राजस्थान के जोधपुर शहर तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में पानी की अनेक
बावड़ियां हैं जिन्हें या तो राजा-महाराजाओं ने या फ़िर उनकी महारानियों ने
बनवाया था।
पानी की अनेकानेक ऐसी बावड़ियों में से एक ऐसी भी है जिसे भूतों ने बनवाया था। इसे भूत बावड़ी के नाम से जाना जाता है।
जोधपुर से लगभग 90 किलोमीटर पूर्वोत्तर में पीपर-मेहता सिटी राजमार्ग के निकट बसा है रणसी नामक ऐतिहासिक गांव।
मारवाड़ का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब जोधपुर में राजपूतों की चम्पावत शाखा विभाजित हुई, तो उन्होंने कापरड़ा गांव को अपना निवास स्थान बनाया था लेकिन यहां बसने वाले युवा कुंआरों ने गांव के किसी सिद्ध ॠषि की बगीची उजाड़ने के साथ-साथ उसकी साधना में भी विघ्न डाला था, तब ट्टषि ने कुपित होकर उन कुंआरों को शाप दे दिया था कि इस गांव में उनके वंशज पनप नहीं सकेंगे। बाद में यहां के कुंआरों ने शाप के भय से कापरड़ा गांव को छोड़ दिया, वे जिस गांव में जाकर बसे, वह आज रणसी गांव के नाम से प्रसिद्ध है।
रणसी गांव में भूतों के सहयोग से बनी पानी की विशाल बावड़ी तथा ठाकुर जयसिंह का महल इतना चर्चित है कि आज भी लोग बहुत दूर-दूर से उन्हें देखने आते हैं।
रहस्यमयी बावडी के संबंध में कहा जाता है कि ठाकुर जयसिंह घोड़े पर सवार होकर जोधपुर से रणसी गांव की ओर अपने सेवकों के साथ वहां के प्रसिद्ध मेला गणगोर को देखने निकले। राह में सेवकों के घोड़े काफी आगे निकल गये और ठाकुर जयसिंह पीछे छूट गए। राजा का घोड़ा काफी थक चुका था, उसे प्यास भी लगी थी।
रास्ते में एक तालाब को देखकर ठाकुर जयसिंह ने अपने घोड़े को रोका और नीचे उतरकर घोड़े को पानी पिलाने के लिए उस तालाब के पास पहुंचे।
उस समय आधी रात बीत चुकी थी। घोड़ा पानी पीने के लिए ज्यों ही आगे बढ़ा, जयसिंह को तालाब के किनारे एक आकृति दिखाई दी। वह आकृति तुरंत ही आदमी के रूप में बदल गई।
ठाकुर साहब को बहुत आश्चर्य हुआ।
उस आदमी ने कहा- मैं भूत हूँ। किसी शाप के कारण इस तालाब को छू नहीं सकता। मुझे भी जोर से प्यास लगी है, पानी पिलाइये। ठाकुर जयसिंह ने निर्भीकता पूर्वक उस आत्मा को पानी पिला दिया।ठाकुर की निर्भीकता एवं दयालुता को देखकर भूत ने उनकी अधीनता स्वीकारते हुए कहा- आप जो भी आदेश देंगे, उसे मैं पूरा करूँगा।
ठाकुर जयसिंह ने कहा मेरे लिए एक गढ़, महल तथा पानी की बावड़ी के साथ-साथ एक सुन्दर-सा शहर तुम्हें बनाना होगा।
भूत ने कहा- मुझे आपका आदेश स्वीकार है, किन्तु मैं यह कार्य प्रत्यक्ष रूप से नहीं करूंगा। आप दिन भर जो भी निर्माण कराएंगे, वह रात में सौ गुना अधिक बढ़ जाया करेगा, किन्तु आप इस रहस्य को किसी को नहीं बताएंगे। जिस दिन भी यह भेद खुल जाएगा, उसी दिन मेरा काम खत्म हो जाएगा।
संवत् १६०० में निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। अगले ही दिन से महल एवं बावड़ी की इमारतें बनने लगीं। पूरे गांव में कौतुहल छा गया। रात में पत्थर ठोकने की रहस्यमय आवाजें आने लगीं, दिन-प्रतिदिन निर्माण कार्य त्वरित गति से आगे बढ़ता गया।
एक दिन जब जयसिंह की ठकुरानी साहिबा ने महल व बावड़ी के विस्तार का रहस्य पूछा तो ठाकुर ने उन्हें भी बताने से साफ-साफ इन्कार कर दिया।
इस पर ठकुरानी रूठ गई और अनशन शुरू कर दिया। कई दिनों तक अनशन करने के कारण ठकुरानी की दशा बिगड़ने लगी। ठकुरानी को मरणासन्न देखकर ठाकुर ने उसे सारा रहस्य बता दिया। ठाकुर के ऐसा करते ही उसी रात से सारा निर्माण कार्य रूक गया। इसके परिणामस्वरूप सात मंजिला महल केवल दो मंजिला ही बना रह गया और पानी की बावड़ी का अंतिम हिस्सा, दीवार भी अधूरी ही रह गई जो आज भी ज्यों का त्यों ही है।
लाल पत्थरों से बना कलात्मक महल का मेहराब एवं गवाक्ष लोगों को आकर्षित करते हैं।
बावड़ी की गहराई दो सौ फ़ुट से अधिक है। इसमें नक्काशीदार चौदह खम्भे हैं तथा अन्दर जाने के लिए 174 सीढ़ियाँ हैं। सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि बावड़ी में बड़े-बड़े पत्थर लॉक तकनीक से लगाये गये हैं, जो अधरझूल होने पर भी गिरते नहीं हैं।
पानी की अनेकानेक ऐसी बावड़ियों में से एक ऐसी भी है जिसे भूतों ने बनवाया था। इसे भूत बावड़ी के नाम से जाना जाता है।
जोधपुर से लगभग 90 किलोमीटर पूर्वोत्तर में पीपर-मेहता सिटी राजमार्ग के निकट बसा है रणसी नामक ऐतिहासिक गांव।
मारवाड़ का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब जोधपुर में राजपूतों की चम्पावत शाखा विभाजित हुई, तो उन्होंने कापरड़ा गांव को अपना निवास स्थान बनाया था लेकिन यहां बसने वाले युवा कुंआरों ने गांव के किसी सिद्ध ॠषि की बगीची उजाड़ने के साथ-साथ उसकी साधना में भी विघ्न डाला था, तब ट्टषि ने कुपित होकर उन कुंआरों को शाप दे दिया था कि इस गांव में उनके वंशज पनप नहीं सकेंगे। बाद में यहां के कुंआरों ने शाप के भय से कापरड़ा गांव को छोड़ दिया, वे जिस गांव में जाकर बसे, वह आज रणसी गांव के नाम से प्रसिद्ध है।
रणसी गांव में भूतों के सहयोग से बनी पानी की विशाल बावड़ी तथा ठाकुर जयसिंह का महल इतना चर्चित है कि आज भी लोग बहुत दूर-दूर से उन्हें देखने आते हैं।
रहस्यमयी बावडी के संबंध में कहा जाता है कि ठाकुर जयसिंह घोड़े पर सवार होकर जोधपुर से रणसी गांव की ओर अपने सेवकों के साथ वहां के प्रसिद्ध मेला गणगोर को देखने निकले। राह में सेवकों के घोड़े काफी आगे निकल गये और ठाकुर जयसिंह पीछे छूट गए। राजा का घोड़ा काफी थक चुका था, उसे प्यास भी लगी थी।
रास्ते में एक तालाब को देखकर ठाकुर जयसिंह ने अपने घोड़े को रोका और नीचे उतरकर घोड़े को पानी पिलाने के लिए उस तालाब के पास पहुंचे।
उस समय आधी रात बीत चुकी थी। घोड़ा पानी पीने के लिए ज्यों ही आगे बढ़ा, जयसिंह को तालाब के किनारे एक आकृति दिखाई दी। वह आकृति तुरंत ही आदमी के रूप में बदल गई।
ठाकुर साहब को बहुत आश्चर्य हुआ।
उस आदमी ने कहा- मैं भूत हूँ। किसी शाप के कारण इस तालाब को छू नहीं सकता। मुझे भी जोर से प्यास लगी है, पानी पिलाइये। ठाकुर जयसिंह ने निर्भीकता पूर्वक उस आत्मा को पानी पिला दिया।ठाकुर की निर्भीकता एवं दयालुता को देखकर भूत ने उनकी अधीनता स्वीकारते हुए कहा- आप जो भी आदेश देंगे, उसे मैं पूरा करूँगा।
ठाकुर जयसिंह ने कहा मेरे लिए एक गढ़, महल तथा पानी की बावड़ी के साथ-साथ एक सुन्दर-सा शहर तुम्हें बनाना होगा।
भूत ने कहा- मुझे आपका आदेश स्वीकार है, किन्तु मैं यह कार्य प्रत्यक्ष रूप से नहीं करूंगा। आप दिन भर जो भी निर्माण कराएंगे, वह रात में सौ गुना अधिक बढ़ जाया करेगा, किन्तु आप इस रहस्य को किसी को नहीं बताएंगे। जिस दिन भी यह भेद खुल जाएगा, उसी दिन मेरा काम खत्म हो जाएगा।
संवत् १६०० में निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। अगले ही दिन से महल एवं बावड़ी की इमारतें बनने लगीं। पूरे गांव में कौतुहल छा गया। रात में पत्थर ठोकने की रहस्यमय आवाजें आने लगीं, दिन-प्रतिदिन निर्माण कार्य त्वरित गति से आगे बढ़ता गया।
एक दिन जब जयसिंह की ठकुरानी साहिबा ने महल व बावड़ी के विस्तार का रहस्य पूछा तो ठाकुर ने उन्हें भी बताने से साफ-साफ इन्कार कर दिया।
इस पर ठकुरानी रूठ गई और अनशन शुरू कर दिया। कई दिनों तक अनशन करने के कारण ठकुरानी की दशा बिगड़ने लगी। ठकुरानी को मरणासन्न देखकर ठाकुर ने उसे सारा रहस्य बता दिया। ठाकुर के ऐसा करते ही उसी रात से सारा निर्माण कार्य रूक गया। इसके परिणामस्वरूप सात मंजिला महल केवल दो मंजिला ही बना रह गया और पानी की बावड़ी का अंतिम हिस्सा, दीवार भी अधूरी ही रह गई जो आज भी ज्यों का त्यों ही है।
लाल पत्थरों से बना कलात्मक महल का मेहराब एवं गवाक्ष लोगों को आकर्षित करते हैं।
बावड़ी की गहराई दो सौ फ़ुट से अधिक है। इसमें नक्काशीदार चौदह खम्भे हैं तथा अन्दर जाने के लिए 174 सीढ़ियाँ हैं। सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि बावड़ी में बड़े-बड़े पत्थर लॉक तकनीक से लगाये गये हैं, जो अधरझूल होने पर भी गिरते नहीं हैं।
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