहा और उसने फोन कट किया.

'' चलो जल्दी ... हमें जल्दी करनी चाहिए ... उधर क्रिस्तोफरको तो हम बचा नही पाये ... कमसे कम इधर इस कातिलको पकडनेमें कामयाब होना चाहिए... '' सॅमने ड्रायव्हरको तेजीसे चलनेका इशारा करते हूए कहा.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 38

क्रिस्तोफरके मकानके बगलमें एक कॅबिन था और उस कॅबिनमें इरिक अबभी कॉम्प्यूटरके सामने बैठा हूवा था. वह कॉम्प्यूटरके किबोर्डकी बटन्स दबाकर कुछ कर रहा था.

रिचर्ड उसकी तरफ देखते हूए बोला, '' बडी आश्चर्यकी बात है !''

'' कौनसी ?'' इरिकने पुछा.

'' की ... साहब गये फिरभी तुम कॉम्प्यूटरपर बैठकर सिरीयसली काम कर रहे हो'' रिचर्डने ताना मारते हूए कहा.

'' अरे नही ... मै यह सब बिगाडा कैसे जा सकता है यह देख रहा हूं ... ताकी यहांसे मै छूट तो जाऊं '' इरिकने कहा.

रिचर्डने कीबोर्ड उससे छिन लिया.

'' अरे नही ... मै सिर्फ मजाक कर रहा था. '' इरिकने खुलासा करते हूए कहा.

अचानाक कन्ट्रोल बोर्डपर फिरसे 'बिप' 'बिप' ऐसा आवाज आने लगा. दोनोंनेभी पहले कंट्रोल बोर्डकी तरफ और फिर टिव्ही स्क्रिनपर देखा. बिल्ली बेडरुमके पास पहूंची हूई टिव्ही स्क्रिनपर दिख रही थी.

'' मुझे लगता है बिल्ली सिग्नल ब्लाकींग एरियामें आ गई है '' रिचर्ड मानो खुदसेही बोला.

अब 'बिप' 'बिप' आवाज और जोरसे आने लगा.

'' देख... देख ... बिल्ली सिग्नल ब्लाकींग एरियामें पहूंच गई है '' रिचर्डने झटसे वायरलेस उठाया और कन्ट्रोल पॅनलपर एक ब्लींक होरहे लाईटकी तरफ इशारा करते हूए कहा.

रिचर्ड खुशीके मारे उत्तेजीत होकर वायरलेसपर बोलनेही वाला था जब इरिकने चपलतासे वायरलेस रिचर्डके हाथसे छिन लिया. रिचर्ड गुस्सेसे इरिककी तरफ देख रहा था.

'' सर ... बिल्ली अब सिग्नल ब्लॉकींगके एरियामें पहूंच गई है '' इरिकने सॅमको इन्फॉर्म किया.

'' अच्छा... अब उसपर अच्छी तरहसे नजर रखो. '' उधरसे सॅमका आवाज आया.

'' यस सर...'' इरिकने कहा.

'' मै इधर कातिलके पिछे लगा हूं और ध्यान रहे की उधरकी पुरी जिम्मेदारी तुम्हारी है '' सॅमने उसे ताकीद दी.

'' यस सर..'' इरिकने कहा.

और उधरसे सॅमने फोन कट कर दिया.

'' सिग्नल ब्लॉकरने सब सिग्नल ब्लॉक किये है और अब उस कातिलका एकभी आदेश उस बिल्लीतक पहूंचेगा नही. '' रिचर्ड मॉनिटर और टिव्हीकी तरफ देखते हूए फिरसे उत्तेजीत होकर बोला.

टिव्ही मॉनिटरपर अब वह बिल्ली भ्रमित हूई दिख रही थी. वह कभी आगे जा रही थी तो कभी पिछे. शायद उसे कहां जाना है कुछ समझमें नही आ रहा हो.

अचानक उनके सामने रखे सर्कीट टिव्हीपर दिखाई दिया की उस बिल्लीका किसी बॉंबकी तरह एक बडा विस्फोट होकर बडा धमाका हूवा है. इतना बडा की उनकी कॅबिनभी काफी दूर होते हूए भी थर्रा उठी.

कॅबिनमें रखा हूवा कॉम्प्यूटर और सर्कीट टिव्ही बंद हो गया.

दोनोंकोभी यह अप्रत्याशीत आघात था. उनको यह कैसे हूवा कुछ समझ नही आ रहा था. वे गडबडाकर इधर उधर दौडने लगे. .

'' यह अचानक क्या हूवा ?'' इरिक घबराकर बोला.

वह इतना घबराया हूवा था की उसकी सांस फुल गई थी.

'' टेररिस्ट अटॅक तो नही?'' इरिकने अपने सासोंपर नियंत्रण करनेकी कोशीश करते हूए कहा.

'' बेवकुफकी तरह कुछभी बको मत ... देखा नही ... उस बिल्लीका विस्फोट हो गया है '' रिचर्डने कहा.

रिचर्ड अब वहांसे बाहर निकलनेके लिए दरवाजेकी तरफ दौडा.

'' चल जल्दी ... उधर क्या हूवा है यह हमें देखना पडेगा'' दौडते हूए इरिकने कहा.

वे दोनो जब क्रिस्तोफरके बेडरुममें पहूंच गए. उन्होने देखा की विस्फोटकी वजहसे बेडरुम बेडरुम नही रहा था. वहां सिर्फ ईंट. पत्थर, सिमेंट का ढेर बना हूवा था और टूटा हूवा सामान इधर उधर फैला हूवा था. उस ढेरमें उन्हे क्रिस्तोफरके शरीरका कुछ हिस्सा दिखाई दिया. रिचर्ड और इरिक तुरंत वहां पहूंच गए. उन्होने क्रिस्तोफरकी बॉडीसे सामान हटाकर उसे ढेरसे बाहर निकाला. रिचर्डने उसकी नब्ज टटोली. लेकिन नब्ज बंद थी. उसकी जान शायद जब विस्फोट हूवा तबही गई होगी.

अब रिचर्ड और इरिक बेडरुमसे घरके बाकी हिस्सोंकी तरफ रवाना होगए. जहां जहां उनके साथी तैनात थे, उनको वे ढूंढने लगे. कुछ लोग जख्मसे कराह रहे थे, वहां वे उनके मदद के लिए दौड पडे.

इतने गडबडमें इरिकने अपने जेबसे मोबाईल निकाला और एक नंबर डायल किया.

क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 37

रिचर्ड, इरिक और डिटेक्टीव्ह सॅम सामने रखे सर्कीट टिव्हीकी तरफ देख रहे थे. उस टिव्हीपर बिल्लीकी सारी हरकते दिख रही थी.

रिचर्ड कुछ दिखानेके पहलेही इरिकने बिचमें घुसकर कॉम्प्यूटरपर कब्जा कर लिया. रिचर्डको उसके इस व्यवहारका गुस्सा आया था. लेकिन करे तो क्या करे. चेहरेपर कुछभी भाव ना लाते हूए वह सिर्फ उसकी तरफ देखता रहा.

कॉम्प्यूटरके मॉनीटरपर अब शहरका नक्शा दिखने लगा. उस नक्शेमें एक जगह एक लाल स्पॉट लगातार चमक रहा था.

इरिक उस स्पॉटकी तरफ निर्देश करते हूए बोला, '' उस बिल्लीको सब सिंग्नल्स और निर्देश ये यहांसे आ रहे है ""

'' जहांसे सिग्नल आ रहे है वह जगह यहांसे कितनी दुर होगी '' सॅमने पुछा.

इरिकने कॉम्प्यूटरपर इधर उधर क्लिक कर पता करनेकी कोशीश की. लेकिन तबतक रिचर्डकेपास जवाब तैयार था.

उसने कहा, '' सर, वह जगह अपने यहांसे पुरबकी तरफ लगभग पांच किलोमिटर होगी ''

'' हां .. हो सकता है एक मिटर इधर या एक मिटर उधर '' बिचमेंही इरिकने जोड दिया.

रिचर्डने फिरसे इरिककी तरफ गुस्सेसे देखा. उसे उसका इस तरह आगे आगे करना अच्छा नही लगा था. .

डिटेक्टीव्ह सॅम क्रिस्तोफरके मकानके सामने खडा होकर वायरलेसपर अपने पुरी टीमको आदेश और निर्देश दे रहा था,

'' मुझे लगता है सबको अपनी अपनी पोजीशन्स अच्छी तरह समझमें आयी है. अपने पास अब सिर्फ यही एक मौका है. अब किसीभी हालमें कातिल अपने शिकंजेसे बचकर निकलना नही चाहिए. ... तो जिस जिसको जिस जिस जगहपर तैनात किया गया है वे अपनी जगह मत छोडीए. और बिना वजह अंदर बाहर करनेकीभी जरुरत नही है. इसलिएही मैने अंदरकी और बाहरकी जिम्मेवारी अलग अलग सौप दी है... और बाकी बचे हूए तुरंत यहा मकानके सामने जिपके पास इकठ्ठा हो जावो....''

लगभग पंधरा बिस टीम मेंबर्स जिपके पास जमा हो गए. वहांसे निकलनेसे पहले सॅमने उनको संक्षेपमें ब्रिफ किया.

'' जहांसे कातिल ऑपरेट कर रहा है वह जगह हमें मिल चूकी है. इसलिए मैने अपने टीमको दो हिस्सोमें बांट दिया है ... सात लोग पहलेही यहां क्रिस्तोफरका रक्षण करनेके लिए तैनात किए गये है ... और बाकी बचे अठारा.. मतलब आप और मै ... हमे ऑपरेशनका दुसरा हिस्सा यानीकी कातिलको पकडनेका काम करना है... ''

सॅम अब जल्दी जल्दी आपने गाडीकी तरफ जाने लगा. गाडीकी तरफ जाते जाते उसने सबको आदेश दिया, '' अब जल्दसे जल्द अपने अपने गाडीमें बैठो ... हमारे पहूंचनेतक वह कातिल वहांसे खिसकना नही चाहिए. ''

सब लोग जल्दी जल्दी अपने अपने गाडीमें बैठ गए. औए सब गाडीयां धुव्वा उडाती हूई वहांसे तेजीसे निकल पडी - खुनी जहांसे ऑपरेट कर रहा था वहां. सब गाडीयां जब वहांसे चली गई तब कहां उडी हूई धूल का बादल धीरे धीरे निचे आने लगा था.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 36

क्रिस्तोफरके मकानके बगलमें एक गेस्टरुम थी. उस रुममे दो पुलीस रिचर्ड और इरिक उनके सामने रखे सर्किट टिव्हीपर क्रिस्तोफरके बेडरुमकी निगरानी कर रहे थे.

'' आखिर लाख कोशिशोंके बावजुद हमें कुत्ते और बिल्लीयोंकी हरकतोपर ध्यान रखनेकी नौबत आगई '' इरिकने व्यंगात्मक ढंगसे कहा.

'' तिन दिनसे हम यही काम कर रहे है ... बस ... अब बहुत होगया... इस तरह एक जगहपर बैठकर वही बेडरुम लगातार देखते रहना '' इरिकने चिढकर कहा.

'' और एक बात ध्यानसे सुनो मैने पुलिस फोर्स किसी रेपीस्ट या कातिलकी रक्षा करनेके लिए नही जॉईन की '' इरिक अभीभी बडबड कर रहा था.

थोडी देर इरिक शांत रहा और फिरसे उसकी बडबड शुरु होगइ.

'' साहबकी यह कुत्तो बिल्लीयोंकी थेअरी तो ठिक लगती है ... लेकिन एक बात समझमें नही आती ? '' इरिकने कहा.

इरिकने रिचर्डकी तरफ वह '' कौनसी ?'' ऐसा पुछेगा इस आस से देखा. लेकिन वह अपने काममें व्यस्त था. वह कुछ नही बोला.

'' कौनसी बात? पुछोतो ?'' इरिकने रिचर्डके कंधेपर हाथ रखकर उसे हिलाते हूए पुछा.

उसने उसकी तरफ सिर्फ एक दृष्टीक्षेप डाला और फिर वह अपने काममें मग्न हो गया.

'' की कातिल कौन होगा ?... अगर जॉन कहे तो वह मर गया है ... और जॉर्ज कहो तो वह जेलमें बंद है ... फिर कातिल कौन होगा ?'' इरिककी सिर्फ बडबड चल रही थी.

रिचर्ड कुछभी प्रतिक्रिया ना व्यक्त करते हूए सिर्फ उसकी बडबड सुन रहा था. रिचर्ड इतना बोलनेके बादभी ना कुछ बोल रहा है और ना कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है यह देखकर इरिक औरही चिढ गया.

'' अरे क्या तुम घरपरभी ऐसेही गुमसुम रहते हो ?'' उसने रिचर्डसे पुछा.

रिचर्डने सिर्फ उसकी तरफ देखा. .

'' तूम अगर घरपरभी ऐसेही रहते हो ... तो मुझे इस बातका बडा ताज्जुब होता है की तुम्हे बच्चे कैसे होते है ?'' इरिक अब उसे चिढानेके और छेडनेके मुडमें था. इरिकको लग रहा था की वह कमसे कम ऐसे तो बोलेगा. और उसका अंदाजा सही निकला.

रिचर्डने उसकी तरफ मुडकर प्रतिप्रश्न किया, '' बच्चे होनेके लिए क्या बोलनेकी जरुरत होती है ? ''

'' येभी सही है... तुम्हारे पडोसी चुपचाप तुम्हारे घर जाकर अपना काम कर लेते होंगे ... वे बोलेंगे थोडेही. .. नही? '' इरिक उसे औरही छेडनेके अंदामें उसकी खिल्ली उडाते हूए बोला.

रिचर्ड गुस्सेसे वायरलेस फोन उठाकर उसे मारनेके लिए दौडा. इरिक उठ गया और ठहाके लगाते हूए उससे बचनेके लिए इधर उधर दौडने लगा.

अचानक कन्ट्रोल बोर्डपर 'बीप' बजी.

'' ए देखोतो ... कुछ हो रहा है '' रिचर्डने कहा.

एक मॉनिटरपर कुछ हरकत दिखाई दी. एक काली बिल्ली चलते हूए दिखाई देने लगी.

'' देखो फिरसे बिल्ली '' इरिकने कहा.

'' देख उसके गलेमें पट्टाभी बंधा हूवा है '' रिचर्डने कहा.

'' मतलब .. जैसे हमारे साहब कहते है वैसे उस पट्टेमें रिसीवर है शायद ...'' ईरिकने कहा.

'' और वह रिसीव्हर डिटेक्ट हुवा है शायद ... उसकीही तो बीप बजी है ... '' रिचर्डने कहा.

इरिकने वायरलेस उठाया और वह वायरलेपर बोलने लगा.

'' सर ... गलेमें पट्टा पहनी हूई बिल्ली घरमें आई है '' इरिकने उसके बॉसको जानकारी दी.

'' गुड .... अब वह सिग्नल्स कहासे आ रहे है यह ट्रेस करनेकी कोशीश करो '' सॅमने उधरसे उन्हे निर्देश दिया.

उतनेमें उन्होने घरमें सिग्नल ट्रेसरकी जो यंत्रणा बिठाईथी उसनेभी कॉम्प्यूटरपर सिग्नल ट्रेस होनेका संकेत दर्शाया.

'' सर सिग्नलका स्त्रोतभी मिल चूका है '' ईरिकने कॉम्प्यूटरकी तरफ देखते हूए तुरंत सॅमको जानकारी दी.

'' ग्रेट जॉब... मै निकलाही हूं... लगभग पांच मिनटमें पहूंच जाऊंगा. '' सॅमने कहा और उधरसे फोन कट होगया.


क्रमश:...

April 29, 2014

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 35

डिटेक्टीव्ह सॅम कॉन्फरंन्स रुमममे पोडीयमपर डेस्कके पिछे खडा था. उसके सामने क्रिस्तोफर, दुसरे पोलिस अधिकारी और उसका पार्टनर बैठा हू था.

'' अब मुझे पता चल चूका है की कातिल सारे कत्ल कैसे करता होगा...'' डिटेक्टीव सॅमने एक पॉज लिया और चारोतरफ अपनी नजर दौडाते हूए वह बोलने लगा -

'' इसलिए मैने एक प्लॅन बनाया है... जिससे हमे कातिलको तो पकडना है ही साथही हमे कातिलका अगला शिकार, क्रिस्तोफरका रक्षण करना है... अब इस प्लनसे मुझे नही लगता है की इस बारभी कातिल अपने शिकंजेसे बच पाएगा.. '' सॅम आत्मविश्वासके साथ बोल रहा था.

'' पिछले बारभी आपने ऐसाही कहा था. .. और फिरभी कातिल रोनॉल्डका कत्ल करनेमें कामयाब हूवा... '' क्रिस्तोफरने कटूतासे कहा.

'' मि. क्रिस्तोफर अंडरसन मुझे लगता है आपने पहले मेरा प्लॅन सुनना चाहिए और बादमें उसपर टिप्पणी करनी चाहिए... '' सॅमभी उसे वैसाही जवाब देते हूए बोला.

सॅमने प्रोजेक्टर ऑन किया. सामने स्क्रिनपर एक आकृती दिखने लगी.

'' अबतक जोभी कत्ल हूए है उसमें कातिल एक बिल्लीका इस्तमाल कर रहा होगा ऐसा लग रहा है... मतलब मुझे वैसा यकिन है.. '' सॅमने कहा.

सॅमने फिरसे अपने हाथमें पकडे रिमोटका एक बटन दबाया. स्क्रिनवर एक बिल्ली की तस्वीर और एक आदमी कॉम्प्यूटरपर काम कर रहा है ऐसी तस्वीर दिखने लगी.

'' इसके पहले हूए कत्लके इन्व्हेस्टीगेशनमें मिले कुछ तथ्योंसे मै इस नतिजेपर पहूंचा हूं की कत्ल करनेकी सिर्फ यही एक पद्धती हो सकती है... जिसके अनुसार कातिल यहां कॉम्प्यूटरपर बैठकर बिल्लीको सारे आदेश देता है ... और वे सब आदेश वायरेलेस टेक्नॉलॉजीके तहत यहां इस बिल्लीतकत भेजे जाते है... यह जो बेल्ट बिल्लीके गर्दनमें दिख रहा है... उसमें एक चिप है, जिसमें रिसीव्हर फिट किया हूवा है... वे सारे सिग्नल्स इस रिसीव्हरके द्वारा रिसीव्ह किये जाते है ... बादमें वे सिग्नल्स बिल्लीके गलेमें पहने पट्टेसे बिल्लीके दिमागतक पहूंचाए जाते है ... और उन सब सिग्नल्सके द्वारा मिले आदेशोंको अंम्मलमें लाकर वह बिल्ली अपने शिकारपर हमला करती है ... और अबतक हूए सारे कत्ल इसी पद्धतीका इस्तेमाल कर हुए होगे यह मै दावेके साथ कह सकता हूं... ''

सॅमने फिरसे अपने हाथमें रखे रिमोटका बटन दबाया.

सामने रखा स्क्रिन ब्लॅंक हो गया.

'' यह होगया कत्ल करनेका तरीका और अब अपने प्लॅनके बारेमें... '' सॅम एक दिर्घ सांस लेकर थोडी देर रुक गया. उसने अपने हाथसे रिमोट बाजू रख दिया.

'' अपना प्लॅन मैने दो हिस्सोमें विभागीत किया है... '' सामने बैठे लोगोंकी प्रतिक्रिया देखते हूए सॅम आगे बोलने लगा, '' अपने प्लॅनका पहला हिस्सा है उस बिल्लीको डिटेक्ट कर उसे सिग्नल्स कहांसे आ रहे है यह ट्रेस करना ... इसप्रकार हम खुनीका अतापता ढूंढ पायेंगे... '' सॅम फिरसे एक क्षण रुककर आगे बोला, '' और प्लॅनका दूसरा हिस्सा यह है की बिल्लीको मिलनेवाले सारे सिग्नलस् रोकना ताकी हम क्रिस्तोफरका संरक्षण कर शके ''

सॅमने फिरसे अपने बगलमें रखा रिमोट उठाकर उसका एक बटन दबाया. सामने स्क्रिनपर एक मकानका नक्शा दिखने लगा.

'' यह क्रिस्तोफरके घरका नक्शा... इसेभी हमे दो हिस्सोमे बांटना है ....'' सॅमने नक्शेमे दो, एक छोटा और दुसरा बडा ऐसी दो समकेंद्री सर्कल्स निकाले हूए थे वह लेजर बिमसे निर्देशीत कीये.

'' जिस तरहसे इस आकृतीमें बताया गया है ... यह जो पहला बाहरका बडा सर्कल है वह पहला हिस्सा.. और यह जो अंदरका छोटा सर्कल है वह दुसरा विभाग... '' सॅमने दोनो सर्कल पर एकके बाद एक लेजर बिम डालते हूए कहा.

'' जब वह बिल्ली बाहरके हिस्सेमें पहूंचेगी, हमें वह बिल्ली घरमें आनेका संकेत मिलेगा क्योंकी वहां हमने सिग्नल ट्रकर्स और सिग्नल रिसीव्हर्स डीटेक्टर्स बैठाए हूए है ..'' सॅम अपने हाथमें रखे रिमोटका लेजर बीम बंद करते हूए बोला.

'' सिग्नल ट्रकर्ससे हमे उन आनेवाले सिग्नल्सका स्त्रोत मिलेगा... और एकबार हमें उन सिग्नल्सका स्रोत मिलनेके बाद उस कातिलको लोकेट कर हम रेड हॅन्डेड पकड सकते है... '' सॅमने लेजर बिम शुरु कर बाहरके सर्कलकी तरफ निर्देश करते हूए कहा.,

'' जब वह बिल्ली दुसरे अंदरके छोटे सर्कलमें पहूंचेगी, वहां रखे हूए सिग्नल ब्लाकर्स उसे कातिलकी तरफसे मिनलनेवाले सारे सिग्नल्स और आदेश ब्लॉक करेंगे. मतलब बादमें उसका उस बिल्लीपर कोई नियंत्रण नही होगा '' सॅम लेजर बिम अंदरके सर्कलकी तरफ निर्देशीत करते हूए बोला.

सॅमने अपना पुरा प्लॅन सबको समझाया और बोर्डरुममें बैठे सब लोगोंपर अपनी नजर घुमाई. सामने बैठे हुए सारे ऑफिसर्स और पुलिस स्टाफ सॅमके इस प्लॅनके बारेंमे संतुष्ट लग रहे थे.

'' किसे कोई शंका? '' सॅमने सामने बैठे हूए लोगोंको, खासकर क्रिस्तोफरकी तरफ देखते हूए कहा.

'' देखते है ..'' क्रिस्तोफरने कंधे उचकाकर कहा. वह इस प्लॅनके बारेंमें उतना संतुष्ट नही लग रहा था.

सच कहो तो वह अंदरसे इतना टूट चुका था की वह कोईभी प्लॅन समझाकर लेनेके मनस्थीतीमें नही था. और वह लाजमीभी था क्योंकी उसे कातिलके लिस्टमें अपना अगला नंबर स्पष्ट रुपसे दिख रहा था.

'' तो चलो अब इस प्लॅनके हिसाबसे अपने अपने कामपर लग जावो... मैने जेफके पास किसे क्या क्या करना है इसकी ब्योरेवार लिस्ट दी हूई है... किसे कोई शंका हो तो मुझे पुछीएगा''

सॅम अपने टीमकी तरफ देखते हूए बोला.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 34

डिटेक्टीव्ह सॅम सुबह सुबह हॉलमें बैठकर चाय पीते हूए टीव्ही देख रहा था. एक एक घूंट धीरे धीरे पिते हूए मानो वह चायका आनंद ले रहा हो. देखनेके लिए तो वह टिव्हीकी तरफ देख रहा था लेकिन उसके दिमागमें कुछ अलगही विचारोंका तुफान मचा हूवा था. शायद वह उस कातिलके केसके बारेमेही सोच रहा होगा. जैसे जैसे उसके विचार दौड रहे थे वैसे वैसे वह रिमोटके बटन दबाकर तेजीसे चॅनल्स बदल रहा था. आखिर वह कार्टून चॅनलपर आकर रुका. थोडी देर कार्टून चॅनल देखकर शायद उसने खुदको लगातार टेन्शन्स, चिंता इससे हटाकर फिरसे ताजा किया हो. फिरसे उसने चॅनल बदला और अब वह डिस्कव्हरी चॅनल देखने लगा. शायद डिस्कव्हरीपर चल रहे प्रोग्रॅममें उसे इंटरेस्ट आने लगा था. उसने रिमोट अपने हाथसे बगलमें रख दिया और वह प्रोग्रॅम ध्यान देकर देखने लगा.


डिस्कव्हरी चॅनलपर चल रहे प्रोग्रॅममे एक चूहा दिखाया जाने लगा. उस चूहेके गलेमे एक छोटा पट्टा दिख रहा था और सरको एकदम छोटे छोटे वायर्स लगाए दिख रहे थे. फिर टीव्ही ऍन्कर बोलने लगा -

'' जब कोई जिवजंतू कोई क्रिया करता है उसे वह क्रिया करनेके लिए उसके दिमागको एक सिग्नल जाता है. अगर हम एकदम वैसाही सिग्नल उसके दिमागको बाहरसे देनेमे कामयाब हो गए तो हम उस जिवजंतूको अपने कब्जेमें कर सकते है. और उसे बाहरसे सब सिग्नल्स देकर उससे हमे जो चाहिए वह क्रिया करवाके ले सकते है.''

फिर टिव्हीपर एक कॉम्प्यूटर दिखने लगा. कॉम्पूटरके सामने एक वैज्ञानिक बैठा हूवा था.

डिटेक्टीव्ह सॅम टिव्हीपर चल रहा प्रोग्रॅम एकदम ध्यान लगाकर देखने लगा.

वह कॉम्पूटरके सामने बैठा वैज्ञानिक बोलने लगा -

'' इस कॉम्प्यूटरके द्वारा हम अलग अलग सिग्नल्स इस चिपपर, जो की इस चूहेके गलेमें लगे पट्टेमें बंधी हूई है, उसपर ट्रान्समिट कर सकते है. इस चिपके द्वारा यह सिग्नल चूहेके दिमागतक पहूचेंगे. और फिर जो जो सिग्नल्स हम उसे इस कॉम्प्यूटरके व्दारा देंगे उसके हिसाबसे वह चूहा अलग अलग कार्य करने लगेगा ''

फिर टिव्हीपर वह चूहा एकदम नजदिकसे दिखाया गया. एक छोटीसी चिप उसके गलेमें पट्टा बांधकर उसमें लगाई गई थी.

डिटेक्टीव्ह टिव्हीपर चल रहा प्रोग्रॅम देख रहा था. उसके चेहरेपर आश्चर्य और उत्सुकताके भाव दिख रहे थे.

टिव्हीपर वह वैज्ञानिक आगे बोलने लगा -

'' इस प्रकार हम अलग अलग तरहके आदेश इस सिग्नल ट्रान्समिशनके द्वारा उस चूहेको दे सकते है. अब फिलहाल हम कुछ दो चार आदेशही उसे देनेमें कामयाब हूए है. ''

फिर कॉम्प्यूटरके मॉनिटरपर चल रहे सॉफ्टवरमें उस वैज्ञानिकने माउसकी सहायता से 'राईट' बटन दबाया. और क्या आश्चर्य वह चूहा दाई तरफ मुडकर दौडने लगा.

कॉम्प्यूटरपर उस वैज्ञानिकने 'स्टॉप ' यह बटन दबाया और वह चूहा एकदम दौडते हूए रुक गया.

फिर उसने 'लेफ्ट' बटन दबाया और वह चूहा बाई तरफ मुडकर दौडने लगा.

आगे उसने 'जम्प' यह बटन दबाया और उस चूहे ने दौडते हूए छलांग लगाई.

फिरसे उसने 'स्टॉप' बटन दबाया और वह चूहा एक खानेके जिन्नसके सामने पहूंच गया था वही रुक गया.

वैज्ञानिकने 'ईट' बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखा हूवा खानेका जिन्नस खाने लगा.

फिरसे उसने 'स्टॉप' बटन दबाया और उस चूहेने खाना बंद किया.

अब वैज्ञानिकने 'अटॅक' बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखे हूए खानेके जिन्नस ना खाते हूए उसके तोड तोडकर टूकडे करने लगा.

यह सब देखते हूए अचानक सॅमके दिमागमें एक विचार कौंध गया.

उसे एक एक प्रसंग याद आने लगा...


...दो पुलिस टीमके मेंबर रिचर्ड और इरीक रोनॉल्डके घरकी सर्कीट टिव्हीपर जब निगरानी कर रहे थे तब एक बिल्लीने सर्कीट टीव्हीके ट्रान्समिटर युनिटपर छलांग लगाई थी. और उसकी वजहसे रोनॉल्डके बेडरुमकी सब हरकते टिव्हीपर दिखना बंद हूवा था. और जबतक रिचर्ड और इरिक बेडरुममें पहूंचते नही तबतक कत्ल हो चूका था.


डिटेक्टीव्ह अपनी सोचमें डूबा हूवा टिव्हीके सामनेसे उठ गया. उसे अगला प्रसंग याद आने लगा. ...


... जब डिटेक्टीव्ह सॅम और उसकी टीम इन्व्हेस्टीगेशनके लिए रोनॉल्डके बेडरुममें गए थे. और इन्व्हेस्टीगेशन करते वक्त सॅमने बेडके निचे झुककर देखा था. तब उसे बेडके निचे दो चमकती हूई आंखे दिखाई दी थी.

जब वह आंखे धीरे धीरे उसकी तरफ आकर अचानक हमला कीये जैसी उसपर झपट पडी थी, उसने छटसे वहांसे हटकर अपना बचाव किया था. और बादमें देखा तो गलेमें काला पट्टा पहनी हूई काली बिल्ली कॉटके निचेसे बाहर आकर दरवाजेसे बेडरुकके बाहर दौडकर जाते हूए दिखाई दी थी.


अब सॅमके दिमागमें एक एक गुथ्थी एकदम स्पष्टतासे सुलझ रही थी.

अब मुझे समय गवांना नही चाहिए ... .

मुझे जो कुछ भी करना है जल्दी करना चाहीए...

सोचते हूए डिटेक्टीव अगले कार्यवाहीके लिए तेजीसे घरके बाहर निकल पडा.


क्रमश...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 33

बंदीगृहमें चारो ओर अंधेरा फैला हूवा था. जॉर्ज एक कोठडीमे गुमसुमसा किसी सोचमें डूबा हूवा एक कोनेमें बैठा हूवा था. अचानक वह उठ खडा हूवा और अपने पहने हूए कपडे पागलोंकी तरह फाडने लगा. कपडे फाडनेके बाद उसने कोठरीमे इधर उधर पडे फटे कपडेके टूकडे जमा किये. उस टूकडोका वह फिरसे एक गुड्डा बनाने लगा. गुड्डा तैयार होनेके बाद उसके चेहरेपर एक रहस्यसे भरी, डरावनी हंसी फैल गई.

'' मि. ख्रिस्तोफर ऍन्डरसन... अब तुम्हारी बारी है... समझे'' वह पागलोकी तर उस गुड्डेसे बोलने लगा.

वहां ड्यूटीपर तैनात पुलिस काफी समयसे जॉर्जकी हरकतोपर बराबर नजर रखे हूए था. जैसेही उसने जॉर्ज बातचीत सुनी वह तेजीसे उठकर फोनके पास गया - अपने वरिष्ठ अधिकारीको इत्तला करनेके लिए.


ख्रिस्तोफर अपने घरमें, हॉलमें पिते हूए बैठा था. साथही वह चेहरेपर काफी सारी चिंताए लेकर एक के बाद एक लगातार सिगारेट पिये जा रहा था. थोडी देरसे वह उठ खडा हूवा और सोचते हूए कमरेमें धीरे धीरे चहलकदमी करने लगा. उसकी चालसे वह काफी थका हूवा मालूम पड रहा था. या फिर मदीराके चढे हूवे नशेसे वह वैसा लग रहा होगा. थोडी देर चहलकदमी करनेके बाद वह फिरसे कुर्सीपर बैठ गया और अपनीही सोचमें डूब गया. अचानक उसे घरमें किसी उपस्थीतीका अहसास हूवा. कोई किचनमे बर्तनोंसे छेडखानी कर रहा हो ऐसा लग रहा था.

किचनमें इस वक्त कौन होगा ?...

सब दरवाजे खिडकियां तो बंद है... .

की यहभी कोई आभास है ?...

अचानक एक बडा बर्तन फर्शपर गिरनेका आवाज होगया. क्रिस्तोफर एकदम उठकर खडा हो गया.

क्या हूवा होगा.?

उसका दिल जोर जोरसे धडकने लगा.

मै फालतूही घबरा रहा हू... कोई बिल्ली वैगेरा होगी. ...

उसने खुदको समझानेकी कोशीश की और धीरे धीरे चलते हूए, कोई आहट आती है क्या यह सुनते हूए, वह किचनमें जाने लगा.

किचनसे अब आवाजें आना बंद हूवा था. कुछ आहटभी नही थी. वह किचनके दरवाजेकेपास गया. और धीरेसे किचनका दरवाजा तिरछा करते हूए उसने अंदर झांककर देखा.

किचनमेंतो कोई नही दिख रहा है ...

वह किचनमें घुस गया. अंदर जानेके बाद उसने इधर उधर नजर दौडाकर देखा, पुरे किचनका एक राऊंड लगाया.

कहा? .. कुछ तो नही...

या मुझे सिर्फ आभास हो रहे है...

लेकिन जमिनपर एक खाली बर्तन पडा हूवा था.

वह संभ्रमकी स्थितीमें किचनसे वापस जानेके लिए मुडाही था की उसे अब हॉलसे कुछ टूटनेका आवाज आ गया. ख्रिस्तोफर चौंक गया और दौडते हूए हॉलमें चला गया.

हॉलमें उसे उसका व्हिस्कीका ग्लास निचे जमिनपर गिरकर टूटा हूवा मिला. व्हिस्की निचे गिरकर इधर उधर फैली हूई थी. उसने आसपास नजर दौडाई. कोई नही था.

ख्रिस्तोफरकी नशा पुरी तरह उतर चूकी थी.

साला कोई तो नही...

यह क्या हो रहा है मुझे ? ...

ग्लास निचे कैसे गिर गया?...

वह सोचते हूए फिरसे कुर्सीपर बैठ गया. उब उसने पुरी की पुरी बॉटलही मुंहको लगाई थी.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 32

सॅम और उसका पार्टनर जिस पुलीस अधिकारीने जॉन कार्टरके मौतकी केस हॅंडल की थी उस अधिकारी, डिटेक्टीव टेम्पलटन के सामने बैठे थे.

डिटेक्टीव टेम्पलटन जॉन कार्टरके बारेमें जानकारी देने लगा, '' मदिराके अतिसेवनकी वजहसे उसे ब्रॉंकायटीस होकर वह मर गया... ''

'' लेकिन आपको उसकी पहचान कैसे मिली ? '' सॅमने पुछा.

'' जिस कमरेंमे उसका मृतदेह मिला उस कमरेमें कुछ उसके कागजादभी मिले... उससे हमें उसकी पहचान हो गई... और उसका एक फोटो डिटेक्टीव्ह बेकरने जैसे सारे पुलिस थानोंपर भेजा था वैसा हमारे पास भी भेजा था....''

टेम्पलटनने अपने ड्रावरसे जॉनका फोटो निकालकर सॅमके सामने रखा.

'' इस फोटोकी वजहसे और डिटेक्टीव बेकरने भेजे जानकारीके वजहसे हमें उसका ऍड्रेस और घर वैगेरा मिलनेमें मदद हो गई. '' टेम्पलटनने कहा.

'' आपने उसके घरके लोगोंसे संपर्क किया था क्या ?'' सॅमने पुछा.

'' हां ... उनके घरके लोगोंकोभी यहां बुलाया था. ... उन्होनेभी बॉडी अपने कब्जेमें लेनेसे पहले जॉनकी पहचान कर ली थी और पोस्टमार्टममेभी उसकी पहचान जॉन कार्टर ऐसीही तय की गई है '' टेम्पलटनने कहा.

'' वह कब मरा होगा... मतलब शव मिलनेसे कितने दिन पहले'' सॅमने पुछा.

'' पोस्टमार्टमके अनुसार मार्च महिनेके शुरवातके दो तिन दिनमें उसकी मौत हूई होगी. '' वह अधिकारी बोला.

'' अर्ली मार्च... मतलब पहला खून होनेके बहुत पहले... '' सॅमने सोचकर कहा.

'' इसका मतलब हम जैसे समझ रहे थे वैसे वह कातिल नही है... '' सॅमने आगे कहा.

'' हां वैसा लग तो रहा है... '' टेम्पलटनने कहा.

काफी समय शांतीसे गुजर गया.

मतलब मुझे जो शक था वह सच होने जा रहा है...

सॅमको नॅन्सीका दोस्त जॉन कार्टरका अता पता मिलनेकी खबर उसके पार्टनरसे फोनपर मिलतेही वह बहुत खुश हो गया था.. ...

उसे लगा था चलो एक बारकी बला तो टली... जो केस सॉल्व हो गई... और कातिल थोडीही देरमें उनके कब्जेमें आनेवाला है....

लेकिन यहां आकर देखता हूं तो केसने और एक अलगही मोड लिया था...

जॉन कार्टरके मरनेका समय देखा जाए तो उसका इन खुनोंसे संबंध होनेकी कोई गुंजाईश नही थी...

'' जॉन कार्टर अगर कातिल नही है ... तो फिर कातिल कौन होगा?'' सॅमने जैसे खुदसेही सवाल किया.

कमरेके तिनो लोग सिर्फ एक दुसरेकी तरफ देखने लगे. क्योंकी उस सवालका जवाब उन तिनोंके पास नही था.

इतनेमें टेम्पलटनने उसके ड्रावरसे और एक तस्वीर निकालकर सॅमके सामने रख दी.

सॅमने वह तस्वीर उठाई और वह उस तस्वीरकी तरफ एकटक देखने लगा. उस तस्वीरमें जॉन कार्टर जमीनपर पडा हूवा दिख रहा था और उसके सामने फर्शपर खुनसे बडे अक्षरोंमे लिखा हूवा था,

'' नॅन्सी मुझे माफ करना ... मै तुम्हे बचा नही सका... लेकिन चिंता मत करो मै एक एक को चुनकर मारकर बदला लूंगा ... ''

सॅमको एक अंदाजा हो गया था की यह तस्वीर दिखाकर डिटेक्टीव्ह टेम्पलटन उसे क्या कहना चाहता हो.

'' मै सुन सुनकर थक गया हूं की इस कत्लमें किसी आदमीका हाथ न होकर किसी रुहानी ताकदका हाथ हो सकता है ... यह तस्वीर दिखाकर कही तुम्हेभीतो यही कहना नही है ?'' सॅमने टेम्पलटनको पुछा.

डिटेक्टीव टेम्पलटनने सॅम और उसके पार्टनरके चेहरेकी तरफ देखा.

'' नही मुझे ऐसा कुछ कहना नही है ... सिर्फ घट रही घटनाएं और जॉनने फर्शपर लिखा हूवा मेसेज दोनो कैसे एकदम मिलते जुलते है ... इसी ओर मुझे तुम्हारा ध्यान खिंचना है...'' डिटेक्टीव टेम्पलटनने शब्दोंको तोलमोलकर इस्तेमाल करते हूए कहा.


क्रमश:...

अद्भुत ( हिन्दी उपन्यास) - चेप्टर 31

डिटेक्टीव्ह सॅमने अपने बज रहे मोबाईलका डिस्प्ले देखा. फोन उसकेही पार्टनरका था. एक बटन दबाकर उसने वह अटेंड किया,

'' यस''

'' सर हमें नॅन्सीका दोस्त जॉन कार्टरका पता चल चूका है '' उधरसे उसके पार्टनरका आवाज आया.

'' गुड व्हेरी गुड'' सॅम उत्साहभरे स्वरमें बोला.

सॅमके पार्टनरने उसे एक ऍड्रेस दिया और तुरंत उधर आनेके लिए कहा.


.... जॉन कार्टर बेडपर पडा हूवा था और जोर जोरसे खांस रहा था. उसकी दाढी बढ चूकी थी और सरके बढे हूए बालभी बिखरे हूए दिख रहे थे. न जाने कितने दिनोंसे वह बेडपर इसी हालमें पडा हूवा था. उसका घरसे बाहर आना जानाभी बंद हो चूका था.

जब उसके प्रिय नॅन्सीका बलात्कार और कत्ल हो गया था तब वह इतना निराश और हतबल हो चूका था की उसे आगे क्या करे कुछ सुझ नही रहा था. उन गुनाहगारोंको सजा हो ऐसा उसे तहे दिलसे लग रहा था. लेकिन कैसे वह कुछ समझ नही पा रहा था. ऐसे मायूस और हतबल अवस्थामें वह शहरमें रातके अंधेरेमें पागलोंकी तरह सिर्फ घुमता रहता तो कभी शामको बिचपर जाकर डूबते सुरजको लगातार निहारता रहता. शायद उसे अपनी खुदकी अवस्थीभी कुछ उस डूबते सुरजकी तरह लगती हो. दिन रात पागलोंकी तरह इधर उधर भटकना और फिर थकनेके बाद बारमें जाकर मदीरामें डूब जाना. ऐसे उसकी दिनचर्या रहती थी. लेकिन ऐसा कितने दिनतक चलनेवाला था. आगे आगे तो उसका घुमना फिरनाभी कम होकर पीना बढ गया. इतना बढ गया की अब उसकी तबीयत खराब होकर वह न जाने कितने दिनसे बेडपर पडा हूवा था. बिस्तर पर पडे अवस्थामेंभी उसका पीना जारी था. थोडीभी नशा उतर जाती तो उसे वह भयानक बलात्कार और कत्लका दृष्य याद आता था. और वह फिरसे पीने लगता था.

अचानक उसे फिरसे खांसीका दौरा पड गया. वह उठनेका प्रयास करने लगा. लेकिन वह इतना क्षीण और कमजोर हूवा था की वह उठभी नही पा रहा था. कैसेतो दिवारका सहारा लेकर वह बेडसे उठ खडा हूवा. लेकिन अपना संतुलन खोकर निचे जमिनपर गिर गया. उसका खांसना लगातार शुरु था. खांसते खांसते उसे एक बडा दौरा पड गया और उसके मुंहसे खुन आने लगा. उसने मुंहको हाथ लगाकर देखा. खुन दिखतेही वह घबरा गया.

उठकर डॉक्टरके पास जाना चाहिए...

लेकिन वह उठभी नही पा रहा था.

चिल्लाकर लोगोंको जमा करना चाहिए...

लेकिन उसमें उतनी चिल्लानेकीभी शक्ती बाकी नही थी.

क्या किया जाए ?...

आखिर उसने एक निर्णय मनही मन पक्का किया और वह उसके हाथको लगे खुनसे फर्शपर कुछ लिखने लगा...


एक आदमी फोनपर बोल रहा था, '' हॅलो पुलिस स्टेशन?''

उधरसे जवाब आनेके लिए वह बिचमें रुक गया.

'' साहब ... हमारे पडोसमें कोई एक आदमी रहता है... मतलब रहता था... उसे हमने लगभग सात-आठ दिनसे देखा नही... उसका दरवाजाभी अंदरसे बंद है ... हमने उसका दरवाजा नॉक करके भी देखा... लेकिन अंदरसे कोई प्रतिक्रिया नही है... उसके घरसे लगातार किसी चिजके सडनेकी दुर्गंध आ रही है ... मुझे लगता है आप लोगोंमेसे कोई यहा आकर देखे तो अच्छा होगा.. ''

फिरसे वह उधरके जवाबके लिए रुका और '' थॅंक यू ... '' कहकर उसने फोन निचे रख दिया.

पुलिसकी एक टीम डिटेक्टीव्ह टेम्पलटनके नेतृत्वमें उस आदमीने फोनपर दिए पते पर तत्परतासे पहूंच गई. वह आदमी उनकी राहही देख रहा था. वे वहा पहूंचतेही वह आदमी उनको एक फ्लॅटके बंद दरवाजेके सामने ले गया. वहा पहूंचतेही एक किसी सडे हूए चिजकी दुर्गंध उनके नाकमें घूस गई. उन्होने तुरंत रुमाल निकालकर अपने अपने नाक को ढंक लिया. उन्होने उस दुर्गंधके उगमका शोध लेनेकी कोशीश की तो वह दुर्गंध उस घरसेही आ रही थी. उन्होने दरवाजा धकेलकर देखा. दरवाजा शायद अंदरसे बंद था. उन्होने दरवाजेको नॉक कर देखा. अंदरसे कोई प्रतिक्रिया नही थी. जिस आदमीने फोनपर पुलिसको इत्तला किया था वह बार बार वही हकिकत उन्हे सुना रहा था. आखिर पुलिसने दरवाजा तोड दिया. दरवाजा तोडनेके बाद तो वह सडी हूई दुर्गंध औरही तिव्रतासे आने लगी. मुंहपर और नाकपर कसकर रुमाल लगाकर वे धीरे धीरे अंदर जाने लगे.

पुलिसकी टीम जब बेडरुममें पहूंच गई तब उन्हे सडनेकी प्रक्रिया शुरु हुवा जॉन कार्टरका मृतदेह जमिनपर पडा हूवा मिला. नाकको रुमालसे कसकर ढंकते हूए वे उस डेड बॉडीके पास गए. वहा जमिनपर मरनेके पहले उसने खुनसे कुछ लिखा हूवा दिखाई दे रहा था. उनमेंसे एक पुलिसने वह नजदीक जाकर पढा,

'' नॅन्सी मुझे माफ कर देना... मै तुम्हे बचा नही पाया... लेकिन चिंता मत करो... उन बदमाशोंका ... एक एक करके बदला लिए बिना मुझे शांती नही मिलेगी... ''


क्रमश:...

April 19, 2014

सिंहासन बत्तीसी - बत्तीसवीं पुतली (रानी रुपवती)

बत्तीसवीं पुतली रानी रुपवती ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने की कोई रुचि नहीं दिखाते देखा तो उसे अचरज हुआ। उसने जानना चाहा कि राजा भोज में आज पहले वाली व्यग्रता क्यों नहीं है। राजा भोज ने कहा कि राजा विक्रमादित्य के देवताओं वाले गुणों की कथाएँ सुनकर उन्हें ऐसा लगा कि इतनी विशेषताएँ एक मनुष्य में असम्भव हैं और मानते हैं कि उनमें बहुत सारी कमियाँ है। अत: उन्होंने सोचा है कि सिंहासन को फिर वैसे ही उस स्थान पर गड़वा देंगे जहाँ से इसे निकाला गया है।

राजा भोज का इतना बोलना था कि सारी पुतलियाँ अपनी रानी के पास आ गईं। उन्होंने हर्षित होकर राजा भोज को उनके निर्णय के लिए धन्यवाद दिया। पुतलियों ने उन्हें बताया कि आज से वे भी मुक्त हो गईं। आज से यह सिंहासन बिना पुतलियों का हो जाएगा। उन्होंने राजा भोज को विक्रमादित्य के गुणों का आंशिक स्वामी होना बतलाया तथा कहा कि इसी योग्यता के चलते उन्हें इस सिंहासन के दर्शन हो पाये। उन्होंने यह भी बताया कि आज से इस सिंहासन की आभा कम पड़ जाएगी और धरती की सारी चीजों की तरह इसे भी पुराना पड़कर नष्ट होने की प्रक्रिया से गुज़रना होगा।

इतना कहकर उन पुतलियों ने राजा से विदा ली और आकाश की ओर उड़ गईं। पलक झपकते ही सारी की सारी पुतलियाँ आकाश में विलीन हो गई।

पुतलियों के जाने के बाद राजा भोज ने कर्मचारियों को बुलवाया तथा गड्ढा खुदवाने का निर्देश दिया। जब मजदूर बुलवाकर गड़ढा खोद डाला गया तो वेद मन्त्रों का पाठ करवाकर पूरी प्रजा की उपस्थिति में सिंहासन को गड्ढे में दबवा दिया। मिट्टी डालकर फिर वैसा ही टीला निर्मित करवाया गया जिस पर बैठकर चरवाहा अपने फैसले देता था। लेकिन नया टीला वह चमत्कार नहीं दिखा सका जो पुराने वाले टीले में था।

उपसंहार- कुछ भिन्नताओं के साथ हर लोकप्रिय संस्करण में उपसंहार के रुप में एक कथा और मिलती है। उसमें सिंहासन के साथ पुन: दबवाने के बाद क्या गुज़रा- यह वर्णित है। आधिकारिक संस्कृत संस्करण में यह उपसंहार रुपी कथा नहीं भी मिल सकती है, मगर जन साधारण में काफी प्रचलित है।

कई साल बीत गए। वह टीला इतना प्रसिद्ध हो चुका था कि सुदूर जगहों से लोग उसे देखने आते थे। सभी को पता था कि इस टीले के नीचे अलौकिक गुणों वाला सिंहासन दबा पड़ा है। एक दिन चोरों के एक गिरोह ने फैसला किया कि उस सिंहासन को निकालकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर बेच देना चाहते थे। उन्होंने टीले से मीलों पहले एक गड्ढा खोदा और कई महीनों की मेहनत के बाद सुरंग खोदकर उस सिंहासन तक पहुँचे। सिंहासन को सुरंग से बाहर लाकर एक निर्जन स्थान पर उन्होंने हथौड़ों के प्रहार से उसे तोड़ना चाहा। चोट पड़ते ही ऐसी भयानक चिंगारी निकलती थी कि तोड़ने वाले को जलाने लगती थी। सिंहासन में इतने सारे बहुमूल्य रत्न-माणिक्य जड़े हुए थे कि चोर उन्हें सिंहासन से अलग करने का मोह नहीं त्याग रहे थे।

सिंहासन पूरी तरह सोने से निर्मित था, इसलिए चोरों को लगता था कि सारा सोना बेच देने पर भी कई हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ मिल जाएगीं और उनके पास इतना अधिक धन जमा हो जाएगा कि उनके परिवार में कई पुरखों तक किसी को कुछ करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। वे सारा दिन प्रयास करते रहे मगर उनके प्रहारों से सिंहासन को रत्ती भर भी क्षति नहीं पहुँची। उल्टे उनके हाथ चिंगारियों से झुलस गए और चिंगारियों को बार-बार देखने से उनकी आँखें दुखने लगीं। वे थककर बैठ गए और सोचते-सोचते इस नतीजे पर पहुँचे कि सिंहासन भुतहा है। भुतहा होने के कारण ही राजा भोज ने इसे अपने उपयोग के लिए नहीं रखा। महल में इसे रखकर ज़रुर ही उन्हें कुछ परेशानी हुई होगी, तभी उन्होंने ऐसे मूल्यवान सिंहासन को दुबारा ज़मीन में दबवा दिया। वे इसका मोह राजा भोज की तरह ही त्यागने की सोच रहे थे। तभी उनका मुखिया बोला कि सिंहासन को तोड़ा नहीं जा सकता, पर उसे इसी अवस्था में उठाकर दूसरी जगह ले जाया जा सकता है।

चोरों ने उस सिंहासन को अच्छी तरह कपड़े में लपेट दिया और उस स्थान से बहुत दूर किसी अन्य राज्य में उसे उसी रुप में ले जाने का फैसला कर लिया। वे सिंहासन को लेकर कुछ महीनों की यात्रा के बाद दक्षिण के एक राज्य में पहुँचे। वहाँ किसी को उस सिंहासन के बारे में कुछ पता नहीं था। उन्होंने जौहरियों का वेश धरकर उस राज्य के राजा से मिलने की तैयारी की। उन्होंने राजा को वह रत्न जड़ित स्वर्ण सिंहासन दिखाते हुए कहा कि वे बहुत दूर के रहने वाले हैं तथा उन्होंने अपना सारा धन लगाकर यह सिंहासन तैयार करवाया है।

राजा ने उस सिंहासन की शुद्धता की जाँच अपने राज्य के बड़े-बड़े सुनारों और जौहरियों से करवाई। सबने उस सिंहासन की सुन्दरता और शुद्धता की तारीफ करते हुए राजा को वह सिंहासन खरीद लेने की सलाह दी। राजा ने चोरों को उसका मुँहमाँगा मूल्य दिया और सिंहासन अपने बैठने के लिए ले लिया। जब वह सिंहासन दरबार में लगाया गया तो सारा दरबार अलौकिक रोशनी से जगमगाने लगा। उसमें जड़े हीरों और माणिक्यों से बड़ी मनमोहक आभा निकल रहीं थी। राजा का मन भी ऐसे सिंहासन को देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ। शुभ मुहू देखकर राजा ने सिंहासन की पूजा विद्वान पंडितों से करवाई और उस सिंहासन पर नित्य बैठने लगा।

सिंहासन की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी। बहुत दूर-दूर से राजा उस सिंहासन को देखने के लिए आने लगे। सभी आने वाले उस राजा के भाग्य को धन्य कहते, क्योंकि उसे ऐसा अद्भुत सिंहासन पर बैठने का अवसर मिला था। धीरे-धीरे यह प्रसिद्धि राजा भोज के राज्य तक भी पहुँची। सिंहासन का वर्णन सुनकर उनको लगा कि कहीं विक्रमादित्य का सिंहासन न हो। उन्होंने तत्काल अपने कर्मचारियों को बुलाकर विचार-विमर्श किया और मज़दूर बुलवाकर टीले को फिर से खुदवाया। खुदवाने पर उनकी शंका सत्य निकली और सुरंग देखकर उन्हें पता चल गया कि चोरों ने वह सिंहासन चुरा लिया। अब उन्हें यह आश्चर्य हुआ कि वह राजा विक्रमादित्य के सिंहासन पर आरुढ़ कैसे हो गया। क्या वह राजा सचमुच विक्रमादित्य के समकक्ष गुणों वाला है?

उन्होंने कुछ कर्मचारियों को लेकर उस राज्य जाकर सब कुछ देखने का फैसला किया। काफी दिनों की यात्रा के बाद वहाँ पहुँचे तो उस राजा से मिलने उसके दरबार पहुँचे। उस राजा ने उनका पूरा सत्कार किया तथा उनके आने का प्रयोजन पूछा। राजा भोज ने उस सिंहासन के बारे में राजा को सब कुछ बताया। उस राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा कि उसे सिंहासन पर बैठने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई।

राजा भोज ने ज्योतिषियों और पंडितों से विमर्श किया तो वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हो सकता है कि सिंहासन अब अपना सारा चमत्कार खो चुका हो। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि सिंहासन अब सोने का न हो तथा रत्न और माणिक्य काँच के टुकड़े मात्र हों।

उस राजा ने जब ऐसा सुना तो कहा कि यह असम्भव है। चोरों से उसने उसे खरीदने से पहले पूरी जाँच करवाई थी। लेकिन जब जौहरियों ने फिर से उसकी जाँच की तो उन्हें घोर आश्चर्य हुआ। सिंहासन की चमक फीकी पड़ गई थी तथा वह एकदम पीतल का हो गया था। रत्न-माणिक्य की जगह काँच के रंगीन टुकड़े थे। सिंहासन पर बैठने वाले राजा को भी बहुत आश्चर्य हुआ। उसने अपने ज्योतिषियों और पण्डितों से सलाह की तथा उन्हें गणना करने को कहा। उन्होंने काफी अध्ययन करने के बाद कहा कि यह चमत्कारी सिंहासन अब मृत हो गया है। इसे अपवित्र कर दिया गया और इसका प्रभाव जाता रहा।

उन्होंने कहा- "अब इस मृत सिंहासन का शास्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया जाना चाहिए। इसे जल में प्रवाहित कर दिया जाना चाहिए।"

उस राजा ने तत्काल अपने कर्मचारियों को बुलाया तथा मज़दूर बुलवा कर मंत्रोच्चार के बीच उस सिंहासन को कावेरी नदी में प्रवाहित कर दिया।

समय बीतता रहा। वह सिंहासन इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया। लोक कथाओं और जन-श्रुतियों में उसकी चर्चा होती रही। अनेक राजाओं ने विक्रमादित्य का सिंहासन प्राप्त करने के लिए कालान्तर में एक से बढ़कर एक गोता खोरो को तैनात किया और कावेरी नदी को छान मारा गया। मगर आज तक उसकी झलक किसी को नहीं मिल पाई है। लोगों का विश्वास है कि आज भी विक्रमादित्य की सी खूबियों वाला अगर कोई शासक हो तो वह सिंहासन अपनी सारी विशेषताओं और चमक के साथ बाहर आ जाएगा।

सिंहासन बत्तीसी - इकत्तीसवीं पुतली (कौशल्या)

इकत्तीसवीं पुतली जिसका नाम कौशल्या था, ने अपनी कथा इस प्रकार कही- राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अन्त अब काफी निकट है। वे राज-काज और धर्म कार्य दोनों में अपने को लगाए रखते थे। उन्होंने वन में भी साधना के लिए एक आवास बना रखा था। एक दिन उसी आवास में एक रात उन्हें अलौकिक प्रकाश कहीं दूर से आता मालूम पड़ा। उन्होंने गौर से देखा तो पता चला कि सारा प्रकाश सामने वाली पहाड़ियों से आ रहा है। इस प्रकाश के बीच उन्हें एक दमकता हुआ सुन्दर भवन दिखाई पड़ा। उनके मन में भवन देखने की जिज्ञासा हुई और उन्होंने काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मरण किया। उनके आदेश पर बेताल उन्हें पहाड़ी पर ले आए और उनसे बोले कि वे इसके आगे नहीं जा सकते। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि उस भवन के चारों ओर एक योगी ने तंत्र का घेरा डाल रखा है तथा उस भवन में उसका निवास है। उन घेरों के भीतर वही प्रवेश कर सकता है जिसका पुण्य उस योगी से अधिक हो।

विक्रम ने सच जानकर भवन की ओर कदम बढ़ा दिया । वे देखना चाहते थे कि उनका पुण्य उस योगी से अधिक है या नहीं। चलते-चलते वे भवन के प्रवेश द्वार तक आ गए। एकाएक कहीं से चलकर एक अग्नि पिण्ड आया और उनके पास स्थिर हो गया। उसी समय भीतर से किसी का आज्ञाभरा स्वर सुनाई पड़ा। वह अग्निपिण्ड सरककर पीछे चला गया और प्रवेश द्वार साफ़ हो गया। विक्रम अन्दर घुसे तो वही आवाज़ उनसे उनका परिचय पूछने लगी। उसने कहा कि सब कुछ साफ़-साफ़ बताया जाए नहीं तो वह आने वाले को श्राप से भ कर देगा।

विक्रम तब तक कक्ष में पहुँच चुके थे और उन्होंने देखा कि योगी उठ खड़ा हुआ। उन्होंने जब उसे बताया कि वे विक्रमादित्य हैं तो योगी ने अपने को भाग्यशाली बताया। उसने कहा कि विक्रमादित्य के दर्शन होंगे यह आशा उसे नहीं थी। योगी ने उनका खूब आदर-सत्कार किया तथा विक्रम से कुछ माँगने को बोला। राजा विक्रमादित्य ने उससे तमाम सुविधाओं सहित वह भवन माँग लिया।

विक्रम को वह भवन सौंपकर योगी उसी वन में कहीं चला गया। चलते-चलते वह काफी दूर पहुँचा तो उसकी भेंट अपने गुरु से हुई। उसके गुरु ने उससे इस तरह भटकने का कारण जानना चाहा तो वह बोला कि भवन उसने राजा विक्रमादित्य को दान कर दिया है। उसके गुरु को हँसी आ गई। उसने कहा कि इस पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ दानवीर को वह क्या दान करेगा और उसने उसे विक्रमादित्य के पास जाकर ब्राह्मण रुप में अपना भवन फिर से माँग लेने को कहा। वह वेश बदलकर उस कुटिया में विक्रम से मिला जिसमें वे साधना करते थे। उसने रहने की जगह की याचना की। विक्रम ने उससे अपनी इच्छित जगह माँगने को कहा तो उसने वह भवन माँगा। विक्रम ने मुस्कुराकर कहा कि वह भवन ज्यों का त्यों छोड़कर वे उसी समय आ गए थे। उन्होंने बस उसकी परीक्षा लेने के लिए उससे वह भवन लिया था।

इस कथा के बाद इकत्तीसवीं पुतली ने अपनी कथा खत्म नहीं की। वह बोली- राजा विक्रमादित्य भले ही देवताओं से बढ़कर गुण वाले थे और इन्द्रासन के अधिकारी माने जाते थे, वे थे तो मानव ही। मृत्युलोक में जन्म लिया था, इसलिए एक दिन उन्होंने इहलीला त्याग दी। उनके मरते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। उनकी प्रजा शोकाकुल होकर रोने लगी। जब उनकी चिता सजी तो उनकी सभी रानियाँ उस चिता पर सती होने को चढ़ गईं। उनकी चिता पर देवताओं ने फूलों की वर्षा की।

उनके बाद उनके सबसे बड़े पुत्र को राजा घोषित किया गया। उसका धूमधाम से तिलक हुआ। मगर वह उनके सिंहासन पर नहीं बैठ सका। उसको पता नहीं चला कि पिता के सिंहासन पर वह क्यों नहीं बैठ सकता है। वह उलझन में पड़ा था कि एक दिन स्वप्न में विक्रम खुद आए। उन्होंने पुत्र को उस सिंहासन पर बैठने के लिए पहले देवत्व प्राप्त करने को कहा। उन्होंने उसे कहा कि जिस दिन वह अपने पुण्य-प्रताप तथा यश से उस सिंहासन पर बैठने लायक होगा तो वे खुद उसे स्वप्न में आकर बता देंगे। मगर विक्रम उसके सपने में नहीं आए तो उसे नहीं सूझा कि सिंहासन का किया क्या जाए। पंडितों और विद्वानों के परामर्श पर वह एक दिन पिता का स्मरण करके सोया तो विक्रम सपने में आए। सपने में उन्होंने उससे उस सिंहासन को ज़मीन में गड़वा देने के लिए कहा तथा उसे उज्जैन छोड़कर अम्बावती में अपनी नई राजधानी बनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि जब भी पृथ्वी पर सर्वगुण सम्पन्न कोई राजा कालान्तर में पैदा होगा, यह सिंहासन खुद-ब-खुद उसके अधिकार में चला जाएगा।

पिता के स्वप्न वाले आदेश को मानकर उसने सुबह में मजदूरों को बुलवाकर एक खूब गहरा गड्ढा खुदवाया तथा उस सिंहासन को उसमें दबवा दिया। वह खुद अम्बावती को नई राजधानी बनवाकर शासन करने लगा।

सिंहासन बत्तीसी - तीसवीं पुतली (जयलक्ष्मी)

तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी। उन्होंने अपने तप से जान लिया कि वे अब अधिक से अधिक छ: महीने जी सकते हैं। अपनी मृत्यु को आसन्न समझकर उन्होंने वन में एक कुटिया बनवा ली तथा राज-काज से बचा हुआ समय साधना में बिताने लगे। एक दिन राजमहल से कुटिया की तरफ आ रहे थे कि उनकी नज़र एक मृग पर पड़ी। मृग अद्भुत था और ऐसा मृग विक्रम ने कभी नहीं देखा था। उन्होंने धनुष हाथ में लेकर दूसरा हाथ तरकश में डाला ही था कि मृग उनके समीप आकर मनुष्य की बोली में उनसे अपने प्राणों की भीख माँगने लगा। विक्रम को उस मृग को मनुष्यों की तरह बोलते हुए देख बड़ा आश्चर्य हुआ और उनका हाथ स्वत: थम गया।

विक्रम ने उस मृग से पूछा कि वह मनुष्यों की तरह कैसे बोल लेता है तो वह बोला कि यह सब उनके दर्शन के प्रभाव से हुआ है। विक्रम की जिज्ञासा अब और बढ़ गई। उन्होंने उस मृग को पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो उसने बताना शुरु किया।

"मैं जन्मजात मृग नहीं हूँ। मेरा जन्म मानव कुल में एक राजा के यहाँ हुआ। अन्य राजकुमारों की भाँति मुझे भी शिकार खेलने का बहुत शौक था। शिकार के लिए मैं अपने घोड़े पर बहुत दूर तक घने जंगलों में घुस जाता था। एक दिन मुझे कुछ दूरी पर मृग होने का आभास हुआ और मैंने आवाज़ को लक्ष्य करके एक वाण चलाया। दरअसल वह आवाज़ एक साधनारत योगी की थी जो बहुत धीमें स्वर में मंत्रोच्चार कर रहा था। तीर उसे तो नहीं लगा, पर उसकी कनपटी को छूता हुआ पूरो वेग से एक वृक्ष के तने में घुस गया। मैं अपने शिकार को खोजते-खोजते वहाँ तक पहुँचा तो पता चला मुझसे कैसा अनिष्ट होने से बच गया। योगी की साधना में विघ्न पड़ा था. इसलिए वह काफी क्रुद्ध हो गया था। उसने जब मुझे अपने सामने खड़ा पाया तो समझ गया कि वह वाण मैंने चलाया था। उसने लाल आँखों से घूरते हुए मुझे श्राप दे दिया। उसने कहा- "ओ मृग का शिकार पसंद करने वाले मूर्ख युवक, आज से खुद मृग बन जा। आज के बाद से आखेटकों से अपने प्राणों की रक्षा करता रह।"

उसने श्राप इतनी जल्दी दे दिया कि मुझे अपनी सफ़ाई में कुछ कहने का मौका नहीं मिला। श्राप की कल्पना से ही मैं भय से सिहर उठा। मैं योगी के पैरों पर गिर पड़ा तथा उससे श्राप मुक्त करने की प्रार्थना करने लगा। मैंने रो-रो कर उससे कहा कि उसकी साधना में विघ्न उत्पन्न करने का मेरा कोई इरादा नहीं था और यह सब अनजाने में मुझसे हो गया। मेरी आँखों में पश्चाताप के आँसू देखकर उस योगी को दया आ गई। उसने मुझसे कहा कि श्राप वापस तो नहीं लिया जा सकता, लेकिन वह उस श्राप के प्रभाव को सीमित ज़रुर कर सकता है। मैंने कहा कि जितना अधिक संभव है उतना वह श्राप का प्रभाव कम कर दे तो उसने कहा- "तुम मृग बनकर तब तक भटकते रहोगे जब तक महान् यशस्वी राजा विक्रमादित्य के दर्शन नहीं हो जाएँ। विक्रमादित्य के दर्शन से ही तुम मनुष्यों की भाँति बोलना शुरु कर दोगे।"

विक्रम को अब जिज्ञासा हुई कि वह मनुष्यों की भाँति बोल तो रहा है मगर मनुष्य में परिवर्तित नहीं हुआ है। उन्होंने उससे पूछा- "तुम्हें मृग रुप से कब मुक्ति मिलेगी? कब तुम अपने वास्तविक रुप को प्राप्त करोगे?

वह श्रापित राजकुमार बोला- "इससे भी मुझे मुक्ति बहुत शीघ्र मिल जाएगी। उस योगी के कथनानुसार मैं अगर आपको साथ लेकर उसके पास जाऊँ तो मेरा वास्तविक रुप मुझे तुरन्त ही वापस मिल जाएगा।"

विक्रम खुश थे कि उनके हाथ से शापग्रस्त राजकुमार की हत्या नहीं हुई अन्यथा उन्हें निरपराध मनुष्य की हत्या का पाप लग जाता और वे ग्लानि तथा पश्चाताप की आग में जल रहे होते। उन्होंने मृगरुपी राजकुमार से पूछा- "क्या तुम्हें उस योगी के निवास के बारे में कुछ पता है? क्या तुम मुझे उसके पास लेकर चल सकते हो?"

उस राजकुमार ने कहा- "हाँ, मैं आपको उसकी कुटिया तक अभी लिए चल सकता हूँ। संयोग से वह योगी अभी भी इसी जंगल में थोड़ी दूर पर साधना कर रहा है।"

वह मृग आगे-आगे चला और विक्रम उसका अनुसरण करते-करते चलते रहे। थोड़ी दूर चलने के पश्चात उन्हें एक वृक्ष पर उलटा होकर साधना करता एक योगी दिखा। उनकी समझ में आ गया कि राजकुमार इसी योगी की बात कर रहा था। वे जब समीप आए तो वह योगी उन्हें देखते ही वृक्ष से उतरकर सीधा खड़ा हो गया। उसने विक्रम का अभिवादन किया तथा दर्शन देने के लिए उन्हें नतमस्तक होकर धन्यवाद दिया।

विक्रम समझ गए कि वह योगी उनकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। लेकिन उन्हें जिज्ञासा हुई कि वह उनकी प्रतीक्षा क्यों कर रहा था। पूछने पर उसने उन्हें बताया कि सपने में एक दिन इन्द्र देव ने उन्हें दर्शन देकर कहा था कि महाराजा विक्रमादित्य ने अपने कर्मों से देवताओं-सा स्थान प्राप्त कर लिया है तथा उनके दर्शन प्राप्त करने वाले को इन्द्र देव या अन्य देवताओं के दर्शन का फल प्राप्त होता है। "मैं इतनी कठिन साधना सिर्फ आपके दर्शन का लाभ पाने के लिए कर रहा था।"- उस योगी ने कहा।

विक्रम ने पूछा कि अब तो उसने उनके दर्शन प्राप्त कर लिए, क्या उनसे वह कुछ और चाहता है। इस पर योगी ने उनसे उनके गले में पड़ी इन्द्र देव के मूंगे वाली माला मांगी। राजा ने खुशी-खुशी वह माला उसे दे दी। योगी ने उनका आभार प्रकट किया ही था कि श्रापित राजकुमार फिर से मानव बन गया। उसने पहले विक्रम के फिर उस योगी के पाँव छूए।

राजकुमार को लेकर विक्रम अपने महल आए। दूसरे दिन अपने रथ पर उसे बिठा उसके राज्य चल दिए। मगर उसके राज्य में प्रवेश करते ही सैनिकों की टुकड़ी ने उनके रथ को चारों ओर से घेर लिया तथा राज्य में प्रवेश करने का उनका प्रयोजन पूछने लगे। राजकुमार ने अपना परिचय दिया और रास्ता छोड़ने को कहा। उसने जानना चाहा कि उसका रथ रोकने की सैनिकों ने हिम्मत कैसे की। सैनिकों ने उसे बताया कि उसके माता-पिता को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया गया है और अब इस राज्य पर किसी और का अधिकार हो चुका है। चूँकि राज्य पर अधिकार करते वक्त राजकुमार का कुछ पता नहीं चला, इसलिए चारों तरफ गुप्तचर उसकी तलाश में फैला दिए गये थे। अब उसके खुद हाज़िर होने से नए शासक का मार्ग और प्रशस्त हो गया है।

राजा विक्रमादित्य ने उन्हें अपना परिचय नहीं दिया और खुद को राजकुमार के दूत के रुप में पेश करते हुए कहा कि उनका एक संदेश नये शासक तक भेजा जाए। उन्होंने उस टुकड़ी के नायक को कहा कि नये शासक के सामने दो विकल्प हैं- या तो वह असली राजा और रानी को उनका राज्य सौंपकर चला जाए या युद्ध की तैयारी करे।

उस सेनानायक को बड़ अजीब लगा। उसने विक्रम का उपहास करते हुए पूछा कि युद्ध कौन करेगा। क्या वही दोनों युद्ध करेंगे। उसको उपहास करते देख उनका क्रोध साँतवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने तलवार निकाली और उसका सर धड़ से अलग कर दिया। सेना में भगदड़ मच गई। किसी ने दौड़कर नए शासक को खबर की। वह तुरन्त सेना लेकर उनकी ओर दौड़ा।

विक्रम इस हमले के लिए तैयार बैठे थे। उन्होंने दोनों बेतालों का स्मरण किया तथा बेतालों ने उनका आदेश पाकर रथ को हवा में उठ लिया। उन्होंने वह तिलक लगाया जिससे अदृश्य हो सकते थे और रथ से कूद गये। अदृश्य रहकर उन्होंने दुश्मनों को गाजर-मूली की तरह काटना शुरु कर दिया। जब सैकड़ो सैनिक मारे गए और दुश्मन नज़र नहीं आया तो सैनिकों में भगदड़ मच गई और राजा को वहीं छोड़ अधिकांश सैनिक रणक्षेत्र से भाग खड़े हुए। उन्हें लगा कि कोई पैशाचिक शक्ति उनका मुक़ाबला कर रही है। नए शासक का चेहरा देखने लायक था। वह आश्चर्यचकित और भयभीत था ही, हताश भी दिख रहा था।

उसे हतप्रभ देख विक्रम ने अपनी तलवार उसकी गर्दन पर रख दी तथा अपने वास्तविक रुप में आ गए। उन्होंने उस शासक से अपना परिचय देते हुए कहा कि या तो वह इसी क्षण यह राज्य छोड़कर भाग जाए या प्राण दण्ड के लिए तैयार रहे। वह शासक विक्रमादित्य की शक्ति से परिचित था तथा उनका शौर्य आँखों से देख चुका था, अत: वह उसी क्षण उस राज्य से भाग गया।

वास्तविक राजा-रानी को उनका राज्य वापस दिलाकर वे अपने राज्य की ओर चल पड़े। रास्ते में एक जंगल पड़ा। उस जंगल में एक मृग उनके पास आया तथा एक सिंह से अपने को बचाने को बोला। मगर महाराजा विक्रमादित्य ने उसकी मदद नहीं की। वे भगवान के बनाए नियम के विरुद्ध नहीं जा सकते थे। सिंह भूखा था और मृग आदि जानवर ही उसकी क्षुधा शान्त कर सकते थे। यह सोचते हुए उन्होंने सिहं को मृग का शिकार करने दिया।