इस वेबसाइट के भूत प्रेत पर आधारित सामग्री को केवल मनोरंजन के रूप में लें, यहाँ पर प्रकाशित अधिकतर कहानियाँ श्रुति पर आधारित है, हमारा उद्देश्य सिर्फ पाठकों को मनोरंजन प्रदान करना है न कि आधुनिक समाज में भूत-प्रेत के अस्तित्व को बढ़ावा देना।

February 23, 2014

एक गाँव जहां घुमती है अनेको डायन

अनहोनी घटनाएं: वो घटनाएं जो सुनी तो हैं, लेकिन महसूस शायद कुछ ही लोगों ने लिया। अक्सर बात तो होती है, लेकिन सच्चाई से रूबरू होने को कोई तैयार नहीं। ऐसी ही एक कहानी है डायन और चुडैलों की। डायन और चुडैलों को आपने फिल्मों में देखा होगा, लेकिन यहां हम आपको एक ऐसे सच की जानकारी दे रहे हैं जिसे अभी तक आपने कभी नहीं सुना होगा।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के निकट जांजगीर इलाके में आज भी डायनों का बसेरा है। इनके लिए कहा जाता है कि यहां रात में आने वालों को डायन पहले अपने वश में करती है और बाद में उसके खून को पीकर खुद को अमर रखने का प्रयास करती हैं। कहा जाता है कि ये डायन का इलाका है। यहां कदम रखना खतरे से खाली नहीं है। और अगर आ भी गए तो किसी तरह की लापरवाही आपके लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है। अगर यकीन न हो तो यहां के अभिशप्त पेड़ों में कील गाड़ कर देख लीजिए, यकीनन आपका मौत से सामना हो जाएगा।

आपको भले ही यह अंधविश्वास लगे, मगर इस गांव का तो यही दस्तूर है। इस गांव को पूरे सूबे में अभिशप्त माना जाता है। यहां एक-दो नहीं, बल्कि पूरे इलाके में डायनों का बसेरा है। डायन शब्द का अस्तित्व डाकिनी शब्द से आया है। डाकिनी को मां काली की सेविका माना जाता है। डायन इसी डाकिनी का रूप होती हैं।

डायनों में मां काली समेत उनकी सेविका डाकिनी और योगिनियों की पूजा की जाती है। डायन चुड़ैल और योगनियों में वैसे ही फर्क है जैसा फर्क तांत्रिक, अघोरी और तांत्रोक्त तपस्वी में होता है। जांजगीर में प्रचलित है कि यहां कई साल पहले एक महिला के साथ गांव के कुछ लोगों ने बलात्कार किया उसे बंदी बनाकर रखा और बाद में उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। इसके बाद वही डायन बनकर अपना बदला पूरा करती है। डायन को मानव रक्त से विशेष लगाव होता है।

वो इस खून का प्रयोग तांत्रोक्त क्रिया से लेकर काम क्रिया तक में उपयोग करती हैं। डायन और चुड़ैलों को महारत हासिल होती है रूप बदलने में. मगर कौवे और छिपकली ये दो रूप हैं जो वे अक्सर अख्तियार कर लेती हैं। साथ ही मर्दों की एक विशेष गंध के प्रति वे ज्यादा आकर्षित होती हैं। उन्हें मर्दों से संबंध स्थापित करने के लिए तरह-तरह के रूप बनाने की महारत होती है। मगर उनका असली रूप कहीं खौफनाक और तिलिस्मी होता है जो अमावस की रात और पूर्णिमा को देखने में आता है।

डायन और चुड़ैल किसी खास पेड़ पर रहती हैं। इस पेड़ की इर्द-गिर्द एक जाना काफी खतरनाक हो सकता है। यही वो पेड़ है जहां जाने-अनजाने में की गई गलती आपको भारी पड़ जाएगी। अगर आपने यहां पेशाब किया या पेड़ में कील ठोंक दी तो निश्चित तौर पर आपने दे दिया अनिष्ट को न्योता। ये तो रही डायनों के बारे में कुछ खास बातें अब हम आपको बताने जा रहे हैं एक चौंकाने वाला खुलासा जिसके बारे में जानकर आपका हलक सूख जाएगा। बिलासपुर के निकट छोटे से इलाके जांजगीर में डायनों की अब पूरी टोली है। ऐसा कहा जाता है कि पहले यहां एक डायन थी, लेकिन डायन ने गांव की ही कुछ लड़कियों की रूह को वश में करके उनको अपने साथ मिला लिया।

आज वही लड़कियां डायनों के साथ मिलकर खुद को अमर रखने की कोशिश करती है। ये गांव ही है वो जगह जहां वास्तविकता में पुरुषों के रात को निकलने पर प्रतिबंध है। कब किस जगह डायन उन्हें अपने वश में कर लेगी कोई नहीं जानता। अभी तक कुल 38 ऐसे मामले हैं जिनमें पुरुष लापता हुए, लेकिन उनका कोई पता नहीं लगा। यही माना गया कि डायन उन्हें निगल गई। डायन आम महिला के रुप में आकर पुरुषों को आकर्षित करती हैं और फिर उनके साथ संबंध बनाती है। संबंध बनाते ही पुरुषों की रूह उनके कब्जे में हो जाती है। जिसके बाद उनका खून पीकर डायन अपनी उम्र बढ़ाती है। माना जाता है कि कुछ सालों तक खून पीने के बाद डायन अमर हो जाती है।

जांजगीर में पेड़ों के काटने पर भी प्रतिबंध है। यहां पेड़ों पर डायनों के रहने की बात कही जाती है। एक बार एक पेड़ काटने पर एक गांव वाले की मौत हो गई थी। तब से ही माना जाता है कि डायन का घर काटने पर ही उसकी मौत हुई। यहां एक टूटी हवेली नूमा छोटी सी कोटरी है। जिसमें कोई नहीं आता जाता। कहा जाता है कि इस कोठरी में जो गया वो वापस नहीं लौटा। 7 लोगों की मौत की गवाह इस कोठरी को यहां के प्रशासन ने भी सील किया हुआ है। डायनों को अपने वश में करने के लिए कई तांत्रिकों ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी। लेकिन इस बीच एक दो तांत्रिकों को मौत का सामना करना पड़ा। जिसके बाद तांत्रिक भी यहां की डायनों को वश में करने से घबराने लगे।

अमवस्या और पुर्णिमा की रात को रोती हैं डायन कहा जाता है कि गांव में अमवस्या और पूर्णिमा की रात कोई नहीं रहता। हालांकि यह काफी पुरानी बात है। अब लोग अपने घरों को अच्छे से बंद कर वहीं रहते हैं। गांव के कुछ लोगों ने अनुभव किया है कि अक्सर रास्ते में चलते वक्त उन्हें आवाजें सुनाई देती है, लेकिन पीछे मुड़ने पर कोई नहीं होता। गांव के सुधाकर नाम के युवक ने तो अपनी बाइक पर एक डायन को लिफ्ट तक दी थी। काफी लंबा रास्ता तय करने के बाद उसे अहसास हुआ कि पीछे कोई बैठा ही नहीं है।

No comments:

Post a Comment