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March 4, 2013

Hindi Horror Story - भूतों का मेला-एक रहस्यमयी हकीकत..

बाबा मुझे माफ कर दो ! मैं इसे छोड़ कर चला जाऊँगा !

गुरू साहेब बाबा की समाधि का चक्कर लगाती वह पागल सी युवती की करूण वेदना !

कौन है जो इस महिला के माध्यम से बाबा से प्रार्थना कर रहा है?

वह युवती पास के गांव की रहने वाली थी। उस युवती को जब भी वह अदृश्य आत्मा परेशान करती थी तो उसे होश तक नहीं रहता था। उसे संभालने के लिए उसके परिजन उसके साथ थे। उस दिन और रात भर मलाजपुर स्थित बंधारा नदी में कड़ाके की ठंड में नहा कर आने के बाद कई महिलाएँ, पुरुष गुरू साहेब बाबा की समाधि के चारों ओर चक्कर काटते बाबा से रहम की भीख मांगते चले जा रहे थे। पूरी दुनिया में इस तरह का भूतों का मेला कहीं भी नहीं लगता है।

मलाजपुर के इस बाबा के समाधि स्थल के आसपास के पेड़ों की झुकी डालियाँ उल्टे लटके भूत-प्रेत की याद ताजा करवा रही थी। ऐसी धारणा है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को छोडऩे के बाद उसके शरीर में समाहित प्रेत बाबा की समाधि के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उल्टा लटक जाता है।

प्रतिवर्ष मकर संक्राति के बाद वाली पूर्णिमा को लगने वाले इस भूतों के मेले में आने वाले सैलानियों में देश-विदेश के लोगों की संख्या काफी मात्रा में होती है। खुली नंगी आँखों के सामने दुनिया भर से आये लोगों की मौजूदगी में हर साल होने वाले इस मेले में लोग डरे-सहमे वहाँ पर होने वाले हर पल का आनंद उठाते हैं। गुरू साहब बाबा की समाधि पर लगने वाले वाले विश्व के भूतों के एक मात्र मेले में पूर्णिमा की रात का महत्व काफी होता है। यह मेला एक माह तक चलता है। ग्राम पंचायत मलाजपुर इसका आयोजन करती है। कई अंग्रेजों ने पुस्तकों एवं उपन्यासों तथा स्मरणों में इस मेले का जिक्र किया है। इन विदेशी लेखकों के किस्सों के चलते ही हर वर्ष कोई ना कोई विदेशी बैतूल जिले में स्थित मलाजपुर के गुरू साहेब के मेले में आता है।

सतपुड़ा में मध्यप्रदेश के दक्षिण में बसे गोंडवाना क्षेत्र के जिलो में से एक बैतूल विभिन्न संस्कृतियों एवं भिन्न-भिन्न परंपराओं को मानने वाली जातियों-जनजातियों सहित अनेकों धर्मों व संस्कृतियों के मानने वाले लोगो से भर पूरा है। इस क्षेत्र में पीढ़ियों से निवास करते चले आ रहे इन्ही लोगों की आस्था एंव अटूट विश्वास का केन्द्र कहा जाने वाला गुरू साहेब बाबा का यह समाधि स्थल पर आने-वाले लोगों के बताए किस्से-कहानियाँ लोगों को बरबस इस स्थान पर खींच लाती हैं।

क्षेत्र की जनजातियों एवं अन्य जाति, धर्म व समुदायों के बीच आपसी सदभाव के बीच इन लोगों के बीच चले आ रहे भूत-प्रेत, जादू-टोना, टोटका एवं झाड़-फूंक का विश्वास यहाँ के लोगों के बीच सदियों से प्रचलित मान्यताओं के कारण अमिट है।

देवी-देवता-बाबा के प्रति यहाँ के लोगों की अटूट आस्था आज भी देखने को मिलती है। विशेषकर आदिवासी अंचल की गोंड, भील एवं कोरकू जनजातियों में जिसमें पीढ़ी-पीढ़ी से मौजूद टोटका, झाड़ फूंक एवं भूतप्रेत-चुड़ैल सहित अनेक ऐसे रीति-रिवाज निवारण प्रक्रिया आज भी पाई जाती है।

अकसर देखने को मिलता है कि कमजोर दिल वाले व्यक्तियों के शरीर के अंदर प्रवेशित होकर व्यक्ति को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीकों से मानसिक स्थिति असंतुलित करके कष्ट पहुंचाती है। इन्हीं परेशानियों व भूतप्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाले स्थानों में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम मलाजपुर में स्थित गुरूसाहब बाबा का समाधि स्थल अब पूरी दुनिया में जाना-पहचाना जाने लगा है। अभी तक यहाँ पर केवल भारत के विभिन्न गांवों में बसने वाले भारतीयो को जमावड़ा होता था लेकिन अब तो विदेशो से भी विदेशी सैलानी वीडियो कैमरों के साथ -साथ अन्य फिल्मी छायाकंन के लिए अपनी टीम के साथ पहुँचने लगे है।

मलाजपुर के गुरू साहेब बाबा के पौराणिक इतिहास के बारे में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। जनश्रुति है कि बैतूल जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर विकासखंड चिचोली जो कि क्षेत्र में पाई जाने वाली वन उपजों के व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रख्यात हैं। इसी चिचोली विकासखंड से 8 किलोमीटर दूर से ग्राम मलाजपुर जहाँ स्थित हैं श्रद्धा और आस्थाओं का सर्वजातिमान्य श्री गुरू साहेब बाबा का समाधि स्थल।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस स्थल का पौराणिक इतिहास यह है कि विक्रम संवत 1700 के पश्चात आज से लगभग 348 वर्ष पूर्व ईसवी सन 1644 के समकालीन समय में गुरू साहब बाबा के पूर्वज मलाजपुर के पास स्थित ग्राम कटकुही में आकर बसे थे। बाबा के वंशज महाराणा प्रताप के शासनकाल में राजस्थान के आदमपुर नगर के निवासी थे। अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य छिड़े घमसान युद्ध के परिणामस्वरूप भटकते हुये बाबा के वंशज बैतूल जिले के इसरूरस्थ क्षेत्र में आकर बस गए। बाबा के परिवार के मुखिया का नाम रायसिंह तथा पत्नी का नाम चंद्रकुंवर बाई था जो बंजारा जाति के कुशवाहा वंश के थे। इनके चार पुत्र क्रमश: मोतीसिंह, दमनसिंह, देवजी (गुरूसाहब) और हरिदास थे।

श्री देवजी संत (गुरू साहब बाबा) का जन्म विक्रम संवत 1727 फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को कटकुही ग्राम में हुआ था। बाबा का बाल्यकाल से ही रहन सहन खाने पीने का ढंग अजीबो-गरीब था। बाल्यकाल से ही भगवान भक्ति में लीन श्री गुरू साहेब बाबा ने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के अंतर्गत ग्राम खिड़किया के संत जयंता बाबा से गुरूमंत्र की दीक्षा ग्रहण कर वे तीर्थाटन करते हुये अमृतसर में अपने ईष्टदेव की पूजा आराधना में कुछ दिनों तक रहें इस स्थान पर गुरू साहेब बाबा को ‘देवला बाबा' के नाम से लोग जानते पहचानते हैं तथा आज भी वहाँ पर उनकी याद में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। इस मेले में लाखों भूत-पेत बाधा से ग्रसित व्यक्तियो को भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। गुरू साहेब बाबा उक्त स्थानों से चंद दिनों के लिये भगवान विश्वनाथ की पुण्य नगरी काशी प्रवास पर गये, जहां गायघाट के समीप निर्मित दरभंगा नरेश की कोठी के पास बाबा का मंदिर स्थित है।

बाबा के चमत्कारों व आशीर्वाद से लाभान्वित श्रद्धालु भक्तों व भूतप्रेतों बाधा निवारण प्रक्रिया के प्रति आस्था रखने वाले महाराष्ट भक्तों द्वारा शिवाजी पार्क पूना में बाबा का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया। गुरू साहब बाबा की समाधि स्थल पर देखरेख हेतु पारिवारिक परंपरा के अनुरूप बाबा के उतराधिकारी के रूप में उनके ज्येष्ठ भ्राता महंत गप्पादास गुरू गद्दी के महंत हुये। तत्पश्चात यह भार उनके सुपुत्र परमसुख ने संभाला उनके पश्चात क्रमश: सूरतसिंह, नीलकंठ महंत हुये। इनकी समाधि भी यही पर निर्मित है। वर्तमान में महंत चंद्रसिंह गुरू गादी पर महंत के रूप में सन 1967 से विराजित हुये। यहां पर विशेष उल्लेखनीय यह है कि वर्तमान महंत को छोड़कर शेष पूर्व में सभी बाबा के उत्तराधिकारियों ने बाबा का अनुसरण करते हुये जीवित समाधियाँ ली।

भूत-प्रेत बाधा निवारण के लिये गुरूसाहब बाबा के मंदिर भारत भर में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस घोर कलयुग में जब विज्ञान लोगों की धार्मिक आस्था पर हावी है उस समय में यह सत्य है कि भूत प्रेत बाधा और अनुभूति को झुठलाया नहीं जा सकता है। भूत-प्रेतों के बारे में पढ़ा लिखा तथाकथित शिक्षित तबका भले ही कुछ विशिष्ट परिस्थितियों से प्रभावित होकर इन सब पर अश्विास व्यक्त करे लेकिन बाबा की समाधि के चक्कर लगाते ही इस भूत-प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति स्वंय ही बकने लगता है कि वह क्या है ? तथा क्या चाहता है ?

बाबा की समाधि के पूरे चक्कर लगाने के पहले ही बाबा के हाथ-पैर जोड़ कर मिन्नत मांगने वाला व्यक्ति का सर पटकर कर माफी मांगने के लिए पेट के बल पर लोटने का सिलसिला तब तक चलता है जब तब कि उसके शरीर से वह तथाकथित भूत यानि कि अदृश्य आत्मा निकल नहीं जाती।

एक प्रकार से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि ‘भूत-प्रेत' से आशय छोटे बच्चों या विकलांग बच्चों की आत्मा होती है। ‘पिशाच अधिकांशत: पागल, दुराचारी या हिसंक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति या अत्यधिक क्रोधी व्यक्ति का भूत होता है। स्त्री की अतृप्त आत्माओं में चुड़ैल, दुखी, विधवा, निसंतान स्त्री अथवा उस महिला भूत होता है जिसके जीवन की अधिकांश इच्छायें या कामनायें पूर्ण नहीं हो पाई हों।

ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले गुरूसाहब बाबा की समाधि के समीप से बहती बंधारा नदी पर स्नान करवाने के बाद पीड़ित व्यक्ति को गुरूसाहब बाबा की समाधि पर लाया जाता है। जहां अंकित गुरू साहब बाबा के श्री चरणों पर नमन करते ही पीड़ित व्यक्ति झूमने लगता है। उसकी सांसों में अचानक तेजी आ जाती है, आँखें एक निश्चित दिशा की ओर स्थिर हो जाती है और उसके हाथ पैर ऐंठने लगते हैं। उस व्यक्ति में इतनी अधिक शक्ति आ जाती है कि आस-पास या साथ में लेकर आये व्यक्तियों को उसे संभालना पड़ता है।

बाबा की पूजा अर्चना की प्रक्रिया शुरू होते ही प्रेत बाधा पीड़ित व्यक्ति के मुंह से अपने आप में परिचय देती है, पीड़ित व्यक्ति को छोड़ देने की प्रतिज्ञा करती है। इस अवस्था में पीड़ित आत्मा विभूषित हो जाती है और बाबा के श्री चरणों में दंडवत प्रणाम कर क्षमा याचना मांगता है। एक बात तो यहाँ पर दावे के साथ कही जा सकती है कि प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति यहां आता है तो वह निश्चित ही यहां से प्रेत बाधा से मुक्त होकर ही जाता है।

धार्मिक आस्था के केन्द्र मलाजपुर में श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़ में बाबा की महिमा और चमत्कार के चलते ही पौष पूर्णिमा से एक माह तक यहाँ पर लगने वाला मेला बाबा के प्रति लोगों के विश्वास को प्रदर्शित करता है।

यहां पर सबसे बड़ा जीवित चमत्कार यह है कि यहाँ पर अपनी अभिलाषा पूरी होने पर भक्तों द्वारा स्वयं के वजन भर गुड़ की चढ़ौती तुलादान कर बाबा के चरणों में अर्पित कर गरीबों में प्रसाद बांट दिया जाता है। बाबा के श्री चरणों में चढ़ौती किए गए गुड़ को एक गोदाम में रखा गया है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यहाँ पर हजारों टन गुड़ होने के बाद भी मक्खी के दर्शन तक नहीं है। यहाँ पर गुड़ पर मक्खी होने की कहावत भी झूठी साबित होती है।

दुनिया भर से अनेक लोग मध्यप्रदेश के आदीवासी बैतूल जिले के मलजापुर स्थित ग्राम में बरसों पहले पंजाब प्रांत के गुरूदासपुर जिले से आये बाबा गुरू साहेब समाधि पर लगने वाले दुनिया के एकलौते भूतो के मेले में आते हैं। नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल जिले के इसाई मिशनरी द्वारा विश्व प्रसिद्ध पाढऱ चिकित्सालय मार्ग से दस किलोमीटर दूर पर स्थित आठंवा मिल से मलाजपुर के लिए एक सड़क जाती है। मलाजपुर जाने के लिए बैतूल हरदा मार्ग पर स्थित ग्राम पंचायत चिचोली से भी एक सड़क जाती है।

पिछले वर्ष जर्मनी की मीडिया टीम इस विश्व प्रसिद्ध गुरू साहेब बाबा के भूत मेले की रात भर के उस डरा देने वाले मंजर का छायाकंन एवं चित्राकंन करके जा चुकी है। महाराणा प्रताप के वंशज रहे बाबा के परिजन मुगलों के आक्रमण के शिकार हुये बाबा अपने छोटे भाई हरदास तथा बहन कसिया बाई के साथ आये थे। चिचोली में बाबा हरदास की तथा मलाजपुर में गुरू साहेब बाबा तथा उनकी बहन कसिया बाई की समाधि है। बाबा के भक्तों में अधिकांश यादव समाज के लोग हैं जो कि आसपास के गांवों में सदियों से रहते चले आ रहे हैं।

सबसे बड़ी विचित्रता यह है कि बाबा के भक्तों का अग्नि संस्कार नहीं होता है। बाबा के एक अनुयायी के अनुसार आज भी बाबा के समाधि वाले इस गांव मलाजपुर में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके शव को जलाया नहीं जाता है चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों ना हो। इस गांव के सभी मरने वालों को उन्हीं के खेत या अन्य स्थान पर समाधि दी जाती है।

बैतूल जिले के चिचोली जनपद की मलाजपुर ग्राम पंचायत में सदियों से हजारों की संख्या मे बाबा के अनुयायी अनेक प्रकार की मन्नत मांगने साल भर आते है

Hindi Horror Story - वीरान घर में है मधुबाला की रूह..

कहते हैं जो भवन वर्षों तक सुनसान रहे, वहाँ भूत-प्रेत अपना कब्जा जमा लेते हैं। बहुत से लोगों को यह मात्र अफवाह और डरावनी कहानी लगे लेकिन जो लोग इन बातों पर विश्वास करते हैं उनके लिए यह एक ऐसी वास्तविकता है जो किसी के भी चेहरे का रंग उड़ा सकती है।

मुगल-ए-आज़म और महल जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी का जादू बिखेरने वाली अभिनेत्री मधुबाला का घर अब एक भूतहा खण्डहर हो गया है। आसपड़ोस के लोगों की मानें तो इस घर में से अजीब-अजीब सी आवाजें आती हैं और रात के समय किसी के रोने जैसा आभास होता है।

भले ही यह बात आप सभी को अफवाह प्रतीत हो लेकिन इससे इंकार किया जाना भी संभव नहीं है। यही वजह है कि आज इस घर को खरीदने वाला कोई नहीं है और यह इमारत अभी भी वीरान पड़ी है.

मधुबाला का देहावसान आज से लगभग बयालीस वर्ष पहले हुआ था, गायक और अभिनेता रहे किशोर कुमार से विवाह करने के बाद भी मधुबाला बांद्रा उपनगर स्थित पाली हिल के अरेबियन विला नामक अपने घर पर ही रहा करती थीं और दिल में छेद होने की वजह से मधुबाला का निधन हुआ था।

उल्लेखनीय है कि मृत्यु से कुछ समय पहले ही मधुबाला ने यह कहा था कि वह दोबारा इस दुनिया में आना चाहती हैं और पुन: अभिनेत्री ही बनना चाहती हैं, उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि वह भारत में ही जन्म लें।

अपनी घातक बीमारी के कारण वह अभिनय नहीं कर पाईं और अभिनय के सपने देखकर ही अपना समय व्यतीत करती रहीं। फिल्मी दुनिया से दूरी बनाकर रह पाना उनके लिए बहुत कठिन था इसीलिए लोगों का मानना है कि मरने के बाद भी उनकी आत्मा उसी घर में भटक कर रह गई है।

अरेबियन विला के पड़ोस में रहने वाले लोगों का कहना है कि जब मधुबाला उस घर में रहती थीं तब रोज रात को वहाँ से रोने, गाने और चिल्लाने की आवाजें आती थीं और इन आवाज़ों में मुख्य स्वर स्वयं मधुबाला का रहता था।

कुछ लोगों ने मधुबाला की उस आवाज को रिकॉर्ड किया और अब उस जगह से जो आवाजें आती हैं उसे मधुबाला की उन आवाजों के साथ मिलाकर देखा गया तो सभी यह सोचकर हैरान रह गए कि दोनों ही आवाजें समान हैं।

कई बार इस घर को बेचने की कोशिश की गई, इसमें रंग-रोगन करवाया गया लेकिन फिर भी कोई भी ग्राहक इसे खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ। लोगों का यह विश्वास है कि हो ना हो इस घर में मधुबाला की आत्मा का वास है जो इस दुनिया को छोड़कर जाने की इच्छुक नहीं है।

हालांकि बहुत कम लोग हैं जिनका सामना मधुबाला की आत्मा से हुआ है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि किसी को उनकी आत्मा के वहाँ होने जैसा महसूस नहीं हुआ।

Hindi Horror Story - पूरा गांव शैतानी रूहों की चपेट में..

कहते हैं अगर किसी की कोई अंतिम इच्छा अधूरी रह जाए या फिर अपने जीवन में वह उस चीज को हासिल ना कर पाए तो शरीर त्यागने के पश्चात उस व्यक्ति की आत्मा अपने सपने पूरी करने के लिए भटकती रहती है।

शायद मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में स्थित गायबैड़ा ग्राम में भी कोई भटकती रूह अपना असर दिखा रही है तभी तो बिना किसी कारण के गाँव के पाँच लोग काल का ग्रास बन गए।

गांव वाले खुद नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर इन सभी मौतों के पीछे का कारण क्या है।

अपने डर को समाप्त करने के लिए गांव वाले एक तांत्रिक के पास पहुँच गए, उस तांत्रिक ने गाँव वालों को बताया कि इस गांव में एक रूह की काला साया है और इसी भूत ने गांव के पांच लोगों को अपना शिकार बनाया है।

अब जब उस तांत्रिक ने गांव में भूत-प्रेत के होने की बात पुख्ता कर दी थी तो गांववालों का डरना और भयभीत होना लाजमी था। गांव वालों के कहने पर तांत्रिक ने भूत भगाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी।

इस प्रक्रिया के तहत गाँव के बाहर के लोगों को यह स्पष्ट निर्देशित किया गया कि वे गांव छोड़कर बाहर चले जाएं और गांव में सिर्फ मूल निवासी ही रहें और पूरी श्रद्धा के साथ भूत भगाने के लिए होने वाले यज्ञ और हवन में हिस्सा लें।

साथ ही जितनी भी पूजा अर्चना गांव में की जाए उसमें सभी गांव वाले अपनी हिस्सेदारी निभाएं तभी इस गांव को प्रेत की रूह से मुक्ति दिलवाई जा सकती है।

यहां गांव की तरफ़ आने वाली सड़कों तक पर यह चेतावनी दी गई है कि इस गांव में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है, गांव की सड़कों पर बड़े-बड़े अक्षरों में यह लिखा गया है कि इस गांव में प्रेत का साया है इसीलिए यहां आने की गलती ना करें।

पूजा पाठ और हवन होने के बाद अंतिम विधि के अनुसार गांव की ओर आने वाले हर रास्ते पर दूध गिराकर बुरी आत्माओं का गांव में प्रवेश रोका गया।

भूत भगाने का दावा करने वाला तांत्रिक का कहना है कि अब यह गांव भूत-प्रेत या किसी भी प्रकार की शैतानी ताकतों से मुक्त है। गांव में हुई पांच अकाल मौतों के अलावा भी स्थानीय लोगों का कहना था कि उन्होंने किसी साये को गाँव की सीमा में विचरण करते देखा है।

रात के समय में किसी के चीखने-चिल्लाने की आवाजें भी आती हैं, इतना ही नहीं गांव के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह कहते हैं कि उन्होंने अपने आसपास किसी ताकत के होने का आभास किया है।

लेकिन असल बात क्या है वह किसी को अभी तक नहीं पता चल पाया है। वैसे तो हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि जानकारी के अभाव के कारण लोग कुछ भूत-प्रेत जैसी बातों पर विश्वास कर लेते हैं।

लेकिन सच क्या है यह तो आप या हम कभी शायद जान भी नहीं पाएंगे।

Hindi Horror Story - चीखने वाली सुरंग....

स्‍क्रीमिंग टनल- यानि चीखने वाली सुरंग: जैसे कि नाम से ही आपको आभास हो गया होगा कि इस सुरंग का भय कितना होगा।

यह सुरंग कनाडा के ओंटेरियो के नियागरा फाल्‍स के पास स्थित है। इसका निर्माण सन 1900 में उस इलाके में पानी के बहाव को पास के खेतों की तरफ मोडने के लिए ग्रांड ट्रेक रेलवे लांइस के ठीक नीचे किया गया जो कि लगभग 16 फीट ऊंची और 125 फीट लंबी है।

सुरंग के निर्माण के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन कुछ समय बाद ही एक ऐसा हादसा हुआ जिसने आसपास के लोगों को हिला कर रख दिया।

इसके आस-पास उस वक्‍त कुछ खास आबादी नहीं थी और इस सुरंग में हमेशा पानी भी नहीं भरा रहता था।

जब पानी बढ़ जाता था तब इस टनल का प्रयोग किया जाता था। उस समय इसमें कई हादसे हुए जिनमें से एक हादसा ऐसा था जिससे आज भी ओंटेरियो उबर नहीं पाया है।

यह उस समय की बात है जब इस सुरंग में पानी नहीं था। उस समय इसके दक्षिण की तरफ एक लकड़ी का घर था। उस घर में एक बाप-बेटी रहा करते थे। उस रात सुंग के पास बहुत तेज हवा चल रही थी और चारों तरफ भयानक अंधेरी रात थी। इसी दौरान उस मकान में अचानक आग लग गई।

उस समय घर में वो लड़की अकेले अपने पिछले कमरे थी। हवा का रूख भी उसी तरफ था और देखते-देखते आग ने पूरी तरह उस मकान को अपने आगोश में ले लिया। तब लड़की को आग का पता चला तो वो घर के पिछले हिस्‍से से भागने के लिए उठी, तब तक आग ने रौद्र रूप धारण कर लिया था और मकान का एक हिस्‍सा उसके ऊपर आ गिरा।

लड़की किसी तरह वहाँ से भागी लेकिन उसके कपड़ो में आग लग चुकी थी। लड़की खुद को बचाने के लिए सुरंग की तरफ भागी ताकि वो पानी में कूद सके। लेकिन जब तक वो वहाँ तक पहुंची वो बुरी तरह जल चुकी थी और जब उसने सुरंग में छलांग लगाई तो सीधे जमीन पर आ गिरी क्योंकि सुरंग में उस समय पानी नहीं था। आग से बुरी तरह लिपटी हुई उस लड़की की चीख उस इलाके में गूंज गई।

उसकी चीखें इतनी भयानक थी कि आस-पास के कई लोग वहाँ आ पहुँचे और ऊपर से आग से लड़ती हुई इस लड़की को देखते रहे, लेकिन किसी ने भी उसे बचाने की हिम्‍मत नहीं की और आखिरकार आग से हारकर उस जवान लड़की ने वहीं दम तोड़ दिया।
 
इसके अलावा एक और हादसा इस सुरंग में हुआ, यह हादसा भी एक युवती के साथ ही हुआ। सुरंग के आस-पास के लोगों का मानना है कि एक बार रात में कुछ वहशी दरिन्‍दों ने एक लड़की के साथ इसके अन्‍दर सामूहिक बलात्‍कार किया था। इतना ही नहीं बलात्‍कार करने बाद उन दरिन्‍दों नक अपनी काली करतूत छिपाने के लिए उस बेचारी लड़की के ऊपर तेल डालकर उसे जला दिया था।

लोगों का कहना है कि उस समय वो लड़की भी बहुत भयानक रूप से चीख रही थी। लेकिन आस-पास के लोलों ने पुराना हादसा देखा था तो उन्‍हें लगा कि शायद उसी लड़की की रूह चीख रही है। सुबह जब लोग सुरंग के पास गये तो देखा कि एक लड़की का अधजला शव जमीन पर पड़ा था और सुरंग की दिवारों पर उस लड़की के जलने के निशान भी मौजूद थे।

तब से लेकर आज तक उस सुरंग के आस-पास रात में गुजरने से भी लोग डरते हैं। लोगों का कहना है कि आज भी रात में कोई उधर से गुजरता है तो अंदर से सिसकने और शरीर के जलने जैसी बदबू आती हैं।

ऐसा माना जाता है कि कोई भी सुरंग में रोशनी करता है तो उन दोनों ही लड़कियों की रूहें परेशान हो जाती हैं।

एक बार सुरंग की सफाई के लिए एक आदमी सुरंग में गया था। उस समय वो सुरंग की सफाई करते-करते थक गया था। उसी समय उसने पास से एक सिगरेट निकाली और उसे जलाने के लिए माचिस निकाली। जैसे ही उसने माचिस जलाई माचिस बुझ गई, उसने दोबारा कोशिश की तो तेज हवा सुरंग की दूसरी तरफ से चलने लगी। उसके बाद वो वहाँ से उठा और हवा से बचने के लिए सुरंग के अंदर चला गया और एक कोने में जाकर माचिस जलाने लगा।

जैसे ही उसने तीसरी बार माचिस जलाई तभी एक भयानक चीख उस सुरंग में गूंज गई और उस सफाईकर्मी ने अपने सिर के ठीक ऊपर एक लड़की के साये को देखा जो कि किसी छिपकली की तरह सुरंग की दीवार से चिपकी थी, उसका पूरा चेहरा जला था और वो बार-बार चीख रही थी।

चीख इतनी भयानक थी कि आस-पास के लोगों ने भी उसे सुना।

सुरंग के ऊपर काम कर रहे लोग दौड़कर सुरंग के अंदर झुक कर देखने लगे तो उन्‍होने देखा कि वो आदमी सुरंग के अंदर जमीन पर बेहोश पड़ा है और उसके हाथ में माचिस थी। किसी तरह उसे बाहर निकाला गया और उसे इलाज के लिए अस्‍पताल में भर्ती कराया गया। वो आदमी जिंदा बच गया और उसने आप बीती लोगों को बताई लेकिन कुछ दिनों के बाद उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया।

आज भी उन दोनों रूहों को लोग महसूस करते हैं। इस समय भी यदि आप सुरंग के बीचों बीच जाकर माचिस की तीली जलाते हैं तो एक भयानक चीख आप आसानी से सुन सकते हैं।

लेकिन इसके लिए बहुत हिम्‍मत की जरूरत है, ऐसा करने के दौरान आपकी जान पर भी बन सकती है।

Hindi Horror Story - पण्डित जी पुनर्जीवित हो गए..

एक गाँव में एक पंडितजी थे। लगभग 70 साल के पर एकदम चुस्त-दुरुस्त। एक बार वे अपने घर के दरवाजे पर ही चौकी पर बैठकर धूप सेंक रहे थे। जाड़े का मौसम था और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। दोपहर का समय हो गया था पर लोगों के शरीर की ठिठुरन जाने का नाम नहीं ले रही थी।

अचानक उस पंडितजी के शरीर में एक अजीब जी हलचल हुई और पंडीतजी कुछ समझ पाते या अपने को संभाल पाते इससे पहले ही वह चौकी पर से नीचे लुढ़क गए। पास में ही उनकी नातिन खेल रही थी वह दौड़ते हुए घर में गई और अपनी माँ को बुला लाई। फिर तो रोना-चिल्लना शुरू हो गया और देखते ही देखते लगभग पूरा गाँव वहाँ इकट्ठा हो गया।

गाँव के कुछ बुजुर्ग लोगों ने पंडितजी के शरीर की जाँच-पड़ताल की और उन्होंने देखा कि पंडीतजी तो एकदम ठंडे हो गए हैं और उनकी इहलीला समाप्त हो चुकी है।

लोगों ने उनकी अंतिम क्रिया की तैयारी शुरू कर दी। अरथी के लिए बाँस कटवाकर मँगाया गया और दो बैलगाड़ियों पर जलावन को लादा गया। ये सब करने में लगभग शाम हो गई और अब पंडितजी की अर्थी को लेकर लोग नदी किनारे गए।

ठंडक का मौसम होने के कारण सब लोग जल्दी-जल्दी चिता साजने लगे। बैलगाड़ियों पर से लकड़ी आदि को उतार कर चिता सजाई गई। फिर इस चिता पर पंडितजी की लाश को रखा गया। फिर कुछ लकड़ियाँ आदि रखकर घी, घूप आदि डाला गया और इसके बाद उस पंडितजी के बड़े लड़के ने ज्यों ही परिक्रमा करके चिता में आग लगाने के लिए झुके तभी चिता में थोड़ी हलचल हुई।

काफी लोग तो डर के चिता से काफी दूर भाग गए पर पंडितजी के बड़े लड़के डरे नहीं, हाँ यह अलग बात थी कि उनके भी रोएँ खड़े हो गए थे। उन्होंने थोड़ी हिम्मत दिखाई और लाश के मुख, सिर पर से लकड़ी आदि को हटाई। अरे यह क्या लाश का चेहरा तो एकदम लाल और पसीने से तर था और अब साथ ही लाश की पलकें भी उठ-गिर रहीं थी।

अब पंडितजी के बड़े लड़के वहीं से चिल्लाए- आप लोग डरिए मत और चिता के पास वापस आइए, पिताजी जिंदा हैं।

पर लोग उनकी कहाँ सुनने वाले थे कुछ लोग तो घबराकर और दूर भाग गए क्योंकि उनको लगा कि पंडित का भूत आ गया है।

कुछ लोगों ने तो पंडितजी के बड़े लड़के से कहा कि आप भी दूर हो जाइए पता नहीं कौन सी अनहोनी घट जाए पर पंडितजी के बड़े लड़के वहीं डटे रहे और एक-एककर लाश के ऊपर की सारी लकड़ियों आदि को उतारा और इसके बाद अपने पिताजी को भी अच्छी तरह से पकड़कर चिता से नीचे उतारकर वहीं नीचे लिटाया और इसके बाद दौड़कर जाकर नदी में से एक अँजली पानी लाकर उनके मुँह में डाल दिया।

अब धीरे-धीरे लोगों का डर कुछ कम हो रहा था और एक-एक कर के डरे-सहमे हुए लोग फिर से चिता के पास इकट्ठा होने लगे। अब पंडितजी भी थोड़े सामान्य हो चुके थे उन्होंने धीमी आवाज में अपने बड़े बेटे से कि हमें घर ले चलो। अब फिर से उस पंडितजी को बैलगाड़ी में घर लाया गया। फिर एक छोलाछाप डाक्टर को ही बुलाकर बोतल चढ़वाया गया। 2-3 दिन के बाद फिर से पंडितजी एकदम भले-चंगे यानि पहले जैसे हो गए।
यह बात अब तो पूरे गाँव में फैल चुकी थी कि फलाँ गाँव के फलाँ बाबा मरकर जिंदा हो गए। वे चिता पर उठकर घर आए। रिश्तेदारों आदि के साथ ही बहुत सारे लोग भी दूर-दूर से उस बाबा के पास आते थे और कौतूहल से उन्हें देखते थे।

इस घटना के घटने के लगभग 8-10 दिन बाद कुछ लोग पंडितजी के दरवाजे पर बैठकर इसी घटना की जिक्र कर रहे थे। कोई कह रहा था कि बाबा मरे नहीं थे अपितु उनका प्राण छिप गया था और 7-8 घंटे बाद फिर वापस आ गया पर कुछ लोग मानने को तैयार ही नहीं थे उनका कहना था कि उन लोगों ने खुद ही बाबा की जांच-पड़ताल की थी और बाबा एकदम ठंडे और पीले हो गए थे।

अभी उन लोगों की यह बात चल ही रही थी कि बाबा घर में से बाहर निकले और बोल पड़े कि वास्तव में वे मर गए थे। बाबा की यह बात कुछ लोगों को मजाक लगी पर बाबा ने जोर देकर यह बात कही। फिर बाबा ने उस घटना का जिक्र कुछ इस प्रकार से किया-

उस दिन चौकी पर बैठे-बैठे अचानक पता नहीं क्यों मेरे साथ क्या हुआ कि मैं चौकी पर से नीचे गिर गया और चौकी पर से नीचे गिरने के बाद मेरे साथ क्या हुआ यह मुझे पता नहीं चला। हाँ पर कुछ समय बाद मुझे अचानक लगा कि मुझे कुछ लोग उठाए ले जा रहे हैं। वे लोग वापस में कुछ बात भी कर रहे थे। पर मेरी आँखे बंद थी अब मैंने धीरे-धीरे प्रयास करके अपनी आँखें खोली तो क्या देखता हूँ कि मैं 2-3 लोगों के साथ उड़ा जा रहा हूँ। हाँ पर वे लोग कौन थे यह मुझे पता नहीं। वे लोग देखने में थोड़े अजीब लग रहे थे और उनका पहनावा भी थोड़ा अलग ही था। और हाँ मुझे अब डर नहीं लग रहा था और ना ही मैं यह समझ रहा था कि मैं मर गया हूँ। मैं तो वस उन लोगों के साथ उड़ा जा रहा था। हाँ यहाँ एक बात और स्पष्ट कर दूँ कि मुझे लेकर जो 2-3 लोग जा रहे थे उनके चेहरे भी अब मुझे बहुत स्पष्ट नहीं हो रहे हैं।

आगे बाबा ने बताया कि कुछ ही मिनटों में वे एक दरबार में हाजिर हुए। लगता था कि किसी राजा का दरबार है। बहुत सारे लोग बैठे हुए थे। वहाँ एक लंबा टीकाधारी भी बैठा हुआ था। उसके हाथ में कोई पोथी थी। अब क्या मुझे देखते ही वह टीकाधारी गद्दी पर बैठे एक बहुत ही विशालकाय व्यक्ति से कुछ कहा। इसके बाद उस विशालकाय व्यक्ति और उस टीकाधारी में में 2-3 मिनट तक कुछ बातें हुई फिर कुछ और लोगों को बुलाया गया और उन्हें मेरे साथ लगा दिया गया। अब क्या फिर से मुझे लेकर वे लोग दरबार से बाहर निकले। हाँ इस दौरान मैंने एक जो विशेष बात देखी वह यह थी कि उस राजदरबार में जितने भी लोग दिखे उन सबका एक आकार तो था पर वे हवा जैसे लग रहे थे मतलब हाड़-मांस के नहीं अपितु हवा आदि से बने हों।

अब मुझे लेकर ये लगभग 8-10 लोग जल्दी-जल्दी एक दिशा की ओर बढ़ने लगे, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और ना ही मैं बोल पा रहा था पर हाँ मैं इन लोगों के साथ उड़ा जा रहा था। धीरे-धीरे ये लोग अलग-अलग दिशाओं में बँटने लगे और अब मेरे साथ केवल एक ही आदमी था और वह मुझे लेकर पहले घर पर आया और बहुत परेशान दिखने लगा तभी क्या हुआ कि उसके जैसा दिखने वाला ही एक दूसरा आदमी वहाँ प्रकट हुआ और मुझे लेकर चिता के पास आया। हाँ चिता के पास आने तक तो मैं संज्ञान था पर उसके बाद क्या हुआ मुझे पता नहीं और बाद में मैं जाग पड़ा और मुझे अजीब लगा कि मुझे यहाँ (चिता पर) क्यों लाया गया है।

बाबा ने आगे कहा कि उन्हें लगा कि उस राजदरबार में वह टीकाधारी उस विशालकाय व्यक्ति से कह रहा है कि इसे क्यों लाया गया, किसी और को लाना था।

खैर जो भी यह घटना सही हो या गलत पर उस पंडितजी को जानने वाला हर व्यक्ति यही कहता था कि यह घटना बिल्कुल सही है क्योंकि बाबा कभी-कभी झूठ नहीं बोलते थे और अपने वसूलों के बहुत पक्के थे।
इस घटना के 5-6 साल बाद तक बाबा जिंदा रहे और अपनी इन यादों को लोगों को सुनाते रहे।

हाँ यहाँ एक बात और बता दूँ कि फिर से जिन्दा होने के बाद बाबा के जीवन में बहुत सारे बदलाव आ गये थे।

इस घटना के बाद किसी ने भी बाबा को न गुस्सा करते देखा न बीमार पड़ते। बाबा का जीवन एकदम बदला-बदला लग रहा था। वे अपने से मिलने आने वालों से बहुत प्रेम से मिलते थे।

इस घटना में कितनी सच्चाई है, पता नहीं।