एक ठाकुर और एक नाई के बेटे में बड़ी मित्रता थी| नाई का बेटा बड़ा कुब्दी (कुटिल) व ठाकुर का बेटा बड़ा भोला था| ठाकुर और ठकुराइन के अलावा गांव के लोगों ने भी कुंवर को काफी समझाया कि नाई के बेटे से मित्रता छोड़ दो यह आपके लिए ठीक नहीं है कभी ये मित्रता आपको भारी पड़ जायेगी, पर ठाकुर के बेटे किसी की एक ना मानी| एक दिन नाई के बेटे ने कुंवर को कहा कि चलो कहीं कमाने चलते है| माँ-बाप ने कुंवर को काफी मना किया पर वह नहीं माना, और नाई के साथ चल दिया|
ठकुरानी ने सोचा बेटा रास्ते में दुःख पायेगा सो उसने चुपके से कुंवर को बीस सोने की मोहरें दे दी ताकि बुरे वक्त में काम आ जाये|
दोनों घर से विदा हो कमाने के लिए चले| रास्ते में कुंवर ने नाई से कहा - " खाने पीने की चिंता करने की जरुरत नहीं है, माँ ने मुझे बीस सोने की मोहरें दी है |" कहते हुए कुंवर ने मोहरे नाई को दिखा दी| बस नाई को तो मोहरें देखते ही मन में लालच आ गया और वह रास्ते चलते सोचने लगा कि कैसे कुंवर छुटकारा पा कर मोहरें हड़पी जाय|
चलते चलते उन्हें प्यास लगी और इधर उधर देखने पर जंगल में एक कुंवा दिखाई दिया, दोनों ने साथ में लायी रस्सी से लोटा बांध पानी निकालने के लिए लटकाया पर रस्सी थोड़ी छोटी थी सो कुंवर बोला- " मैं रस्सी पकड़ कर कुंए में झुक रहा हूँ तूं मेरे पैर कस कर पकड़े रखना ताकि झुक कर मैं पानी निकाल सकूं|"
कुंवर के झुकते ही नाई ने तो कुंवर को कुंए में धक्का दे दिया| और उसके थेले को जिसमे कपड़े व बीस मोहरें रखी थी उठाकर चलता बना|
कुंवर ने देखा पानी के ऊपर कुंए की दीवार पर एक पत्थर निकला हुआ था जिस पर वह आसानी से बैठ सकता था सो कुंवर उस पत्थर पर आकर बैठ गया| उस कुंए में दो भुत भी रहते थे|
रात होते ही दोनों भूत कुंए में आये और आपस में बात करने लगे| एक भूत बोला - " मुझे तो आजकल बहुत आनंद आ रहा है|"
"क्या बात कर रहा है यार "पेमला" कैसा आनंद ? बता तो सही| दूसरे भूत ने पुछा|
"मत पूछ "देवला"|आजकल खाने को रोज नित नया भोजन मिल रहा है| खा खाकर आनंद उड़ा रहा हूँ| पास में जो शहर है उसके राजा की बेटी के शरीर में घुस जाता हूँ और जो खाने का दिल करता है मांग लेता हूँ| राजा ने बहुतेरे झाड़ फूंक वाले बुलाये पर मैं उनसे कहाँ निकलने वाला हूँ| मुझे निकालने की जो तरकीब है कि-" कोई मनुष्य अपनी जांघ से खून निकालकर तुलसी के पत्ते पर लगाकर झाड़ फूंक करता हुआ जिसके शरीर में घुसा हूँ पर फैंके तभी मैं निकल सकता हूँ पर ये तरकीब कोई जानता नहीं और मुझे निकाल सकता नहीं |" कह कर पेमला भूत खूब हंसा|
आगे देवला भूत कहने लगा- "वाह ! तेरे तो मजे है| और मेरे भी, मैं भी आजकल सोने की मोहरों पर लेटता हूँ|"
"कैसे ? पेमला भूत ने पुछा|"
"पास ही में जो तपस्वी की बावड़ी है उसके पास जो बरगद का पेड़ है उसकी जड़ों में सोने की मोहरों का खजाना छिपा है और मैं उस पर सोता हूँ| वो पूरा खजाना मेरे कब्जे है |" देवला भूत ने पेमला भूत को बताया |
"पर किसी को पता चल गया और कोई खजाने को निकाल ले गया तो तूं तो कंगाल हो जायेगा|" पेमला भूत ने आशंका जताई |
"किसी को पता लग भी जाए तो क्या ? मुझे भगाने की तरकीब भी तो किसी को आनी चाहिए| सुन यदि कोई कड़ाह में तेल गर्म कर बरगद की जड़ में डालकर ही कोई मुझे वहां से भगा सकता है और ये कोई जानता नहीं|" देवला भूत बोला|
कुंवर दोनों की बातें छुपकर चुपचाप सुन रहा था| दिन उगते ही भूत तो वहां से चले गए और कुछ देर बाद वहां से गुजरते एक ग्वाला ने कुंए में पानी के लिए रस्सी लटकाई जिसे पकड़ कर कुंवर ने ग्वाले से उसे बाहर निकालने का आग्रह किया| विपदा में पड़े व्यक्ति की सहायता करते हुए ग्वाला ने कुंवर को कुंए से बाहर निकाल दिया|
कुंए से बाहर आते ही कुंवर ने उसी शहर की राह पकड़ी जिस शहर के राजा की राजकुमारी के शरीर में वह भूत घुसता था| राजा ने घोषणा कर रखी थी कि जो राजकुमारी के शरीर से भूत निकाल उसे मुक्त करा दे उसे मुंह माँगा इनाम मिलेगा| कुंवर ने देखा राजमहल में कई ओझा और तांत्रिक जमा थे वह सीधा राजा के पास गया और कुंवरी को भूत से मुक्त करने की जिम्मेदारी लेते हुए राजा से बोला-
"इन सब ओझाओं को यहाँ से हटाओ और मुझे कुंवरी के पास ले चलो|"
राजा ने सभी को हटाने का आदेश दे कुंवर को कुंवरी के पास ले गया , कुंवरी तो एक बड़ा थाल भर मिठाइयाँ खाने में मसगुल थी|
कुंवर ने झट से एक कटार से अपनी जंघा काट वहां से खून ले साथ में लाइ तुलसी के पत्तों पर लगाया और उसके छींटे कुंवरी पर देते हुए बोला- "पेमला ! शराफत से निकलकर भाग रहा है या पीट कर निकालूं |"
तुलसी के पत्तों से चिपके खून के छींटे पड़ते ही भूत -" बापजी जलना मत ! भाग रहा हूँ और वापस कभी नहीं आऊंगा|"कहता हुआ भाग खड़ा हुआ| भूत के निकलते ही राजकुमारी झट से ठीक हो गयी| राजा भी अपनी बेटी के ठीक होते ही बहुत खुश हुआ| उसने कुंवर को भला व खानदानी आदमी मानते हुए कुंवरी की शादी भी कुंवर के साथ करदी| अब कुंवरी व कुंवर साथ साथ राजमहल में बड़े आराम व खुशी से रहने लगे|
एक दिन कुंवर शिकार खेलने जा रहा था कि रास्ते में उसने उस नाई को बहुत बुरी व फटेहाल हालत में देखा| उसकी हालत देख कुंवर को तरस आ गया सोचा कि इसने किया तो बहुत गलत था पर है तो पुराना मित्र ही ना| सो इसकी सहायता करनी चाहिए| यही सोच कुंवर नाई को अपने साथ ले आया और उसके खाने पीने,रहने की राजमहल में व्यवस्था करवा दी|
पर नाई का स्वभाव भी बुरा ही था उसे कुंवर के ठाठ देखकर बड़ी जलन होती थी सो एक दिन मौका पाकर उसने राजा के कान भरे कि- "महाराज! आपने जिसको अपनी कुंवरी ब्याही है वह तो मेरे गांव का चमार है| मुझे खाना भी इसलिए खिलाता है कि मैं किसी को यह बात बताऊँ नहीं|"
यह सुन राजा बहुत दुखी हुआ कि उसकी बेटी चमार के घर ब्याही गयी| राजा ने कुंवर को बुलाकर डाटा कि- " चमार होते हुए तुने राजपूत बनकर कुंवरी शादी क्यों की?"
कुंवर बोला-"मैं चमार जाति का नहीं हूँ राजपूत हूँ, और मेरे पूर्वजों ने राज किया है वे भी राजा थे| उनका गाड़ा हुआ धन आज भी मेरी जानकारी में पड़ा है, कहें तो खोदकर दिखाऊं|"
और कुंवर राजा को उस तपस्वी वाली बावड़ी के बरगद के पेड़ के पास ले गया और उसकी जड़ में गर्मागर्म उकालता हुआ तेल डाला| जैसे तेल डाला वहां उपस्थित भूत भाग खड़ा हुआ और कुंवर ने खजाना खोद राजा को दिखाया| खजाना देखते ही राजा की तो आँखे फटी की फटी रह गयी इतना बड़ा खजाना तो उसके राज्य का भी नहीं था|
बस राजा की आशंका दूर हुई और फिर कुंवर व कुंवरी एक साथ मजे से रहने लगे|
एक दिन नाई ने फिर कुंवर से पुछा- " कुंवर जी मैंने आपके साथ किया तो बहुत गलत पर मित्रता के नाते मुझे माफ कर बताएं कि करतब आपने किये कैसे ?"
तब कुंवर ने नाई को कुँए वाली पूरी बात बताई| नाई लालची तो था ही, रात होते ही कुंए के अंदर जाकर बैठ गया| कि उसे भी भूतों से कुछ पता चल जाए|रात होते ही भूत आये और आपस में बात करने लगे - पेमला भूत बोला-" जबसे राजा की कुंवरी के शरीर से निकला हूँ मिठाई तो दूर रोटी का एक टुकड़ा ही नहीं मिला, भूखा मर रहा हूँ यार|"
देवला भूत बोला-" यार ऐसी ही गत अपनी बनी है,खजाना तो लोग निकाल ले गए अपन कंगले बने बैठे है|"
"जरुर अपनी बातें किसी ने सुनी है वरना किसकी मजाल जो हमारे साथ ऐसा करता|" पेमला बोला|
"हां ! लगता है ऐसा ही हुआ है , चल देखते है यहाँ कुंए में कोई है तो नहीं|" दूसरे भूत ने कहा|
और दोनों भूतों ने कुँए में झांककर देखा तो वहां नाई दुबका बैठा था| बस फिर क्या था भूत बोले- "यही है हमारा गुनाहगार, पकड़कर चीर डाले हरामखोर को|"
और भूतों ने देखते ही देखते नाई को पकड़ कर मार डाला|
इसीलिए ये कहावत सदियों से चली आ रही है -"नेकी का फल नेकी और बदी का फल बदी ही मिलता है|"
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